सहीराम
बेशक कोयले की कालिख तो कोई नहीं देखना चाहता, फिर भी जैसे दाग अच्छे होते हैं, वैसे ही कोयले की कालिख भी कइयों को बड़ी रास आती है। हमारे बुजुर्ग चाहे कितना ही आगाह कर गए हों कि कोयले की दलाली में हाथ काले होते हैं। उनकी सीख सिर माथे, लेकिन कोयले से काली कमाई भी तो होती है। अगर उससे कोठे भरते हों तो बुरा क्या है। हमारे बुजुर्गों ने चाहे कितनी ही आगाही की हो कि कोयले की कोठरी में चाहे कितनो ही सयानो जाए, कोयले का दाग तो भई लागे ही लागे। लेकिन यहां तो खुद सयानों ने ही कोयले की कोठरी चुनी। देखिए साहब, एक वह जमाना भी था जब देश में कोयला माफिया होता था और देश के एक बहुत बड़े नेता बड़े फख्र से उसके साथ अपनी दोस्ती पर इतराया करते थे।
फिर कोयले की खदानें रेवड़ियों की तरह भी बंटी। एक बड़े अफसर ने कहा कि कोयले की खदानों को ऐसे बांटने से देश को पौने दो लाख करोड़ का घाटा हो गया। सयानों ने कहा- यह नोशनल है। बस इसी चक्कर में सयाने बेगाने हो गए। जनता ने पहचानना ही बंद कर दिया। तो सयानों ने चाहे बेदाग निकलने की कितनी ही कोशिश की हो, बेदाग तो वे निकल नहीं पाए। लेकिन यह दलालों की बात नहीं, सयानों की बात है। सयानों ने अपना सयानापन छोड़ा नहीं है। बस वे कुछ ज्यादा सयाने हो गए हैं और आस्ट्रेलिया तक पहुंच गए हैं।
सो साहब यह तो सामान्य लोगों की बात है जो कोयले की कालिख तो बेशक नहीं देखना चाहते लेकिन बिजली का उजाला सब देखना चाहते हैं। फिर भी न कोयले की कालिख कहीं नजर आती है और न ही बिजली का उजाला। ऐसे में अच्छे दिनों की बात भला कौन करे। यहां तो न दिन अच्छे, न रात अच्छी। दिन तन झुलसाता है, रात मन झुलसाती है। हाथ का पंखा न हो तो भैया जीना तक मुहाल लगे। कहीं धुआं हो तो उम्मीद होती है कि आग भी होगी। लेकिन जनाब जब कोयला ही नहीं है तो बिजली कहां से होगी। कोयला होता तो बिजली होती। कोयले के साथ बिजली का रिश्ता वही चोली दामनवाला है, रात और दिन वाला है, सुख और दुखवाला है और हां धुएं और आगवाला भी है। ऐसे में आम जनता तो यही सवाल पूछ रही है कि बिजली गयी कहां।
लेकिन असली सवाल यह है कि कोयला गया कहां। कोयले को कोई खा तो नहीं गया होगा, जैसे लोग रिश्वत खा जाते हैं। पर जो लोग पुल, बिल्डिंगें, सड़कें और बांध तक हजम कर जाते हैं, उन्हें कोयला हजम करने में कितना समय लगेगा। लेकिन आजकल ऐसी चीजें हजम करने की खबरें नहीं आती। रही आम जनता तो उसका महंगाई से वैसे ही हाजमा खराब है। फिर भी गर्मी है यार, बिजली तो आ ही जानी चाहिए। पर क्या करें कोयला ही नहीं है।