महिलाओं के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों के आंकड़े चिंताजनक हैं। साल 2012 में निर्भया कांड के बाद कई सकारात्मक कदमों के बावजूद इस दिशा में काम अधूरा है। हाल की कई घटनाओं में यह उजागर भी हुआ। लड़ाई नियंत्रण वाली सोच और सहमति के बीच है। भारत की बेटियां दशकों से समानता के लिए लड़ रही हैं। वर्णिका कुंडू, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट जैसी महिलाएं लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं।
इस महीने चार दृश्य ऐसे रहे जो भारत में महिला और फीमेल सेक्सुएलिटी की दशा को परिभाषित करते हैं।
पहला, ओडिशा के बालासोर में एक युवा कॉलेज छात्रा ने आत्महत्या कर ली, वह अपने प्रोफेसर द्वारा ‘संबंध’ बनाने के दबावों का विरोध कर रही थी। दूसरा, वायरल हुई एक वीडियो में एक ट्रक पर भगवा लहंगा-चोली पहनकर नाचती दो महिलाओं द्वारा कांवड़ियों का मनोरंजन करने वाला दृश्य, जो बॉलीवुड की वास्तविक जीवन में नकल का बिल्कुल सही उदाहरण है। तीसरी, सेंसर बोर्ड द्वारा सुपरमैन और उसकी प्रेमिका लोइस लेन के बीच 33 सेकंड लंबे चुंबन दृश्य को काट देना, क्योंकि उसे लगता है कि यह भारतीय दर्शकों के लिहाज से ‘अत्यधिक कामुक’ है।
और चौथा दृश्य रहा, हरियाणा भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुभाष बराला के बेटे विकास को सहायक महाधिवक्ता नियुक्त किया जाना, इस तथ्य के बावजूद कि उस पर 2017 में, चंडीगढ़ में, एक युवती वर्णिका कुंडू का पीछा करने और अपहरण के प्रयास का आरोप है। तब वह पांच महीने जेल में भी रहा था। यह आपराधिक मामला है। आठ साल हो गए, लेकिन मुकदमा अभी भी चला ही जा रहा। शायद चंडीगढ़ में न्याय का पहिया बहुत धीरे घूमता है।
शायद हरियाणा के बारे में कुछ है। साथ ही, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में भी, जहां महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध हर साल बढ़ रहे हैं। हम में से जिनकी याद्दाश्त ठीक है, उन्हें दिसंबर 2012 में दिल्ली में एक लड़की के साथ हुआ सामूहिक बलात्कार याद होगा, जिसे हम 'निर्भया' के नाम से जानते हैं - हालांकि असली नाम कुछ ओर था - एक ऐसी लड़की जो आलोक और साहस दोनों से परिपूर्ण थी – यह घटना उस लड़ाई में महत्वपूर्ण मोड़ रही, जो भारत की बेटियां दशकों से समानता के लिए लड़ती आई हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को उस समय भान था कि दिल्ली गैंगरेप कांड कांग्रेस को 2014 के आम चुनाव में देशभर में और फिर अगले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार का बड़ा कारण रहा। तभी मोदी ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का ऐसा नारा दिया, जो पूरे देश में गूंज उठा। उन्होंने महिलाओं को सरकारी योजनाओं के पहले लाभार्थियों के रूप में, सबसे आगे रखा, उन्हें एक वोट बैंक और यहां तक कि कोटा में तब्दील कर दिया - भविष्य में किसी समय 33 प्रतिशत महिला सांसद चुने जाने की उम्मीद है, हालांकि यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं कि कब। फिर भी, यह एक प्रण है और कोई भी इससे पीछे नहीं हट सकता।
प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के तीसरे कार्यकाल में, महिलाओं की लड़ाई अभी भी हर दिन जारी है। साल 2012 में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार उस साल 25000 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे। वहीं 2016 में 36000 संख्या के साथ मामले चरम पर थे। साल 2022 में, जिस बार के आंकड़े अंतिम बार उपलब्ध हैं, बलात्कार के 31000 केस दर्ज थे।
