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नये नगर निगम एरिया में प्लॉट लेकर पछता रहे पिंजौर वासी

जब वर्ष 2010 में पिंजौर, कालका नगर पालिकाओं को भंग कर आसपास की 27 पंचायतों को मिलाकर इन्हें नगर निगम पंचकूला में शामिल किया था तब लोगों ने इस उम्मीद से नगर निगम के नए क्षेत्र में जमीन और मकान...
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जब वर्ष 2010 में पिंजौर, कालका नगर पालिकाओं को भंग कर आसपास की 27 पंचायतों को मिलाकर इन्हें नगर निगम पंचकूला में शामिल किया था तब लोगों ने इस उम्मीद से नगर निगम के नए क्षेत्र में जमीन और मकान खरीद लिए थे कि चंडीगढ़, पंचकूला शहरों के साथ सटे अर्ध पहाड़ी क्षेत्र की नयी काॅलोनियां विकसित होंगी लेकिन वर्ष 2020 में दोनों पालिकाओं और आसपास के गांवों को नगर निगम से अलग कर पिंजौर-कालका नगर परिषद गठित कर दी गई। लोगों को तब भी उम्मीद थी कि उन्होंने जहां पर प्लाॅट और मकान लिया है, कम से कम वह एरिया शहरी क्षेत्र तो है जहां पर सरकार द्वारा विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी लेकिन परिणाम इसके एकदम विपरीत हुआ। सरकार ने नवंबर 2020 में अर्बन एक्ट की धारा 7 ए लगाकर पूरे कालका तहसील की जमीनों और मकानों की रजिस्ट्रिी पर प्रतिबंध लगा दिया। लोगों ने विरोध किया तो नगर परिषद के शहरी क्षेत्र के बाहरी गांवों की जमीनों की रजिस्ट्रियों को खोल दिया गया लेकिन दोनों पालिकाओं की पुरानी सीमा के बाहर शामिल किए गए नए गांवों की रजिस्ट्रियों पर प्रतिबंध बरकरार रखा। इसका विरोध करते हुए कई प्रॉपर्टी डीलरों और अन्य लोगों ने लगभग डेढ़ महीने तक धरना प्रदर्शन भी किया था लेकिन आज तक कोई नतीजा नहीं निकला। अब लोगों को शहरी क्षेत्र में रहते हुए भी शहरी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। इतना ही नहीं, उनकी अपनी निजी जमीन पर न तो उनके नए भवनों के नक्शे पास किए जा रहे हैं, न ही काॅलोनियों में मूलभूत सुविधाएं मिल पा रही हैं।

स्थानीय निवासी सीमा, अभिषेक, ललित कुमार, पुनीत आदि ने कहा कि नगर परिषद क्षेत्र में लगभग 80 नई काॅलोनियां हैं जहां हजारों मकान, दुकानें आदि बनी हुए हैं। अभी भी यहां भारी संख्या में खाली प्लॉट पड़े हैं लेकिन रजिस्ट्रियां बंद होने से सब बेकार हैं। लोग न तो मकान खरीद पा रहे हैं न ही बेच पा रहे हैं। ऐसे में लोग अब शहरी क्षेत्र में प्लॉट लेकर पछता रहे हैं।

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