Trauma Response Training गंभीर क्षणों के नायक तैयार कर रहा है PGI : देश का पहला ट्रॉमा-बर्न प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू
जब कोई दुर्घटना होती है—सड़क हादसा, आग लगना या औद्योगिक दुर्घटना—तो मौके पर मौजूद पहले कुछ मिनट तय करते हैं कि किसी की जान बचेगी या नहीं। इन्हीं ‘गोल्डन मिनट्स’ को साधने के लिए पीजीआई चंडीगढ़ ने देश का पहला ट्रॉमा और बर्न मैनेजमेंट प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। यह कार्यक्रम न केवल तकनीकी दक्षता, बल्कि त्वरित निर्णय क्षमता से लैस ‘फर्स्ट रिस्पॉन्डर’ चिकित्सक तैयार करेगा।
यह प्रशिक्षण केंद्र भारत सरकार के नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एंड मैनेजमेंट ऑफ ट्रॉमा एंड बर्न इंजरी (NPPMTBI) के अंतर्गत शुरू किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य है—गंभीर दुर्घटनाओं और जलन के मामलों में मृत्यु दर को कम करना।
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस: तैयार होंगे बहु-विशेषज्ञ डॉक्टर
पीजीआई परिसर में स्थापित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (ट्रॉमा एंड बर्न्स) देश का पहला ऐसा संस्थान है जो बहुविषयक डॉक्टरों को प्रशिक्षित करेगा। पहले बैच में 60 रेजिडेंट डॉक्टर शामिल किए गए हैं, जो सर्जरी, न्यूरोसर्जरी, ऑर्थोपेडिक्स, एनेस्थीसिया और प्लास्टिक सर्जरी जैसे विभागों से हैं।
निदेशक प्रो. विवेक लाल ने उद्घाटन अवसर पर कहा कि भारत जैसे देश में जहां हर साल लाखों लोग हादसों और जलने की घटनाओं के शिकार होते हैं, वहां प्रशिक्षित डॉक्टरों और पैरामेडिक्स की ज़रूरत अत्यंत महत्वपूर्ण है। पीजीआई ऐसे डॉक्टर तैयार कर रहा है जो सिर्फ तकनीकी विशेषज्ञ नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत में भी तेज़ निर्णय लेने में सक्षम हों। यह केवल एक केंद्र नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो भारत को ट्रॉमा केयर में आत्मनिर्भर और सक्षम बनाएगा। इस मौके पर पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. विपिन कौशल भी मौजूद रहे।
प्रशिक्षण में क्या सिखाया जाएगा![]()
प्रो. अतुल पराशर, प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष और नोडल अधिकारी ने बताया कि प्रशिक्षण केवल कक्षा तक सीमित नहीं है। इसमें शामिल हैं:
- Advanced Trauma Life Support (ATLS) जैसी अंतरराष्ट्रीय तकनीकों की व्यावहारिक जानकारी
- सिमुलेशन आधारित ट्रेनिंग, जिसमें नकली केस स्टडीज़ और आपातकालीन परिस्थितियों की रिहर्सल
- समूह निर्णय लेने की प्रक्रिया, ताकि टीम वर्क और समाधान की गति बेहतर हो
- मनोसामाजिक प्रशिक्षण, जिससे संकट की घड़ी में डॉक्टरों में संयम और नेतृत्व कौशल विकसित हो
ट्रॉमा-बर्न केयर: भारत की बड़ी ज़रूरत
भारत में हर साल लाखों लोग सड़क दुर्घटनाओं, घरेलू आग, औद्योगिक हादसों और प्राकृतिक आपदाओं के चलते गंभीर रूप से घायल होते हैं। अक्सर इलाज की देरी या गलत प्राथमिक उपचार के कारण मौतें होती हैं।
प्रो. निधि भाटिया, एनेस्थीसिया विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर और कार्यक्रम की सह-निदेशक ने कहा कि हम एक ऐसा तंत्र विकसित कर रहे हैं जिसमें हर आपात स्थिति में प्रशिक्षित, संवेदनशील और तकनीकी रूप से दक्ष हाथ उपलब्ध हों।”
लक्ष्य: हर जिले तक पहुंचे प्रशिक्षित जीवनरक्षक
PGI की योजना है कि यह प्रशिक्षण मॉडल देशभर के मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों तक पहुंचाया जाए। प्रशिक्षित डॉक्टर बाद में अपने संस्थानों में अन्य डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित करेंगे। इससे एक राष्ट्रीय ट्रॉमा-रेडी नेटवर्क विकसित किया जा सकेगा।