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टैरिफ के मुकाबले को चीनी आर्थिक दीवार

अमेरिका से ‘फुल स्केल’ टैरिफ युद्ध छिड़ने से पहले, क्या शी अपने गिर्द एक ‘आर्थिक ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना’ का सृजन आरम्भ कर चुके हैं? लेकिन इस टैरिफ वॉर में ग़लत-सही सूचनाओं का भी युद्ध छिड़ा हुआ है। चीन, 2025...

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अमेरिका से ‘फुल स्केल’ टैरिफ युद्ध छिड़ने से पहले, क्या शी अपने गिर्द एक ‘आर्थिक ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना’ का सृजन आरम्भ कर चुके हैं? लेकिन इस टैरिफ वॉर में ग़लत-सही सूचनाओं का भी युद्ध छिड़ा हुआ है। चीन, 2025 की पहली तिमाही में 5.4 फीसद जीडीपी की बढ़ोतरी का दावा ठोक रहा है।

पुष्परंजन

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टैरिफ वॉर के बावजूद चीन अपने जीडीपी में 5.4 फीसद की बढ़ोतरी, पहली तिमाही में कर लेता है, तो यह बड़ी बात है। ‘नेशनल ब्यूरो ऑफ़ स्टैटिस्टिक्स’ ने बुधवार को तब डाटा जारी किया, जब राष्ट्रपति शी , तीन पूर्वी एशियाई देशों की यात्रा के अंतिम चरण में थे। शी सोमवार को वियतनाम और मंगल को मलेशिया पहुंचे। मंगलवार शाम को राजधानी कुआलालंपुर में शी का ज़ोरदार स्वागत हुआ। यह 2013 के बाद से उनकी पहली मलेशिया यात्रा है। वे वियतनाम से यहां आए हैं। उन्होंने हनोई में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लेकर रेल विकास तक, दर्जनों व्यापार सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।

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शी ने आखिर किन वजहों से तीन देशों में जाना तय किया? दरअसल, 9 अप्रैल को रोक लगाने से पहले, ट्रम्प ने कई निर्यात-उन्मुख दक्षिण-पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर सबसे अधिक ‘पारस्परिक’ टैरिफ लगाए। उन्होंने कंबोडिया पर 49 प्रतिशत के टैरिफ लगाए, जबकि वियतनाम और मलेशिया पर क्रमशः 46 प्रतिशत और 24 प्रतिशत शुल्क लगाया गया। व्यापार युद्ध और तेज़ हो गया है, क्योंकि व्हाइट हाउस ने कहा है कि चीन को अब अमेरिका में आयात पर 245 फीसदी टैरिफ का सामना करना पड़ सकता  है।

वियतनाम अमेरिका द्वारा अधिकतम 46 प्रतिशत टैरिफ को लेकर ग़ुस्से में है। सोमवार को वियतनामी अख़बार ‘नहान डैन’ में प्रकाशित एक लेख में, शी ने संरक्षणवाद की अपनी आलोचना दोहराते हुए कहा कि चीन और वियतनाम को मिलकर बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली और स्थिर आपूर्ति शृंखलाओं की रक्षा करनी चाहिए। यात्रा से पहले, शी ने तीन मलेशियाई समाचार आउटलेट द्वारा प्रकाशित एक लेख में चीन और मलेशिया के बीच ‘बहुपक्षीय स्तर पर सहयोग की गति को बढ़ाने’ का संकल्प लिया। टोरंटो विश्वविद्यालय में चीनी राजनीति की प्रोफेसर लिनेट ओंग ने कहा, ‘मैं इसे व्यापार युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ लड़ने के लिए गठबंधन बनाने के शी के प्रयास के रूप में देखती हूं।’

10-सदस्यीय ‘आसियान’ के कई देश अमेरिका द्वारा भारी टैरिफ लगाए जाने से नाखुश हैं। वाशिंगटन ने मलेशिया पर 24 प्रतिशत व्यापार शुल्क लगाया, जिसे मलेशियाई अधिकारियों ने अस्वीकार कर दिया। मलेशिया, जो अपनी गुटनिरपेक्ष स्थिति का दावा करता है, सौदे पर बातचीत करने के लिए वाशिंगटन, एक प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है। कई दक्षिण-पूर्व एशियाई सरकारें अमेरिकी बाजार तक अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए ट्रम्प प्रशासन के साथ बातचीत करने की उम्मीद करती हैं। वियतनाम ने भी अधिक अमेरिकी सामान खरीदने, और अमेरिकी आयातों पर शुल्क में कटौती करने की पेशकश की है। कंबोडिया ने भी यू.एस. आयात पर टैरिफ को घटाकर पांच प्रतिशत करने की पेशकश की है।

डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचाये रखने का आज 15वां दिन है। ट्रंप ने 2 अप्रैल को वैश्विक बाजारों में अराजकता फैला दी, जिसे उन्होंने ‘मुक्ति दिवस’ कहा। एक दिन पहले वो ऐसा करते, तो बिना कहे लोग मान लेते कि ट्रंप, ‘मूर्ख दिवस’ मना रहे हैं। इस तथाकथित ‘मुक्ति दिवस’ की अर्थशास्त्रियों ने जमकर आलोचना की थी, और इसे निरर्थक बताया था। आयातित वस्तुओं पर वैश्विक स्तर पर 10 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया, जबकि कई देशों को उनके साथ अमेरिकी व्यापार घाटे के आधार पर बहुत अधिक शुल्क का सामना करना पड़ा। एक ऐसा कदम, जो अवांछित और हाहाकारी है।

