अगर आंखों के आगे अंधेरा छा जाए तो? पीजीआईएमईआर का अनोखा प्रयोग आपको महसूस कराएगा ग्लूकोमा का खतरा!
विवेक शर्मा
चंडीगढ़, 6 मार्च
सोचिए, आप चलते-चलते अचानक धुंधला देखने लगें और फिर धीरे-धीरे अंधेरा छाने लगे! डरावना लगता है ना? लेकिन ग्लूकोमा के मरीजों की जिंदगी कुछ ऐसी ही हो जाती है—बिना किसी चेतावनी के, बिना किसी दर्द के, धीरे-धीरे उनकी दुनिया अंधेरे में डूब जाती है।
इस बार पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ का एडवांस्ड आई सेंटर विश्व ग्लूकोमा सप्ताह (9-15 मार्च) को सिर्फ सेमिनार और पोस्टरों तक सीमित नहीं रख रहा, बल्कि लोगों को इस बीमारी का अनुभव कराने के लिए एक अनोखा प्रयोग करने जा रहा है!
"अंधेरा जो छा सकता है आपकी आंखों पर भी!"
9 मार्च को सुबह 7 बजे रॉक गार्डन से सुखना लेक तक एक खास "ग्लूकोमा अवेयरनेस वॉक" होगी, जहां प्रतिभागियों को विशेष चश्मे पहनाए जाएंगे। ये चश्मे धीरे-धीरे धुंधले होते जाएंगे, ठीक वैसे ही जैसे ग्लूकोमा के मरीजों की दृष्टि कम होती जाती है।
लोगों को अपनी आंखों से इस खतरे को महसूस कराने का यह अनोखा तरीका पहली बार अपनाया जा रहा है। इसका मकसद है कि लोग समझें कि ग्लूकोमा को हल्के में लेना कितना खतरनाक हो सकता है!
ग्लूकोमा: आंखों का "साइलेंट किलर"
ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे आंखों की रोशनी छीन लेती है और ज्यादातर लोग जब तक डॉक्टर के पास जाते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यह बीमारी आंखों के दबाव में बढ़ोतरी के कारण होती है, जिससे ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है और यह अस्थायी नहीं, बल्कि स्थायी अंधत्व का कारण बन सकती है।
ग्लूकोमा किसी को भी हो सकता है, लेकिन 40 साल से ऊपर के लोग, डायबिटीज से पीड़ित, हाई मायोपिया वाले या जिनके परिवार में पहले से यह बीमारी है, उनके लिए यह खतरा और भी ज्यादा है।
भारत में हर 8वां व्यक्ति खतरे में!
पूरी दुनिया में 8 करोड़ लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि इनमें से ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता कि वे इस बीमारी के शिकार हो चुके हैं!
भारत में स्थिति और भी गंभीर है— हर 8वां भारतीय या तो ग्लूकोमा से ग्रस्त है या फिर इसके जोखिम में है। देश में 4 करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में हैं, जिनमें से 1.1 करोड़ लोग पूरी तरह अंधत्व का शिकार हो चुके हैं।
ग्लूकोमा से बचना है तो अभी जांच करवाएं!
डॉक्टरों का कहना है कि ग्लूकोमा की शुरुआती पहचान और समय पर इलाज ही इसे रोकने का एकमात्र उपाय है। खासकर जिन लोगों के परिवार में यह बीमारी है, उन्हें नियमित आंखों की जांच करानी चाहिए, क्योंकि यह अनुवांशिक भी हो सकता है।
सिर्फ बातें नहीं, इस बार खुद महसूस करें!
इस विश्व ग्लूकोमा सप्ताह पर सिर्फ जागरूकता नहीं, बल्कि ग्लूकोमा के डरावने प्रभावों को खुद अपनी आंखों से महसूस करने का मौका मिलेगा। अगर आप समझना चाहते हैं कि यह बीमारी कितनी खतरनाक हो सकती है, तो 9 मार्च को इस अनोखे प्रयोग का हिस्सा बनें और आंखों की रोशनी बचाने की इस मुहिम में शामिल हों!