गणित और सीखने को समर्पित रहा प्रो. बांबा का जीवन
गीतांजलि गायत्री/ ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 26 मई
पद्म भूषण और गणित के लिए रामानुजन पदक से सम्मानित प्रो. आरपी बांबा संख्याओं के प्रति जुनूनी थे। गणित की तरह ही, उनके जीवन में कोई अस्पष्टता नहीं थी, केवल स्पष्टता थी, जिसने नकारात्मक को सकारात्मक में बदल दिया, समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया और सीखने एवं योगदान के बीच एक बेहतरीन संतुलन स्थापित किया। संख्याओं की ज्यामिति से लेकर पंजाब विश्वविद्यालय की नींव तक, उन्होंने शिक्षा और संस्थान निर्माण दोनों में योगदान दिया।
उनकी बेटी बिंदु ने कहा, ‘वे आखिरी समय तक वैज्ञानिक रहे और उन्होंने शोध के लिए अपना शरीर दान कर दिया। परिवार ने उनकी इच्छा का सम्मान किया।’ अकादमिक क्षेत्र में अपने ऊंचे कद के बावजूद प्रो. बांबा जिस सादगी से जिये, उसी तरह दुनिया से विदा हुए। उनका परिवार और दोस्त श्रद्धांजलि देने के लिए उनके घर पर एकत्र हुए, तो उनकी छोटी बेटी सुचारु ने याद किया कि उन्होंने अपने शरीर को दान करने की इच्छा सभी को बताई थी, लेकिन उन्होंने अस्पताल न जाने का भी सचेत निर्णय लिया था। सुचारु ने याद किया, ‘उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहते और घर की शांति को प्राथमिकता देंगे। वे अंत तक अलर्ट रहे।’
परिवार ने एक बयान में कहा, ‘पंजाब विश्वविद्यालय उनके लिए जीवन रेखा थी। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक इसका ख्याल रखा... शायद एकमात्र चीज जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा परवाह थी, वह था गणित। वह यूट्यूब पर नवीनतम घटनाक्रम जानने के लिए उत्सुक रहते थे और चाहते थे कि हम विश्वविद्यालय की नयी जानकारियों के लिए चंडीगढ़ ट्रिब्यून पढ़ें।’
जम्मू में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे प्रोफेसर बांबा अपनी प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध हुए। लाहौर के सरकारी कॉलेज में अपनी मास्टर डिग्री में 600 में से 600 अंक हासिल करने के बाद, वह पीएचडी के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए, जिसे उन्होंने रिकॉर्ड दो साल में पूरा किया। उन्होंने प्रोफेसर हंस राज गुप्ता के साथ मिलकर होशियारपुर में पंजाब विश्वविद्यालय में गणित विभाग की स्थापना की, जिसे बाद में चंडीगढ़ शिफ्ट कर दिया गया, जहां यह विश्वविद्यालय में पहला एडवांस्ड स्टडी सेंटर बना।
ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर पांच साल बिताने के बाद, वे बाद में पंजाब यूनिवर्सिटी लौट आए, जहां 1985 से 1991 तक कुलपति रहे। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय ने नयीं ऊंचाइयों को छुआ। उनके छात्र उन्हें एक ऐसे शिक्षक के रूप में याद करते हैं, जिनका व्यवहार बहुत ही सौम्य था और जो उन्हें सबसे कठिन समस्याओं को हल करने के लिए प्रेरित करते थे।
पंजाब विश्वविद्यालय की कुलपति रेणु विग ने कहा, ‘उनका निधन गणित, विश्वविद्यालय और समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। पंजाब विश्वविद्यालय सितंबर में पंजाब स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स की शताब्दी और प्रोफेसर बांबा के 100वें जन्मदिन का जश्न मनाने की तैयारी कर रहा था।’ सुचारु ने याद किया कि उनके पिता अपने 100वें जन्मदिन से ज्यादा पंजाब स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स की शताब्दी मनाने के लिए सेमिनार को लेकर उत्साहित थे। उनकी एक पूर्व छात्र प्रोफेसर राजिंदर जीत हंस-गिल ने कहा कि प्रोफेसर बांबा अभी भी अंकगणितीय समस्याओं को हल करने के बारे में चिंतित थे। उन्होंने कहा, ‘उनके निधन से हमें सदमा लगा है। पिछले बुधवार को जब मैं उनसे मिली थी, तो हमने गणित पर चर्चा की थी। वह अस्वस्थ थे, लेकिन यह उन्हें जटिल गणितीय अवधारणा की पेचीदगियों के बारे में पूछने से नहीं रोक सका।’ हालांकि, प्रोफेसर बांबा अपने पीछे ऐसी विरासत छोड़ गए हैं, जिसकी बराबरी गणितीय दुनिया में करना मुश्किल होगा, लेकिन उनकी गर्मजोशी, विनम्रता और ताकत को वे लोग ज्यादा याद रखेंगे, जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते थे। पंजाब विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि प्रो. बांबा ने संस्थान पर अमिट छाप छोड़ी है। कुलपति के रूप में कार्यकाल के दौरान, उन्होंने विश्वविद्यालय के विकास का नेतृत्व किया। ‘हम उन्हें एक दयालु, कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में याद करते हैं, जो एक सच्चे वैज्ञानिक की भावना को साकार करते थे। अपने शरीर को दान करने का उनका निस्वार्थ निर्णय ज्ञान को आगे बढ़ाने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।’