उम्र क्या है सिर्फ एक संख्या। जज्बा दिल में हो तो हर उम्र अपने ख्वाब पूरा करने के लिये है। रिश्तों में पड़दादी और जीवन के 105 वसंत पार चुकी हरियाणा की रामबाई जब सोने का तमगा ला सकती है तो युवाओं का देश क्या कुछ नहीं कर सकता? हरियाणा के चरखी दादरी के कादमा गांव की रामबाई ने शतायु होने के बावजूद दौड़ में नया रिकॉर्ड बनाया। यूं तो वह पहले भी सोने के तमगे जीत चुकी हैं लेकिन हाल ही में एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के तत्वावधान में बड़ौदा में हुई राष्ट्रीय ओपन मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रामबाई ने सौ मीटर की दौड़ में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया है। उन्होंने सौ मीटर की दूरी 45.40 सेकंड में पूरी की। अब तक यह रिकॉर्ड मान कौर के नाम था, मगर उन्होंने यह दूरी 74 सेकंड में पूरी की थी। उन्होंने दौ सौ मीटर की दौड़ में भी सोने का पदक जीता। रोचक बात यह भी कि इस दौड़ में सौ पार का एक भी प्रतियोगी न था।
मजेदार बात यह है कि अपने गांव की सबसे उम्रदराज रामबाई अकेली खिलाड़ी नहीं हैं उनके बेटे-बहू भी गाहे-बगाहे पदक जीतते रहते हैं। पड़दादी होकर भी पूरी तरह फिट। वह रोज सुबह चार बजे उठकर दौड़ का अभ्यास करती हैं। घर के अलावा खेत में भी काम करती हैं। रामबाई का जन्म एक जनवरी, 1917 को हुआ था। मगर परंपरागत समाज में उन्होंने घर गृहस्थी में बड़ी उम्र गुजार दी। वे कहती हैं–‘मैं दौड़ना चाहती थी, लेकिन किसी ने मौका नहीं दिया।’ निस्संदेह अब जब मौका मिला तो उन्होंने अपना दमखम दिखा दिया। कहा जाता है दूध-दही के खाणे का दमखम है हरियाणा में, उस कहावत को रामबाई चरितार्थ करती हैं। रामबाई पूरी तरह शाकाहारी भोजन करती हैं। उन्होंने दुनिया को प्रेरक संदेश दिया है कि अपने सपने पूरे करने की कोई उम्र नहीं होती। जीवन के 105 वसंत देख चुकी रामबाई कहती हैं कि इस जीत का अहसास यह है कि मैं फिर नई दौड़ में भाग लेना चाहती हूं। उनकी दिली इच्छा है कि वह ऐसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का हिस्सा बनें। अब वह पासपोर्ट के लिये भी आवेदन करना चाहती हैं।
बहरहाल, इस रिकॉर्ड तोड़ स्वर्णिम कामयाबी के बाद रामबाई सुर्खियों की सरताज बन गई हैं। खेल के मैदान में उन्हें प्रशंसकों ने घेर लिया और उनके साथ फोटो और सेल्फियां ली। दिल्ली से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर चरखी दादरी जनपद के गांव कादमा के लोग भी पड़दादी की कामयाबी से बेहद खुश हैं। दरअसल, रामबाई ने अपने खेलों की शुरुआत पिछले साल नवंबर में बनारस में हुई खेल स्पर्धा से की थी। उसके बाद देश के अन्य भागों मसलन केरल, कर्नाटक व महाराष्ट्र आदि में हुई खेल स्पर्धाओं में भाग लिया। ज्यादा उम्र के चलते पोती शर्मिला उन्हें लेकर खेल के मैदानों में पहुंचती है। दरअसल, रामबाई के परिवार के भारतीय सेना में सेवारत सदस्य भी मास्टर्स एथलेटिक मीट में भाग ले चुके हैं। कुछ राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी भाग लेते रहे हैं। परिवार के कई सदस्य भी गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। सत्तर वर्षीय बेटा मुख्तयार सिंह दौ सौ मीटर की दौड़ में कांस्य पदक जीत चुका है व बहू ने भी रिले रेस में कांस्य जीता है। उनकी एक बेटी बासठ वर्षीय संतरा देवी रिले रेस में सोने का तमगा जीत चुकी हैं। रामबाई अब तक एक दर्जन से अधिक पदक जीत चुकी हैं।
सबसे रोचक बात यह है कि रामबाई खाने में किसी तरह की कमी नहीं करतीं। वह हंसते हुए कहती हैं कि बिना खाये-पिये गात में यूं ही जान थोड़े ही आती है। वह शुद्ध शाकाहारी हरियाणा के प्रिय भोजन चूरमा, दूध व दही का खूब सेवन करती हैं। आज जब लोग पचास-साठ की उम्र के बाद खाना कम करने लगते हैं वे प्रतिदिन 250 ग्राम घी, पांच सौ ग्राम दही तथा दिन में दो बार पांच सौ एमएल दूध का सेवन करती हैं। उन्हें बाजरे की रोटी खूब पसंद है। चावल आदि से परहेज करती हैं। गांव का स्वच्छ वातावरण व शुद्ध खाना उनकी ऊर्जा को बढ़ाता है। इस उम्र में रोजाना सुबह उठकर तीन-चार किलोमीटर दौड़ना और फिर खेतों में भी काम करना युवाओं को चौंकाता है।
उड़नपरी दादी के नाम से विख्यात रामबाई जब गांव की पगडंडियों पर अभ्यास करती हैं तो लोग हैरत में पड़ जाते हैं। अब तो गांव वाले उनके राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाने से खासे उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि इस कामयाबी से गांव व प्रदेश का नाम रौशन हुआ है। सबसे अच्छी बात यह है कि रामबाई पूरी तरह सेहतमंद हैं और उत्साह से भरी हैं। रोज सुबह चार बजे उठकर पैदल चलने का अभ्यास निरंतर जारी है। उम्र का कोई दबाव उन पर नजर नहीं आता। गांव की पगडंडियों से शुरू हुआ उनका यह सफर अब देश के नामी स्टेडियमों के ट्रैक तक बदस्तूर जारी है। उनका जीवन देश के उन तमाम करोड़ों बुजुर्गों व युवाओं के लिये प्रेरणादायक है जो बढ़ती उम्र के खौफ में निष्क्रिय जीवन बिताते हैं। जबकि संतुलित भोजन व नियमित दिनचर्या हमें ऊर्जावान बनाये रखती है। शरीर का विज्ञान है कि बुलंद इरादे व शारीरिक सक्रियता हमेशा हमें जवां रखती है।