हर त्योहार का मूल अभिप्राय अंतस की शुद्धता, ऊर्जा का संचार और सुख की अनुभूति होता है। प्रत्येक त्योहार मनाने के पीछे आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक कारण छुपे होते हैं। यूं तो दीपोत्सव का आध्यात्मिक और दार्शनिक भाव है—अज्ञानता के अन्धकार से मुक्त करके ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाने का पर्व लेकिन यह पर्व संकल्प का पर्व भी है और सबसे बड़ा संकल्प है मनुष्य को अपने आप को भीतर से बदलने का संकल्प करना। हर साल का दीप पर्व आगमन हमें नैतिकता को धारण करने का सतत अवसर उपलब्ध करवाता है। वहीं आध्यात्मिक रूप से यह पर्व बन्धन से मुक्ति का पर्व माना जाता है।
दीपक प्रतीक है आत्मा के उज्ज्वल रूप का और आपके द्वारा प्रज्वलित ज्योति सद्गुण का भाव है। दीपावली क्षणिक खुशी का कारण नहीं है, बल्कि जीवनभर की खुशहाली का संचार है। आज हमारा समाज जिस मोड़ पर खड़ा है, उस लिहाज से दीपावली के मूल संदेशों को जीवन में उतारना बेहद प्रासंगिक है। यह बात ध्यान रखें कि दीपावाली का मकसद सिर्फ लक्ष्मी के आगे दीपक जलाकर धन की आकांक्षा, पटाखे फोड़ना और मिठाई खाना नहीं है। दीपक आत्म ज्योति का प्रतीक है जो हमें भीतर के बुरे विचारों, बुरे आचरण और बुरे कर्मों को मिटाकर पवित्र बनने का संकेत देता है।
इसे समझना है हमें। यदि आपके जीवन का एक भी पहलू अंधकारमय होगा तो आपका जीवन कभी भी पूर्णता अभिव्यक्त नहीं कर सकेगा। दीयों की शृंखला का भाव है कि यदि आपके अंदर सेवा का भाव है तो उससे संतुष्ट न रहो बल्कि अपने सेवा भाव को और अधिक विस्तार दो। अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं को प्रकाशित करने का प्रयास करें। इस त्योहार का एक और गुण रहस्य पटाखों के फूटने के भाव में दबा है। जीवन में हम कई बार पटाखों के समान होते है, अपने भीतर हताशा, अवसाद, क्रोध, ईर्ष्या आदि के साथ फूट पड़ने की सीमा तक पहुंचे हुए। पटाखों को फोड़ने की क्रिया लोगों की भावनाओं को अभिव्यक्ति देने का एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास का रूप है। विस्फोट का मतलब हुआ अपनी दबी हुई भावनाओं से मुक्त होना। हृदय से खाली हो जाना। अब यदि आपके परिवार का एक भी सदस्य अंधकार में है तो आप खुश नहीं रह सकते।
हम सोने-चांदी की पूजा तो करते हैं मगर ये केवल बाहरी प्रयोग मात्र है। बुद्धिमत्ता और उच्च नैतिक आचरण ही वास्तविक धन है। हमारा चरित्र, शांत स्वभाव और आत्मविश्वास असली पूंजी है। जाहिर सी बात है कि यह त्योहार सदियों से प्रत्येक व्यक्ति को शांति और सौहार्द सिखाता आ रहा है। इस शुभ अवसर पर बुराई का त्याग और अच्छाई का सत्कार करना होता है मगर ऐसा अपने जीवन में कर पाना असली चुनौती है। दीप जलाना मतलब दिल के अंदर सद्वृत्ति और सदाचार को बसा लेना। इस तरह यह जागरूकता और भीतर के जश्न का उत्सव है। अच्छे स्वास्थ्य, सम्पत्ति और समृद्धि की साझा मनोकामना को फलीभूत करने का दिवस है यह प्रकाश का पर्व।
मनुष्य के साथ समाज और अपने राष्ट्र के अन्धकार को समाप्त करके भ्रातृत्व, प्रेम और आनंद का संदेश देता है यह पर्व। अपने घर और आसपास की स्वच्छता के साथ अपने मन की सफाई भी करनी है। मन से आशीर्वाद, बुद्धि और धन धान्य प्राप्त करने की अभिलाषा के साथ ही उसका जनकल्याण में उपयोग करना ही सच्ची पूजा है। घर की सजावट और रंगोली यह प्रेरणा देती है कि हम अपने आचरण से इसी तरह आनंदमय बनें। अपने आप को लोक कल्याण की भावना से सजाएं। आलोकित होने वाली दीपकों की कतारें हमें निरंतर ज्ञान के प्रकाश का संदेश देती हैं। उसे हमें ग्रहण करना है।
सामान्यतया काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या आदि अवगुण अपनी सीमाओं को पार करके अन्धकार का आवरण धारण करके हमारे हृदय पर छा जाते हैं और हमारी आत्मा के प्रकाश को इस तरह से रोक देते हैं जैसे सूर्य की रोशनी को बादल रोक लेता है। इससे मुक्ति पाने का उपाय है -लौ। हमें लौ के उजाले को अपनी आत्मा के उजाले से इस तरह से जोड़कर रखना होगा ताकि प्रकाश का पुंज और तीव्र होकर भ्रम के कोहरे को पार कर हमारे भीतर को प्रदीप्त कर सके।
हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि नर सेवा ही नारायण सेवा है। आपके भीतर ऐसा प्रकाश छुपा है जिसे बाहर लाकर आप गुमनाम जीवन जी रहे लोगों के जीवन को रोशन कर सकते है। बस इस बात का मान रखें और दीपावली दीपक वाली के साथ ही दिल वाली मनाएं, जिसकी यादें हमारे जीवन को हमेशा महकाएं। त्योहार मनाना चाहिए जीवन जीने को लिए। कल्याण के लिए। खुशियां बांटने के लिए। मानवीयता को कायम करने के लिए।