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आईटी क्षेत्र के रोजगारों पर मंडराता नया जोखिम

एआई का इस्तेमाल
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आईटी सोर्सिंग के विश्व में सबसे बड़े केंद्र भारत की आईटी कंपनियों के लिए एआई बड़ी चुनौती बन कर सामने आई है। दरअसल एआई के कारण कोडिंग जैसे कई तरह के ज़ॉब्स खतरे में पड़ सकते हैं जिन्हें यह बड़ी सफाई और तेजी से करती है। वहीं वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के हालात भी रास नहीं आ रहे।

मधुरेन्द्र सिन्हा

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टेक्नोलॉजी की एक खासियत होती है कि उसमें नई-नई खोजें और इनोवेशन होती रहती हैं। अगर ऐसा न हो तो वह मृतप्राय हो जायेगी। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के बारे में यह बात पूरी तरह लागू होती है और इसमें लगातार इनोवेशन होती रही हैं। इससे यह विधा और भी निखरती गई। लेकिन अब इसमें जो बदलाव और खोजें होती जा रही हैं वे डराने वाली हैं। इससे फायदे तो बहुत हैं लेकिन मानव श्रम को यह सिमटा देगी। यानी परंपरागत रोजगार के क्षेत्र में यह नकारात्मक रोल निभाएगी। दुनिया भर में लाखों लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे। यह सब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई के कारण होगा जिसे इस सदी की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। यह मानव की इतनी ज्यादा सहायता करेगी कि इससे संबंधित क्षेत्र में मैनपॉवर की भारी कटौती हो जायेगी।

आईटी कंपनियां इस समय पसोपेश में हैं और वे वक्त की नजाकत भांपने का प्रयास कर रही हैं। भारत आईटी सोर्सिंग का दुनिया का सबसे बड़ा केन्द्र है और यहां की कंपनियां इसका फायदा उठा रही हैं तथा बड़े पैमाने पर रोजगार भी दे रही हैं। अब यहां एआई की धमक साफ दिख रही है। भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टीसीएस ने अपने कर्मचारियों या यूं कहें कि आईटी प्रोफेशनल्स की सैलरी बढ़ोतरी पर रोक लगा दी है। कंपनी अमेरिका तथा चीन में एआई के बढ़ते उपयोग की समीक्षा कर रही है। देख रही है कि वहां इसका कितना उपयोग होता है और हमें उससे कितना नफा-नुकसान होगा। सभी आईटी कंपनियां ही नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी अन्य कंपनियां भी एआई के पूरी तरह से कार्यान्वित होने का इंतजार कर रही हैं जिसकी खूबी है कि वह कई-कई लोगों का काम कर लेती है। इसके आने के बाद क्या होगा, इस बारे अभी अंदाजा ही लगा सकते हैं। हमारी आईटी कंपनियां ज्यादातर बैक एंड के रूप में काम करती हैं और विदेशी कंपनियों के ऑर्डर पर निर्भर रहती हैं। उन्हें बहुत तरह के ऑर्डर मिलते हैं लेकिन ये सभी हाई एंड नहीं होते। इनमें से बहुत से काम ऐसे मिलते हैं जिनके लिए ज्यादा टैलेंट की जरूरत नहीं है। सामान्य से सॉफ्टवेयर इंजीनियर उसे करते हैं और उनकी तादाद बहुत ज्यादा होती है। भारतीय आईटी कंपनियों में ज्यादातर कर्मी इसी प्रकार के होते हैं जिनकी नौकरियों पर अब एआई के कारण खतरा मंडरा रहा है।

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि एआई के कारण कई तरह के ज़ॉब्स खतरे में पड़ जायेंगे क्योंकि वह उन्हें बड़ी सफाई और बहुत तेजी से करने में समर्थ होती है। इंडियाटेक के एमडी रमेश कैलासम बताते हैं कि ये छोटे-छोटे जॉब्स चले ही जाएंगे क्योंकि एआई बहुत आसानी से यह सब कर देगा। आईटी कंपनियों में कई ऐसे ज़ॉब्स हैं जो निचले लेवल के कर्मचारी करते हैं। इन्हें एआई आसानी से कर लेगा। वह इसके लिए कोडिंग का उदाहरण देते हैं जिसे इन कंपनियों में सॉप्टवेयर इंजीनियर करते हैं लेकिन एआई बड़ी आसानी से यह कर लेगा। वहीं, बहुत से टास्क ऐसे हैं जो कम समय व खर्च में एआई कर सकता है। ऐसे में विदेशी कंपनियों से इस तरह के जॉब्स के ऑर्डर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। वहीं उनका कहना है कि जब भारत में कंप्यूटरीकरण शुरू हुआ था तो ऐसे ही हालात थे और कहा जा रहा था कि बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैलेगी क्योंकि लोग निकाले जायेंगे। कुछ समय तक ऐसा लगा लेकिन बाद में कंप्यूटरीकरण की वज़ह से लाखों नये रोजगार सृजित हुए और देश ने तरक्की की। आने वाले समय में एआई भी ऐसे ही हालात पैदा करेगी।

हमारी कंपनियों और यहां तक कि सरकार को भी प्रयास करना होगा कि कैसे रोजगार बढ़े। एमएनसी निवेश बैंक और वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी मोरगैन स्टेनली का कहना है कि यह संक्रमण का दौर है। ऐसे दौर पहले भी आये थे और उनका मुकाबला किया गया। 2016-17 में भी ऐसा हुआ था और अभी उसी दौर से हम गुजर रहे हैं। आईटी सेक्टर पर इसका असर ज्यादा पड़ रहा है और उनके प्रॉफिट में या तो कमी आ रही है या फिर वे स्थिर हैं। यह उनके लिए चिंता का विषय है।

एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस समय वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका मंदी के दौर से गुजर रही है। नये राष्ट्रपति डोनाॅल्ड ट्रंप के अनुदारवादी कदमों से वहां की अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ रहा है। इस सबसे न तो दुनिया और न ही भारत अछूता रह सकता है। इसका सबसे बड़ा असर हमारी आईटी इंडस्ट्री पर पड़ रहा है और आगे भी पड़ेगा क्योंकि हम सबसे बड़े आईटी सपोर्ट प्रदाता हैं। हमारी यह इंडस्ट्री विदेश, खासकर अमेरिका पर बहुत ज्यादा निर्भर है। इसके अलावा दुनियाभर में युद्ध के जो हालात हैं वे भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल रहे हैं। इन सभी का असर आईटी इंडस्ट्री पर पड़ रहा है। उनके शेयरों की स्थिति यही बयान कर रही है। इनमें पिछले कुछ वर्षों से कोई तेजी नहीं आ रही है और वे नीचे की ओर ही जाते दिख रहे हैं। उन्हें अपने लाभ के बारे में किसी भी तरह का अनुमान लगाने में जोखिम दिख रहा है। यानी राजस्व के मामले में एक तरह की अनिश्चितता है। यह एक बड़ा कारण है कि कई आईटी कंपनियां अपने कर्मचारियों के वेतन वृद्धि के बारे में बात नहीं कर रही हैं और आने वाले समय में छंटनी ही कर सकती हैं। एआई और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता उनके शेयरों पर असर डाल रही है। इसका खमियाजा शुरुआती दौर में कर्मचारी ही भुगतेंगे। लेकिन फिलहाल बहुत निराश होने जैसी स्थिति नहीं है। कंपनियां खुद बदलाव का आकलन कर रही हैं और कुछ बड़े कदम जरूर उठायेंगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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