अरुण नैथानी
ऐसे वक्त में जब दुनिया पर्यावरण संकट से जूझ रही है और कृषि उत्पादों के अवशेष जलाने से बड़ा संकट पैदा हो रहा है, एक भारतीय युवा उद्यमी ने इस दिशा में सार्थक पहल करके दुनिया के सामने कारगर समाधान पेश किया है। दिल्ली के युवा उद्यमी विद्युत मोहन ने फसल के अवशेषों के पर्यावरण अनुकूल निस्तारण और बिक्री योग्य जैव उत्पादों में बदलने की परियोजना को मूर्त रूप दिया है। उनकी इस पहल को दुनिया ने भी हाथो-हाथ लिया है। बीते रविवार लंदन में प्रिंस विलियम द्वारा आरंभ किये गए पहले ‘अर्थशाट प्राइज’ से लंदन में आयोजित भव्य समारोह में विद्युत मोहन को सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार को ‘इको ऑस्कर, की भी संज्ञा दी जाती है, जिसके अंतर्गत उन्हें दस लाख पाउंड की नकद राशि भी प्रदान की गई। दरअसल, मोहन के नेतृत्व वाली ‘टाकाचार’ परियोजना के अंतर्गत खेतों में फसल काटने के बाद बचे अवशेषों को ऐसे जैव उत्पाद में बदला जाता है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय हो सके, साथ ही वे खेतों में पराली आदि फसलों के अवशेषों को न जलायें। इस नवोन्मेषी किफायती तकनीक के लिये ‘हमारी स्वच्छ वायु’ श्रेणी में मोहन को सम्मानित किया गया। दरअसल, पूरी दुनिया में व्याप्त जलवायु संकट के चलते ड्यूक आफ कैंब्रिज विलियम ने धरती को बचाने के प्रेरणादायक प्रयासों में लगे लोगों को प्रोत्साहित करने के लिये यह पुरस्कार शुरू किया है। प्रिंस विलियम ने कहा भी कि हमारे पास समय कम है, लेकिन मनुष्य का ऐसे जटिल संकटों का समाधान निकालने का गौरवशाली अतीत रहा है।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण एजेंसी ने भी बीते साल इस 29 वर्षीय भारतीय उद्यमी को ‘यंग चैंम्पियंस ऑफ द अर्थ’ विशिष्ट पुरस्कार से सम्मानित किया था। यह पुरस्कार उन्हें नये विचारों व नवोन्मेषी प्रयास के जरिये पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिये काम करने पर दिया गया था।
दरअसल, मोहन की इस तकनीक ‘टाकाचार’ को इसलिये पुरस्कृत किया गया क्योंकि ये धुएं को उत्सर्जन को कम करने की पहल करती है, जिससे वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने का मकसद पूरा होता है। यदि इस तकनीक का पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो तो एक अरब टन तक कार्बन डाइऑक्साइड की कटौती संभव है। इस तकनीक को भारत में पराली संकट के समाधान की दिशा में बड़ी पहल बताया जा रहा है, जो अंतत: किसानों की ही जीत कही जाएगी। वास्तव में ‘टाकाचार’ ने किफायती व छोटे पैमाने पर उपयोग में लायी जा सकने तथा खेतों में ट्रैक्टरों से जोड़कर उपयोग की जाने वाली तकनीक विकसित की है। दरअसल, यह मशीन फसलों के अवशेष को बिक्री योग्य जैव उत्पादों, मसलन ईंधन और उर्वरक में बदलती है। ऐसे में यह तकनीक दुनियाभर में हर साल पैदा होने वाले 120 अरब डॉलर के कृषि अपशिष्ट पदार्थों को किसानों के लिये नयी आय के जरिये में बदल सकती है क्योंकि किसान अवशेषों को बेच नहीं पाते और मजबूरी में जला देते हैं। इतना ही नहीं, लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के चलते किसानों को विभिन्न देशों के कानूनों के मुताबिक दंडित भी किया जाता है। बल्कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ तो यहां तक चेताते हैं कि फसल अवशेषों को जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण से लोगों की उम्र एक दशक तक कम हो जाती है। भारत भी इस संकट से दो-चार है और साल के आखिरी दो-तीन महीनों में देश की राजधानी गहरे वायु प्रदूषण के संकट में तब आ जाती है जब आसपास के राज्यों के किसान खेतों में पराली जलाते हैं। हालांकि, इस प्रदूषण में पराली के अलावा अन्य कारकों की भी बड़ी भूमिका होती है।
दरअसल, विद्युत मोहन का सामाजिक उद्यम टाकाचार इस दिशा में काम कर रहा है और कोशिश कर रहा है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारकों पर सामाजिक सहभागिता से नियंत्रण किया जाये। वे चाहते हैं कि देश के दूर-दराज के इलाकों में किसान कृषि अपशिष्टों को रिसाइकल करके अतिरिक्त आय का अर्जन करें और पर्यावरण संरक्षण में जिम्मेदार भूमिका निभायें। इन्हीं कोशिशों को संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संस्था ने भी प्रोत्साहित किया और विद्युत मोहन को ‘यंग चैंम्पियंस ऑफ द अर्थ’ दिया था। बीते वर्ष यह पुरस्कार देने के बाद यूएनईपी ने कहा था कि मोहन जैसे युवा जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता संरक्षण की दिशा में अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। विद्युत मोहन की ‘टाकाचार’ पहल किसानों से धान की भूसी, पराली व नारियल के छिलके लेकर उन्हें चारकोल में परिवर्तित करती है, जिससे किसान उसे जलाने को मजबूर नहीं होते। वर्ष 2018 में शुरुआत के उपरांत विद्युत मोहन व कंपनी के सह संस्थापक ने साढ़े चार हजार किसानों के साथ मिलकर पहल की और तीस हजार टन कृषि अपशिष्ट का निस्तारण किया। निस्संदेह पेशे से इंजीनियर विद्युत मोहन की यह कोशिश पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण और किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में एक प्रेरक पहल है, जिसने किसानों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी किया है। निस्संदेह इस पहल से विकासशील देशों में आर्थिक विकास के लक्ष्य हासिल करने तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल असर डालने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करने में संतुलन बनाने की राह मिलेगी। तभी हम प्रकृति का संरक्षण करते हुए स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल कर सकेंगे।