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स्वतंत्रता और संयम का संतुलन जरूरी

बेलगाम सोशल मीडिया
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डॉ. जगदीप सिंह

बीती चौदह जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने वजाहत खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सुनिश्चित है, लेकिन यह असीमित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इस स्वतंत्रता का उपयोग सामाजिक जिम्मेदारी, धार्मिक सौहार्द और व्यक्तिगत गरिमा के साथ संतुलित होना चाहिए। यह आदेश न केवल सोशल मीडिया पर बढ़ती हेट स्पीच और आपत्तिजनक सामग्री के मुद्दे को संबोधित करता है, बल्कि इसके व्यापक सामाजिक और लोकतांत्रिक प्रभावों को भी रेखांकित करता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने वजाहत खान के मामले में सुनवाई करते हुए, जिसमें उन पर हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ कथित आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए कई राज्यों में प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी पोस्ट नहीं किया जा सकता। यह अधिकार अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, जिसमें सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और दूसरों की गरिमा शामिल है।’ जस्टिस नागरत्ना ने जोर दिया कि सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाली सामग्री (हेट स्पीच) सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाती है और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देती है।

कोर्ट ने सुझाव दिया कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश बनाए जा सकते हैं, लेकिन यह सेंसरशिप का रूप नहीं लेना चाहिए। साथ ही, कोर्ट ने नागरिकों से स्व-नियंत्रण और सामाजिक जिम्मेदारी अपनाने की अपील की। एक अन्य मामले में, कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार ने भी इस बात को दोहराया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग स्वीकार्य नहीं है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार है, क्योंकि यह नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का अधिकार देता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से यह स्पष्ट होता है कि यह स्वतंत्रता जिम्मेदारी के साथ आती है। सोशल मीडिया पर अनियंत्रित और आपत्तिजनक सामग्री लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर सकती है। सोशल मीडिया पर नफरत भरे भाषण और गलत सूचनाएं सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती हैं। यह विभिन्न समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है, जो लोकतांत्रिक समाज में एकता और सहिष्णुता के सिद्धांतों के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस ध्रुवीकरण को रोकने की दिशा में एक कदम है, क्योंकि यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और उपयोगकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराने पर जोर देता है।

सोशल मीडिया ने विचारों के आदान-प्रदान को आसान बनाया है, लेकिन आपत्तिजनक सामग्री और हेट स्पीच ने इसको कई बार विषाक्त बना दिया है। कोर्ट का यह रुख सुनिश्चित करता है कि लोकतांत्रिक बहस रचनात्मक और सम्मानजनक बनी रहे, न कि अपमानजनक या हिंसक।

कोर्ट ने सेंसरशिप के खिलाफ चेतावनी दी है, लेकिन साथ ही सरकारों को ऐसी सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने की सलाह दी है। यदि सरकारें इसे अति-नियंत्रण के रूप में उपयोग करें, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का कारण बन सकता है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है। इसलिए, कोर्ट का यह आदेश सरकारों के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की चुनौती पेश करता है।

भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक समाज में, सोशल मीडिया पर धार्मिक या सांप्रदायिक टिप्पणियां तनाव और हिंसा को जन्म दे सकती हैं। कोर्ट का यह आदेश ऐसी सामग्री पर अंकुश लगाकर सामाजिक एकता को बढ़ावा देगा। कोर्ट ने स्व-नियंत्रण पर जोर दिया है, जो नागरिकों को अपनी अभिव्यक्ति के प्रति अधिक जागरूक बनाएगा। इससे सोशल मीडिया उपयोगकर्ता अपनी पोस्ट की सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी को समझेंगे। यह आदेश सोशल मीडिया कंपनियों पर भी दबाव डालेगा कि वे अपनी सामग्री मॉडरेशन नीतियों को और सख्त करें। हाल ही में, 3 जुलाई को भारत सरकार द्वारा 2,355 अकाउंट्स को ब्लॉक करने का आदेश इसका उदाहरण है। कोर्ट का यह रुख प्लेटफॉर्म्स को हेट स्पीच और गलत सूचनाओं पर तेजी से कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करेगा।

यह आदेश समाज में कानूनी जागरूकता बढ़ाएगा, खासकर यह समझाने में कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ कुछ सीमाएं भी हैं। इससे लोग अपनी पोस्ट्स को लेकर अधिक सतर्क होंगे।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश सोशल मीडिया के युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हेट स्पीच और आपत्तिजनक सामग्री पर अंकुश लगाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, साथ ही सेंसरशिप से बचने की सलाह भी देता है। समाज में यह आदेश सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देगा और नागरिकों में जिम्मेदारी का भाव पैदा करेगा। हालांकि, सरकारों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को इस आदेश को लागू करने में संतुलन बनाए रखना होगा ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग रोका जा सके, लेकिन रचनात्मक और वैध आवाजों को दबाया न जाए। यह आदेश भारत के डिजिटल और लोकतांत्रिक भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

लेखक असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

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