Good News : PGIMER ने रचा इतिहास, हार्ट फेल्योर मरीज को क्रायोएब्लेशन से दी नई जिंदगी; अब आम लोगों को भी मिलेगा इलाज
उत्तर भारत में पहली बार हुआ एडवांस कार्डियक इंटरवेंशन
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च ने कार्डियक उपचार के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। संस्थान में पहली बार क्रायोएब्लेशन तकनीक से एक गंभीर हृदय रोगी का सफल इलाज कर उसे नई जिंदगी दी गई। यह प्रक्रिया प्रोफेसर डॉ. सौरभ मेहरोत्रा और उनकी टीम ने कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. यशपाल शर्मा के नेतृत्व में की, जो उत्तर भारत के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई है।
यह चिकित्सा हस्तक्षेप उस मरीज पर किया गया, जिसे पहले से पेसमेकर लगाया गया था। हाल ही में वह एट्रियल फाइब्रिलेशन (AF) की चपेट में आ गया- एक ऐसी स्थिति जिसमें दिल की धड़कन अनियमित और असामान्य हो जाती है। इसका परिणाम गंभीर हार्ट फेल्योर के रूप में सामने आया और मरीज को PGI में भर्ती किया गया।
क्रायोएब्लेशन: जब 'ठंड' बन गई जीवनदायिनी ऊर्जा
डॉ. सौरभ मेहरोत्रा के अनुसार, इस जटिल स्थिति में पारंपरिक दवाएं और रेट कंट्रोल तकनीकें कारगर नहीं थीं। मरीज के दिल की लय को नियंत्रित करना आवश्यक था, जिसके लिए क्रायोएब्लेशन तकनीक को चुना गया। इसमें फेफड़ों से आने वाली नसों (pulmonary veins) को ठंडक द्वारा इस तरह से निष्क्रिय किया जाता है कि असामान्य विद्युत संकेत उत्पन्न ही न हों। यह तकनीक विशेष रूप से उन मरीजों के लिए लाभकारी है, जिनके शरीर में पहले से पेसमेकर या अन्य कार्डियक डिवाइस लगे होते हैं।
क्रायोएब्लेशन के कई अहम लाभ हैं: पारंपरिक एब्लेशन की तुलना में बेहतर सुरक्षा। प्रक्रिया में कम समय लगता है। अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि कम। कई AF मरीजों में लंबे समय तक राहत संभव
PGIMER में इस तकनीक की सफलता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब विश्वस्तरीय इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी उपचार केवल महानगरों तक सीमित नहीं रहा। आम मरीजों के लिए भी उन्नत इलाज के रास्ते खुल चुके हैं।
उत्तर भारत के लिए चिकित्सा के नए युग की शुरुआत
PGIMER अब उत्तर भारत का पहला ऐसा सरकारी शिक्षण संस्थान बन गया है, जहां क्रायोएब्लेशन जैसी उन्नत तकनीक उपलब्ध है। यह उन सैकड़ों मरीजों के लिए राहत की खबर है, जो वर्षों से AF और इससे जुड़ी जटिलताओं के कारण मानसिक और शारीरिक तकलीफ झेल रहे थे।

