दीपिका अरोड़ा
त्योहार भारतीय सभ्यता की अमूल्य धरोहर हैं। ये परिचायक हैं हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के, प्रतीक हैं जीवन में रची-बसी जीवंतता के, श्रेष्ठतम उदाहरण हैं एकसूत्र में आबद्ध विविधरंगी समायोजन के। त्योहार ही तो हैं जो ऋतु परिवर्तन के महत्व को मांगलिक स्वीकार्यता देते हुए जीवन को गतिशीलता प्रदान करते हैं, अलसाये तन-मन को नव उमंग से सराबोर कर डालने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।
वसंतोत्सवीय हरीतमा की विदायगी के साथ ही स्वर्णिम आभा से अलंकृत होती गेहूं की बालियां कृषक-हृदय को भावविभोर कर देती हैं। प्रतीत होता है मां वसुंधरा ने यकायक ही धानी चुनरिया ओढ़ ली हो। अरुण की अरुणाई में फलीभूत हुआ अन्नदाता का अथक श्रम, स्वेद-बिंदुओं को फसल कटाई द्वारा सार्थकता प्रदान करने का क्रम, यही तो शुभ संकेत है कि कृषि उत्सव वैसाखी का सुखद आगमन होने को है।
वैसाखी अथवा बैसाखी अर्थात वैशाख माह से जुड़ा त्योहार। सूर्य द्वारा मेष राशि में संचरण करने के कारण इसे मेष संक्रांति अथवा विषुवत संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। वैशाख सौर मास का प्रथम दिन होने के कारण इस दिन तीर्थ स्नान का विशेष महत्व है। हरिद्वार तथा ऋषिकेश में बैसाखी पर्व पर भारी मेला लगता है। यह त्योहार हिन्दु, बौद्ध व सिख धर्म के लिए विशेष महत्व रखता है। भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में इसे जुड़ शीतल, पोहेला बौशाख, बोहाग बिहू, विशु, पुथण्डु, बिखु, उगाडी आदि विभिन्न नामों से मनाया जाता है। पंजाब, हरियाणा में रबी फसल की कटाई के दौरान ईश्वरीय अनुकम्पा के प्रति नतमस्तक होने एवं आगामी वर्ष अधिकाधिक अन्न उपजाने की प्रार्थना सहित सुखद माहौल को त्योहारी रंग देने का यह पारम्परिक पर्व है। ढोल की थाप पर मुदित मन-मयूर हिलोरें लेता है तो ताल से ताल मिलाते हुए कदम स्वत: ही थिरकने लगते हैं, बोलीÓ की लय में जोशीले स्वर उभर उठते हैं :-
‘मुक गई फसलां दी राखी, वे जट्टा आई वैसाखी।’
यूं तो त्योहारों को प्रांतीयता के आधार पर बांटना, समीर को बंधनयुक्त करने सम होगा, किंतु आनन्दातिरेक के उत्सवी क्षणों में कदाचित् प्रांत विशेष से जुड़े गौरवशाली इतिहास को जानने की जिज्ञासा बलवती न हो तो नि:संदेह यह प्रवृत्ति हमारे ज्ञानप्रवाह को सीमित करने के साथ राष्ट्रीय-भाव को भी संकुचित कर डालेगी। उल्लास व ओजस्विता के मध्य बसी हृदयविदारक गाथा, मानो मुस्कुराते नयनों में छलकता समंदर, कुछ ऐसा ही संबंध है वैसाखी का ‘पंच आबों की धरती’ पंजाब से।
नववर्ष प्रारम्भरण सूचक वैसाखी अथवा बसाखी सिख समुदाय के लिए विशेष रूप से मान्य है। 1699 में इसी दिन दशम् गुरु गोबिंद सिंह जी ने पांच प्यारों को अमृत छकाकर खालसा पंथ की स्थापना की थी। पर्व का प्रारम्भ पवित्र सरोवर स्नान एवं गुरुद्वारे में मत्था टेकने से ही होता है। बड़ी संख्या में लोग विशेष रूप से अमृतसर के ‘स्वर्ण मंदिरÓ’ में पधारकर पावन सरोवर स्नान तथा विशेष संकीर्तन लाभ प्राप्त करते हैं। गुरुद्वारे की भव्यता देखते ही बनती है। मेलों का आयोजन त्योहार को सामाजिक मेल-मिलाप का इंद्रधनुषी रंग प्रदान करता है।
उत्सवी आनन्द के बीच जब स्मृति वेदना की गहरी टीस उभरती है तो बरसों पुराने घाव हरे हो जाते हैं। याद आता है, 13 अप्रैल, 1919 का वह नृशंस नरसंहार जब अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में फिरंगी सैनिकों ने निर्दोष, निहत्थे देशवासियों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाकर, हजारों महिलाओं, पुरुषों, बालकों व वृद्धों को निर्दयतापूर्वक भून डाला था। आंखों में खून उतर आया था, रक्त रंजित माटी हाथ में ले, सरदार भगतसिंह ने देश को स्वतंत्र करवाने का दृढ़ संकल्प लिया था। 21 वर्षीय दीर्घ अंतराल के पश्चात ही शांत हुई थी 20 वर्षीय उधमसिंह के अंतर में धधकती ज्वाला, माइकल डायर को गोली मारकर ही जलियांवाला बाग नरसंहार का प्रतिशोध पूर्ण हुआ।
वैसाखी पर लगने वाले मेलों पर आज के संदर्भ में दृष्टि डालें तो कहीं न कहीं एक अधूरेपन का एहसास होता है। रिश्तों की प्रगाढ़ता, सामाजिक मेलजोल की भावना व भ्रातृत्व विकास की मनोकामना इस तेज रफ़्तार जिंदगी में कहीं न कहीं पीछे छूटती चली जा रही है। तभी पारंपरिक आयोजनों का बृहद आकार एक औपचारिक परिधि में सिमटने लगा है। कृत्रिम चकाचौंध में भला नैसर्गिक प्रफुल्लता, उमंग, आनंद का वो स्फूर्तभाव कहां?
सम्पन्न परम्पराएं देश का गौरव होती हैं। इस गौरव को सहेजना व संवर्द्धित करना अत्यावश्यक है। नीरस जीवन को सरसता से समृद्ध करने वाला वैसाखी का त्योहार, भोजन प्रदात्ता कृषक के प्रति कृतज्ञता जताने के साथ शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर भी है। तन-मन उल्लसित रहे, सहृदयता व मानवीयता का संपोषण हो, अन्न का एक भी दाना व्यर्थ न होने पाए, अपने श्रद्धेयजनों के बलिदान को स्मरण करते हुए भारत की एकता व अखंडता को सुरक्षित बनाए रखें, यही ध्येय है वैसाखी त्योहार मनाने का।