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विकास के साथ सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण जरूरी

श्रेष्ठ भारत के लिए

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राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने के लिये जरूरी है कि एकता के लिये सरकारी नीतियों के साथ समाज की सक्रिय भागीदारी हो। हम जाति, धर्म और सामाजिक दुराग्रहों से मुक्त हों। साथ ही राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने के अभियानों का कारगर ढंग से उपयोग हो।

सुरेश सेठ

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भारत एक बड़ा प्रजातंत्र है, जिसका संविधान धर्मनिरपेक्षता की शर्त के तहत वादा करता है कि यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाएगा और कट्टरवाद को त्यागा जाएगा। इसका उद्देश्य यह है कि लोग विभाजित होकर एक-दूसरे में वैमनस्य न फैलाएं। गंगा-जमुना संस्कृति का आदान-प्रदान केवल स्थान विशेष तक सीमित न रहे, बल्कि पूरे देश में लोगों को अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर एकता के सिद्धांत पर आधारित विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए।

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सरकार ने भारत को एकजुट और सशक्त बनाने के लिए कई प्रयास किए हैं। सबसे पहले, जीएसटी के रूप में ‘एक देश, एक कर’ की व्यवस्था लागू की गई। इसके बाद, ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव और एकीकृत सिविल कोड की स्थापना पर चर्चा की जा रही है। हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में अपनाने का निर्णय लिया गया था, क्योंकि देश की अधिकांश आबादी इसे समझती है। हालांकि, दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में इस पर विरोध है, जिससे हिंदी को वह दर्जा नहीं मिल सका जो अपेक्षित था। अगर हम ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें अपनी भाषा हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में अपनाना चाहिए और इस रास्ते में किसी भी प्रकार के कटुता, सांप्रदायिकता या क्षेत्रीयवाद के अवरोध नहीं आने चाहिए। हमें अखंड भारत बनाने के लिए और भी बहुत से कदम उठाने होंगे।

अनुच्छेद 370 और 35-ए के उन्मूलन ने जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से जोड़ा, जिससे वहां पर्यटन, तीर्थाटन और फिल्मों की शूटिंग फिर से शुरू हुई। यह भारत की एकता का प्रतीक है। हाल ही में बिहार दिवस को सार्वदेशिक रूप से मनाने की घोषणा की गई है, ताकि यह केवल बिहार तक सीमित न रहे, बल्कि पूरा देश इसे मनाए। बिहार की सांस्कृतिक धरोहर, जिसमें माता सीता, महात्मा बुद्ध, महावीर जैन, गुरु गोबिंद सिंह और आर्यभट्ट की जन्मभूमि की गरिमा भी शामिल हैं, को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में स्वीकार किया गया। यह क्षेत्रीयता की सीमाओं से परे जाकर भारतीय संस्कृति की एकता को बढ़ावा देने का कदम है।

सरकार ने ‘एक देश, एक उत्सव’ और ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ जैसे कदम उठाए हैं, जो राष्ट्रीय एकता और समावेशिता को बढ़ावा देते हैं। एक राशन कार्ड से देशभर में राशन प्राप्त करने की सुविधा से एक राज्य के लोग अन्य राज्यों में भी सस्ता राशन प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उन्हें रोजगार के नए अवसर मिलते हैं। इसके साथ ही, कई राज्यों में रहने वाले लोग मतदान में भाग नहीं ले पाते क्योंकि वे रोजगार की तलाश में दूर जाते हैं। एक उदाहरण के रूप में स्थिति यह है कि बिहार में रह रहे मूल लोगों के कुल वोटों का 45 प्रतिशत ही मतदान कर पाता है। इस तरह कम मतदान प्रतिशत के कारण एक मजबूत लोकतंत्र का निर्माण नहीं हो रहा।

वहीं ‘एक देश, एक उत्सव’ के विचार से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हर राज्य का सांस्कृतिक महोत्सव पूरे देश में मनाया जाए, जिससे देश को सांस्कृतिक दृष्टि से एक सूत्र में बांधने में मदद मिलेगी।

सत्तारूढ़ राजनेताओं का यह दावा कि एनडीए सरकार के तहत भारत एकीकृत और अखंड हुआ है, सच में कई विकासात्मक कदम उठाए गए हैं। बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में प्राथमिकता के आधार पर विकास हुआ है, जैसे नए अस्पताल, इंजीनियरिंग और पॉलीटेक्निक कॉलेजों की संख्या में वृद्धि, और एयरपोर्टों की संख्या में इजाफा। हालांकि, यह सवाल उठता है कि इस समावेशी विकास के साथ हम भारत को एकता के सूत्र में कैसे बांध सकते हैं?

जाति आधारित आरक्षण, जो जनगणना से जुड़े विवादों का मुख्य मुद्दा है, आज भी देश में एक बड़ी चुनौती है। देश के कई राज्यों में जातीय संघर्ष दुर्भाग्यपूर्ण है। जैसे मणिपुर में जातीय संघर्षों की स्थिति है। यह मैतेई और कुकी जाति का मसला ही नहीं बल्कि वहां छोटी-छोटी जनजातियां भी अपने लिए आरक्षण मांग रही हैं। इसके अलावा, उदार अनुकंपा की संस्कृति, जो मेहनत के बजाय मुफ्तखोरी को बढ़ावा देती है, इसको लेकर भी गंभीर चिंताएं हैं।

हम ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ बनाने की बात तो करते हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि केवल आर्थिक और भौतिक विकास से देश की एकता नहीं बन सकती। सामाजिक असमानताएं, बेरोजगारी, और वंचित वर्गों की अनदेखी विकास की राह में बाधा डाल रही हैं।

आजादी की पौन सदी बीत चुकी है और हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यदि हम भारत को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ शक्ति बनाना चाहते हैं, तो हमें उन गरीब और वंचित वर्गों को भी मुख्यधारा में लाना होगा, जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी रह जाती है। तभी हम एक सशक्त और एकीकृत भारत का निर्माण कर पाएंगे।

लेखक साहित्यकार हैं।

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