Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

बिगड़ते खानपान से आईबीडी की चपेट में आ रहे मासूम

पीजीआई में रोजाना ओपीडी में आ रहे 6-7 मरीज
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
featured-img featured-img
पीजीआई चंडीगढ़ में आईबीडी के बारे में जानकारी देतीं पैडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी विभाग की एचओडी प्रोफेसर साधना लाल। साथ हैं डॉ. केशव। -ट्रिब्यून फोटो
Advertisement

विवेक शर्मा/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 19 मई

Advertisement

बच्चों की आंतों में सूजन और घाव जैसी गंभीर स्थिति पैदा करने वाली बीमारी इन्फ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (आईबीडी) अब तेजी से पैर पसार रही है। पहले यह बीमारी वयस्कों तक सीमित थी, लेकिन अब इसके मामले बच्चों में चिंताजनक गति से बढ़ रहे हैं। पीजीआई में सोमवार को आयोजित एक विशेष परिचर्चा में विशेषज्ञों ने इस पर गहरी चिंता जताई। पैडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी की एचओडी प्रो. साधना लाल ने बताया कि पांच साल पहले आईबीडी के पूरे साल में सिर्फ 7-8 मामले सामने आते थे, लेकिन अब रोजाना 6 से 7 बच्चे इस बीमारी के साथ संस्थान में पहुंच रहे हैं। उन्होंने बताया कि आईबीडी में आंतों की भीतरी परत में सूजन और घाव हो जाते हैं, जिससे बच्चों को पेट में तेज दर्द, बार-बार दस्त, मल में खून आना, वजन घटना और कमजोरी जैसे लक्षण होते हैं।

बिगड़ता खानपान बना मुख्य कारण

डॉ. साधना के अनुसार, बच्चों की आहार संबंधी आदतों में आए बदलाव, जैसे फास्ट फूड, डीप फ्राई चीजें, रिफाइंड तेल, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स और पैकेज्ड डेयरी उत्पादों का अत्यधिक सेवन इस बीमारी को जन्म दे रहा है। उन्होंने कहा कि इससे बच्चों की पाचन शक्ति कमजोर हो रही है, जिससे गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और हेपेटोलॉजी से जुड़ी अन्य बीमारियां भी बढ़ रही हैं। सलाह दी कि बच्चों को हरी सब्जियों, मौसमी फलों, घर में बना कम मसालेदार और संतुलित भोजन देने की आदत डालनी चाहिए। ऐसा करने से न केवल आईबीडी को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि संपूर्ण पाचन तंत्र भी स्वस्थ बना रहता है।

डॉ. केशव की राय: जीवनशैली में सुधार जरूरी

पीजीआई के विशेषज्ञ डॉ. केशव ने कहा कि आईबीडी का कोई स्थायी इलाज फिलहाल उपलब्ध नहीं है, लेकिन यदि लक्षणों को समय रहते पहचाना जाए और उचित इलाज शुरू किया जाए, तो बीमारी को काबू में रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि समय पर जांच, जीवनशैली में सुधार और चिकित्सकीय सलाह के पालन से बच्चों को इस बीमारी से काफी हद तक राहत मिल सकती है।

Advertisement
×