कुछ ही दिनों में बाजार में उथल-पुथल, खरबों डॉलर की संपत्ति का सफाया और अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में उछाल देखा गया, ट्रम्प ने बड़े टैरिफ पर 90-दिन की रोक की घोषणा की, लेकिन वाशिंगटन के सबसे करीबी सहयोगियों सहित सभी देशों पर 10 प्रतिशत के उपाय को बरकरार रखा। मगर, ट्रम्प ने मैक्सिको और कनाडा को बख्शा नहीं। इन पर लगाए गए 25 फीसद टैरिफ को बरकरार रखा। फिर उन्होंने चीन को निशाने पर लिया। जिससे बाज़ार में अराजकता फैल गई। क्या इसे ‘टैरिफ वॉर’ कहें, या कि ‘टैरिफ टेररिज़म’?

ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ ने वित्तीय बाजारों को हिलाकर रख दिया है। कई निवेशक और बाजार पर्यवेक्षक वैश्विक आर्थिक मंदी के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। 16 अप्रैल को, प्रेसिडेंट शी इस्ताना नेगरा में मलेशिया के राजा, सुल्तान इब्राहिम इस्कंदर से मिले। इसके बाद प्रधानमंत्री अनवर के साथ दोपहर में पुत्रजया में सेरी परदाना कॉम्प्लेक्स (प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास) में बैठक हुई, जहां दोनों नेताओं की उपस्थिति में कई सहमति ज्ञापनों और द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए।

आज चीन, कंबोडिया का सबसे बड़ा निवेशक, व्यापारिक साझेदार और डोनर है। इसके विपरीत, अमेरिकी सरकार और उसके सहयोगियों ने कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए कम्बोडिया पर प्रतिबंध लगाए हैं, और फंडिंग में कटौती की है, जिससे नोम पेन्ह, पेइचिंग की बांहों में और भी अधिक चला गया है। कंबोडिया में चीनी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ मज़बूती से आगे बढ़ रहा है, इस कारण चीनी सहायता और निवेश पर नोम पेन्ह की निर्भरता बढ़ी है। वर्ष 1953 में कंबोडिया को फ्रांस से स्वतंत्रता मिलने के बाद द्विपक्षीय संबंध मधुर हुए। थाईलैंड और दक्षिण वियतनाम के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश में, कंबोडिया ने चीन के साथ मजबूत संबंध बनाए।

अमेरिका से ‘फुल स्केल’ टैरिफ युद्ध छिड़ने से पहले, क्या शी अपने गिर्द एक ‘आर्थिक ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना’ का सृजन आरम्भ कर चुके हैं? लेकिन इस टैरिफ वॉर में ग़लत-सही सूचनाओं का भी युद्ध छिड़ा हुआ है। चीन, 2025 की पहली तिमाही में 5.4 फीसद जीडीपी की बढ़ोतरी का दावा ठोक रहा है। इसके उलट, अमेरिका परस्त आर्थिक विश्लेषक, गोल्डमैन सैक्स का मानना है, कि इस साल शी की अर्थव्यवस्था सिर्फ़ 4 फीसदी बढ़ेगी। वॉल स्ट्रीट निवेश बैंक को चिंता है, कि शी की अब तक की कार्रवाइयां ‘टैरिफ के नकारात्मक प्रभाव को पूरी तरह से संतुलित करने’ के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कम से कम, यूबीएस के अर्थशास्त्री ताओ वांग का मानना है, कि चीन इस साल सिर्फ़ 3.4 फीसद, और 2026 में 3 प्रतिशत बढ़ेगा, क्योंकि ट्रंप के टैरिफ, निर्यात को रोक रहे हैं।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन अपने देश में इसका दुष्प्रभाव देख रहे हैं। जॉन बोल्टन के अनुसार, ‘व्यापार के मामले में चीन को आड़े हाथों लेने के ट्रंप के कदम उलटे पड़ सकते हैं, क्योंकि उनके व्यापक वैश्विक टैरिफ, सहयोगियों के साथ-साथ प्रतिद्वंद्वियों को भी प्रभावित करेंगे।’

अप्रैल में अमेरिकी उपभोक्ता सेंटीमेंट्स में वैसी गिरावट दिखी, जो कोविड महामारी के बाद दूसरी सबसे गहरी गिरावट है। करीब 50.8 प्रतिशत। अमेरिका में नौकरी छूटने, और बढ़ती मुद्रास्फीति ने लोगों की चिंताओं को बढ़ावा दिया है। लोग, सोच-समझकर सामान खरीद रहे हैं। अच्छे दिन जाने, और बुरे दिन आने के भय से बचत कर रहे हैं। अभी भारत में वैसी स्थिति आये, उससे पहले प्रधानमंत्री मोदी, और उनके रणनीतिकारों को सतर्क हो जाना चाहिए। शी की यात्रा का मक़सद, उपभोक्तावाद को बचाये रखना है, जिस पर चीनी अर्थव्यवस्था टिकी हुई है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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