ज्ञाानेन्द्र रावत
प्रदूषण मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। वह चाहे जल प्रदूषण हो, वायु प्रदूषण हो, मृदा प्रदूषण हो या कूड़े-कचरे से उपजा प्रदूषण हो, सच तो यह है कि मौजूदा हालात में जानलेवा प्रदूषण से मानव को मुक्ति मिलना असंभव है। हकीकत तो यह है कि इस प्रदूषण के चलते मानव जानलेवा बीमारियों के चंगुल में फंसकर अनचाहे मौत के मुंह में जाने को विवश है। इसकी पुष्टि तो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञ भी कर चुके हैं।
विडंबना है कि हमारे देश की राजधानी दिल्ली के ऊपर से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी का लेबल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। दी वर्ल्ड आफ स्टेटिक्स नामक संस्था ने दुनिया की दस सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानियों की सूची में दिल्ली को शीर्ष पर रखा है।
देश की राजधानी दिल्ली के लोग इस वर्ष साल के सबसे भयंकर प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। राजधानी के लोगों को खराब हवा में सांस लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। पिछले कई सालों से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। ऐसा लगता है प्रदूषण के माहौल में जीना दिल्ली वालों की नियति बन चुकी है। लेकिन विडम्बना देखिए कि इस सबके बावजूद सरकार के ऊपर कोई असर नहीं है। वह बात दीगर है कि प्रदूषण से निपटने के प्रयास युद्धस्तर पर किये जा रहे हैं, यह जुमला सुनते-सुनते दिल्ली वालों के कान पक चुके हैं। जहां तक दिल्ली सरकार का सवाल है, पायलट प्रोजेक्ट के तहत इस समस्या से निपटने के प्रयास किये जा रहे हैं, ऐसा दावा करते वह थकती नहीं है। यही नहीं, वह राजधानी में लगातार होती खराब हवा की गुणवत्ता के कारण बीमार हो रहे लोगों का बेहतर ढंग से इलाज किया जा सके, इसके लिए दिल्ली के अस्पतालों में प्रदूषण क्लीनिक खोले जाने की योजना पर काम कर रही है। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य अधिकारियों की मानें तो दिल्ली के गुरु तेग बहादुर और लोक नायक अस्पताल में सरकार अन्य सरकारी सुविधाओं के विस्तार से पहले वहां प्रदूषण क्लीनिक खोलने पर विचार कर रही है।
सर्दी के मौसम में यह बदहाल स्थिति हर साल आती है। इस दौरान दिल्ली के अस्पतालों में सांस, दमा, हृदय, फेफड़े, आंत, नेत्र, त्वचा, गले, नाक आदि रोगों के पीड़ितों की संख्या अन्य मौसम के मुकाबले बेहद बढ़ जाती है। गुरु गोविन्द बल्लभ पंत अस्पताल का इस दौरान रोगियों का आंकड़ा इसका जीता-जागता सबूत है। फिर भी सरकार पहले से इस समस्या के समाधान की दिशा में कोई प्रयास नहीं करती और जब हालात बिगड़ने लगते हैं, तब दिखाने के लिए ऐसे दावे करती है।
जहां तक पराली का सवाल है, पड़ोसी राज्यों की सरकारें यह दावा करते नहीं थकतीं कि उनके राज्य में पराली जलाने की घटनाओं में बहुत बड़ी मात्रा में कमी आई है जबकि इसके विपरीत इस दौरान दिल्ली के प्रदूषण में पराली का हिस्सा काफी बढ़ा है। बीते दिनों दिल्ली की हवा में धुएं की हिस्सेदारी में तकरीबन 24 से 26 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई। वायु गुणवत्ता सूचकांक भी बेहद खराब श्रेणी में पहुंच गया। इसका नतीजा यह हुआ है कि पराली का धुआं दिल्ली का दम घोंट रहा है। दिल्ली के लोगों को वर्तमान में मानकों से दोगुना ज्यादा प्रदूषित हवा का सामना करना पड़ रहा है।
मानकों के मुताबिक हवा में प्रदूषक कण पीए 10 की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। दिल्ली के ज्यादातर इलाकों का वायु गुणवत्ता सूचकांक 350 से ज्यादा खतरनाक यानी बेहद खराब श्रेणी में बना हुआ है। जबकि द्वारका स्थित निगरानी केन्द्र का सूचकांक 409 भी रहा।
असलियत यह है कि हवा की दिशा उत्तर-पश्चिमी होने की वजह से दिल्ली की ओर पराली का धुआं काफी मात्रा में आता है। इसके कारण पराली के धुएं की हिस्सेदारी बढ़कर सात फीसदी का आंकड़ा पार कर गई। असलियत में तापमान में कमी के साथ ही प्रदूषण का स्तर अनियंत्रित होता जा रहा है। जैसे-जैसे तापमान में कमी आती जा रही है, वायु गुणवत्ता की स्थिति बेहद खराब होती जा रही है। आने वाले दिनों में तापमान में और कमी होगी, उस हालत में राष्ट्रीय राजधानी में औसत वायु गुणवत्ता बेहद खराब स्थिति में पहुंच जायेगी। फिर आसमान में छायी धुंध और हवा की रफ्तार में कमी के चलते प्रदूषण में बढ़ोतरी के साथ स्मॉग का खतरा भी बरकरार है। ऐसे हालात में दिसम्बर में दिल्ली की हवा और जहरीली होगी। इसमें दो राय नहीं। फिलहाल इससे राहत की उम्मीद बेमानी है।