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शहरों में छिपे रंग-बिरंगे भेड़िए

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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मनोज वार्ष्णेय

भेड़िए, शब्द बोलते ही मन में एक डर पैदा हो जाता है। कहीं उस पर नजर पड़ जाए तो शरीर कांपने लगता है। जैसे ही भेड़िया आंखों से ओझल हुआ वैसे ही मन में एक ऐसी निर्मल शांति आती है कि बस पूछो मत। आज कहां नहीं हैं भेड़िए। शिकारियों के भी ये किसी काम के तो होते नहीं, जो इनका शिकार करें, फिर यह शेर, बाघ, टाइगर भी तो नहीं हैं जो शिकारियों को ललचाएं। लेकिन अब इनकी प्रकृति के गुण मनुष्य में भी आ गए हैं। हर स्थान पर भेड़ियों के सहोदर भाई जैसे आपको मिल जाएंगे।

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सही कहूं तो अभी तक कोई ऐसी योजना नहीं बनी है जो भेड़ियों के जैसे कर्म कर रहे लोगों को मनुष्य बना सके। गली-गली शहर-शहर, गांव-गांव और हर कहीं ऐसे मानव घूम रहे हैं जो मन में किसी भी प्रकार से इंसानी फितरत नहीं रखते हैं। उनका काम ही है भेड़िए की तरह झपट्टा मारना। अकेली महिला हो या फिर चार साल की बच्ची- बस इन मानव रूपी भेड़ियों को सिर्फ झपट्टा मारने से मतलब है। चेन स्नेचर जैसे भेड़िए कम हैं, जो मंदिर जाती माताजी या बहनजी के गले से चेन खींचने में विश्वास रखते हैं।

अब तो ऐसे भेड़िए भी सामने आने लगे हैं जो आपको मीठी-मीठी बातों में उलझाकर हाथ से कंगन ही उतरा ले जाते हैं। और उन भेड़ियों का क्या जो शिक्षा मंदिर में बैठे हैं तथा अपनी पुत्री समान छात्रा को ले उड़ते हैं। तो शहरी भेड़िए जंगली से कहां कम हैं। अकेला शिकार मिला और मारा झपट्टा। कभी आपने सोचा है कि विधवा, बुजुर्ग और निराश्रितों की पेंशन पर भी तो कितने ही भेड़िए अपनी नजर गड़ाए रहते हैं। भले ही सरकार उन्हें यह सुविधा उनके खातों में देती हो पर भेड़िए तो मौका तलाशते हैं। वे तो शिकार के निकलने से पहले ही घात लगा लेते हैं और दिन के उजाले में ही अपना काम कर जाते हैं।

दरअसल, शहरी भेड़ियों में अंतर करना मुश्किल होता है, क्योंकि शहरी और जंगली दोनों ही काम तो एक जैसा ही करते हैं, लेकिन दोनों की पहचान बस इससे ही हो जाती है कि जंगली कोई निशान छोड़ जाता है और शहरी कई बार साफ बच निकलता है। शहरी भेड़िए शिकार करने के बाद शहर बदलते रहते हैं। कभी-कभी तो ये शिकार के बाद उसी शिकार के साथ रहते हैं ताकि कोई उन पर शक न कर सके। दोनों प्रकार के भेड़ियों को पकड़ना उतना ही कठिन होता है जितना कि यह पहचानना कि भीड़ में कौन भेड़िया है और कौन रक्षक। जंगली भेड़ियों को तो पिंजड़ा लगाकर पकड़ा जा सकता है पर शहरी भेड़िए जो भीड़ का हिस्सा हैं, उन्हें कैसे पकड़ेंगे? वैसे सरकार को चाहिए कि वह शहर में भी जंगल की तरह बोर्ड लगवाए- यह स्थान शहरी भेड़ियों के खतरों से भरा है, सावधान रहिए।

यह भी संभव है कि बाहरी भेड़िए रंग बदलकर आपको फोन करेंगे- आपका बैंक खाता बंद हो जाएगा, आपका फोन नंबर मिसयूज हो रहा है, आपका बेटा हनी ट्रैप हो जाएगा आदि-आदि। आपको बचना है तो फलां-फलां काम करो। आप डर गये तो समझो हो गए भेड़िए के शिकार। मजा तो तब है, जब भेड़िया गाए, शिकार करने को आए और शिकार हो कर चले।

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