जगमति सांगवान
गत पंद्रह नवंबर को हरियाणा-पंजाब की प्रथम महिला विधायक चंद्रावती का हमारे बीच से चले जाना असल में घर भरू राजनीति की बजाय जनसेवा की राजनीति करने वाले व्यक्तित्व का कम होना है। महिलाओं की राजनीतिक योग्यता व सफलता पर सवाल उठाने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि इमरजेंसी के दौरान चौधरी बंसीलाल को 1977 में सबसे ज्यादा वोटों से पटखनी देने वाली चंद्रावती नामक एक महिला ही थी।
वह प्रथम बार 1954 में मात्र 26 वर्ष की उम्र में बाढड़ा क्षेत्र से उपचुनाव लड़कर विधायक बनीं। तदुपरांत छह बार विधायक, एक बार सांसद व एक बार पांडिचेरी की उपराज्यपाल भी रहीं। उनके इस सफल राजनीतिक जीवन में उनका 1952 में अपने इलाके की प्रथम महिला स्नातक होना बड़ा कारक रहा। उनकी शिक्षा-दीक्षा में उनके पिता हवलदार हजारी राम व बिरला शिक्षण संस्थाओं के अधिकारी निहाल सिंह तक्षक का बड़ा हाथ रहा। वे स्वयं शिक्षित होने के अलावा उस समय महिला शिक्षा के लिए काम करने वाले आर्य समाज आंदोलन के विचारों से प्रभावित थी। चंद्रावती ने प्राइमरी शिक्षा गांव से हासिल करने के बाद पिलानी से मैट्रिक, जयपुर से इंटर व संगरूर से बीए पास किया। उनका गांव उस समय के महेंद्रगढ़ जिला में बाढड़ा क्षेत्र में डालनवास था। बाद में उन्होंने 1954 में विधायक रहने के बाद हर रोज अपने गांव से अप-डाउन करके दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री हासिल की और दादरी की कोर्ट में बाकायदा प्रैक्टिस करते हुए इस मर्दाना क्षेत्र में भी अपने पैर टिका कर दिखाए।
उन्हें ‘धरती की बेटी’ नाम से राजेंद्र कसवा व उनके दोस्तों द्वारा लिखी गई किताब के माध्यम से जानना बड़ा ही रोचक व प्रेरणादायक है। उन्होंने 1954 में अपना पहला चुनाव प्रचार एक पुरानी जीप व मुख्यतया ऊंट पर सवार होकर किया। वह बाल विधवा थी, सो अनेक असहज कर देने वाले सवालों का उन्हें सामना करना पड़ता था। एक सवाल का उन्होंने बार-बार सामना किया, वह था ‘हम लड़कियों को तील-तागा देते हैं, वोट नहीं देते।’ जब यह सवाल बार-बार उनके सामने विरोधियों द्वारा उठाया जाने लगा तो उन्होंने एक सभा में कहा कि अरे तुम तील-तागा तो अपनी बेटियों को तो देते नहीं, मुझे क्या दोगे? रही बात वोट कि मैं आप लोगों को अपना वोटर मानती हूं और समर्थन मांगने आई हूं। यदि तुमने धींगामुश्ती दिखाई तो उन्होंने झुक कर धरती से मिट्टी उठाई और उड़ाते हुए बोली-मैं तुम लोगों को इस धूल के बराबर समझती हूं। चौधरी बंसीलाल जो बाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, वह उस चुनाव में चंद्रावती के इलेक्शन एजेंट बने थे।
न केवल हरियाणा बल्कि पूरे उत्तर भारत में चंद्रावती की छवि दबंग, ईमानदार व स्पष्टवादी राजनेता की रही। उन्होंने पार्टी बदलने व अपने सिद्धांतों से समझौता करने का काम अपने 60 साल लंबे राजनीतिक जीवन में कभी नहीं किया। वे हमेशा अपनी जड़ों से जुड़ी रहीं और अपने गांव, गरीब व खेत खलिहान को उन्होंने कभी नहीं भुलाया। चंद्रावती को खादी व सादा कपड़े पहनना पसंद था। अपने चुनाव प्रचार में चंद्रावती कहती थी कि मैं स्कूल खुलवाऊंगी, अस्पताल बनवाऊंगी, सड़कें पक्की बनंेगी, बिजली आएगी। बाढड़ा में जब वह पशु चिकित्सालय खुलवाना चाहती थी तो गांव वालों ने ही विरोध करना शुरू कर दिया। बिरला बंधुओं ने जो स्कूल खोले थे, उन्हें सरकारी स्कूलों में परिवर्तित करवाया। बाढड़ा के बाद दादरी का आधुनिकीकरण कराने में उनकी अहम भूमिका रही। दादरी के लोग खासतौर पर 1962 से 1967 के दौरान उनके किए गए कार्यों के लिए उन्हें याद करते हैं। 1968 में लोहारू से जीतने पर उन्होंने अनेक मुजारे परिवारों को उनके जमीनी हक भी दिलवाए।
1964 में चंद्रावती कांग्रेस की आपसी फूट व गुटबाजी के खिलाफ जंतर मंतर पर धरने पर बैठ गई। आपातकाल के दौरान देश भर में कुल 6 कांग्रेसी विधायकों ने विरोध में अपनी अपनी विधानसभाओं में भाषण दिए थे। उनमें चंद्रावती एक थी। इसकी सजा यह हुई कि विधायक रहते उन्हें किसी स्टेट गेस्ट हाउस में ठहरने नहीं दिया गया और न ही पार्टी का कोई सदस्य उन्हें अपने पास जगह देता।
बकौल उनकी डायरी एक पत्रकार ने उनसे पूछा बीसवीं सदी की सबसे बड़ी घटना आपकी नजर से? तो उन्होंने कहा निश्चित रूप से देश का आजाद होना सबसे बड़ी घटना रही है। एक साधारण परिवार से आने वाली, बाल विधवा महिला के रास्ते में क्या बाधाएं नहीं आई होंगी, इसका आसानी से अन्दाजा लगाया जा सकता है लेकिन चंद्रावती ने उन सभी बाधाओं को पार करते हुए जो 92 वर्षीय गरिमापूर्ण जीवन जिया, ये इस रास्ते में छुपी सम्भावनाओं का भी संकेतक है, जिन्हें हकीकत बनाने की रणनीति व कार्यनीति अब तो बननी ही चाहिए।