2018 में, वर्णिका कुंडू द्वारा चंडीगढ़ के एक थाने में विकास बराला के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने के एक साल बाद, हर 15 मिनट में एक बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज हुई। आंकड़ों में राजनेताओं द्वारा खुद को दोष-मुक्त रखना भी अंतर्निहित है। यौन उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न के प्रयास के आरोपियों की सूची में विकास बराला का नाम नवीनतम है। अब तक की इस सूची में पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह, कांग्रेस विधायक विनय कुलकर्णी, फिलहाल निलंबित पूर्व जनता दल-एस सांसद प्रज्वल रेवन्ना, पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर व कई अन्य नाम शामिल हैं।
जिस एक कारण से शायद राजनेताओं को लगता है कि वे बच निकलेंगे, वह है कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम का पंजीकृत राजनीतिक दलों पर लागू नहीं होना - बीते शुक्रवार ही सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया कि इनपर भी यह कानून समान रूप से लागू होना चाहिए
और फिर, सामाजिक परिदृश्य में 2012 के दिल्ली गैंगरेप कांड के बाद, काम अभी भी अधूरा है - इस माह की शुरुआत में बालासोर में छात्रा की आत्महत्या से हुई बेहद दुखद मौत, जब वह अपने प्रिंसिपल को कथित छेड़छाड़ से निजात दिलाने की गुहार लगाती रही - लेकिन उसने कुछ नहीं किया - इसके बाद अब विकास बराला की नियुक्ति पर वर्णिका कुंडू का साहसिक ब्यान आया है।
वर्णिका ने एक अखबार को बताया ः ‘किसी को सार्वजनिक पद पर नियुक्त करना महज एक राजनीतिक निर्णय नहीं - यह मूल्यों और मानकों का प्रतिबिंब है, मैं न्याय पाने के लिए लड़ने को तैयार हूं। किसी को तो उन मूक महिलाओं के लिए खड़ा होना ही होगा, जिनके पास कोई ताकत नहीं है’।
वर्णिका की कहानी को संक्षेप में बताएं तो, अगस्त 2017 की एक रात वह घर लौट रही थी और उसने पाया कि एक कार, जिसमें दो व्यक्ति विकास बराला और उसका दोस्त आशीष सवार थे, उसका पीछा कर रही है। उनकी हरकतों ने उसे गली में जाने को मजबूर किया, जहां पर उसका रास्ता रोकने की कोशिश की गई। उन्होंने उसको पकड़कर गाड़ी में डालने की कोशिश की। तब उसने उनके खिलाफ नजदीकी पुलिस थाने में मामला दर्ज करवाया था।
अगले महीने यानी अगस्त की शुरुआत में आठ साल पूरे हो जाएंगे। अब तक 102 सुनवाइयां हो चुकी हैं। मामला अभी किसी नतीजे पर पहुंचने के करीब नहीं लगता, लेकिन जिस तरह से सरकार ने आरोपी को एक प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त किया है, उससे किसी को भी हैरानी होगी कि क्या न्याय वाकई अंधा है!
निश्चित रूप से, यह लड़ाई नियंत्रित करने और सहमति के बीच है। आप किसी दूसरे व्यक्ति पर उसकी मर्जी के बिना अपनी शक्ति का इस्तेमाल किस हद तक सकते हैं? निश्चित रूप से, अगर बीते हफ़्ते की शुरुआत में जब कांवड़ियों के साथ चल रहे एक ट्रक पर छोटे-छोटे भगवा वस्त्र पहने दो महिलाएं वहां मौजूद पुरुषों के मनोरंजन के लिए नाच रही थीं, चूंकि वे ऐसा करना चाहती थीं, तो किसी और को उन्हें यह कहने का अधिकार नहीं है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए या उन्हें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए। अगर आपको लगता है कि यह आपके लिए पर्याप्त रूप से संस्कारी नहीं है, तो यह आपकी समस्या है।
इसलिए जब वर्णिका, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट जैसी महिलाएं लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं, तो असल में वे डर-झिझक की बाधाओं को तोड़ रही हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि यह लड़ाई लंबी खिंचेगी। लेकिन उनके आत्मविश्वास का मंत्र यह है कि ‘लोग क्या कहेंगे’, अब बीते कल की बात है – यूं भी, कुछ न कुछ तो लोग कहेंगे - अपनी सरलता लिए यह साहस बहुत अद्भुत है।
जहां तक सेंसर बोर्ड द्वारा सुपरमैन के चुंबन दृश्य को काटने की बात है, तो शायद बोर्ड के सदस्यों को पूर्ण सरकारी खर्च पर खजुराहो या कोणार्क मंदिरों की यात्रा पर भेजा जाना चाहिए - दोनों ही भाजपा शासित राज्यों में स्थित हैं - ताकि वे खुद देख सकें कि हमारे प्राचीन हिंदू राजा-रानियों का जीवन के इस जीवंत पहलू के बारे में बर्ताव कैसा था।
लेखिका ‘द ट्रिब्यून’ की प्रधान संपादक हैं ।