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FPI Withdrawal विदेशी निवेशकों की 'बिग सेल', भारतीय बाजार से 1.42 लाख करोड़ की सबसे तेज निकासी

नयी दिल्ली, 16 मार्च (एजेंसी) FPI Withdrawal भारतीय शेयर बाजार में इन दिनों विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की भारी बिकवाली का दौर जारी है। मार्च के पहले पखवाड़े में ही एफपीआई ने 30,000 करोड़ रुपये से अधिक के शेयर बेच...
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नयी दिल्ली, 16 मार्च (एजेंसी)

FPI Withdrawal भारतीय शेयर बाजार में इन दिनों विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की भारी बिकवाली का दौर जारी है। मार्च के पहले पखवाड़े में ही एफपीआई ने 30,000 करोड़ रुपये से अधिक के शेयर बेच दिए, जिससे निवेशकों की चिंता बढ़ गई है। जनवरी और फरवरी में पहले ही जबरदस्त निकासी देखी जा चुकी थी और अब मार्च में भी यही ट्रेंड जारी है। तीन महीने में 1.42 लाख करोड़ की निकासी हो चुकी है।

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अगर आंकड़ों पर नजर डालें, तो इस साल एफपीआई की निकासी भारतीय बाजार के लिए बड़ा झटका साबित हो रही है:

जनवरी – 78,027 करोड़ रुपये

फरवरी – 34,574 करोड़ रुपये

मार्च (13 मार्च तक) – 30,015 करोड़ रुपये

इस तरह 2025 में अब तक कुल 1.42 लाख करोड़ रुपये (16.5 अरब डॉलर) की निकासी हो चुकी है, जो बाजार के लिए एक गंभीर संकेत है।

एफपीआई की बिकवाली क्यों बढ़ रही है?

विश्लेषकों का कहना है कि कई वैश्विक और घरेलू कारणों के चलते विदेशी निवेशक भारत से अपना पैसा निकाल रहे हैं।

अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में उछाल – अमेरिका में ऊंची ब्याज दरें निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन गई हैं।

डॉलर की मजबूती और रुपये में गिरावट – इससे भारत में निवेश करने का लाभ कम हो गया है।

चीन का बढ़ता आकर्षण – एफपीआई भारत से पैसा निकालकर चीन के शेयर बाजार में निवेश बढ़ा रहे हैं, क्योंकि वहां उन्हें ज्यादा मुनाफे की संभावना दिख रही है।

विशेषज्ञों की राय : आगे क्या?

मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट के हिमांशु श्रीवास्तव कहते हैं कि वैश्विक अनिश्चितताओं और अमेरिका की व्यापार नीतियों को लेकर फैली दुविधा ने निवेशकों को जोखिम से दूर कर दिया है। भारत समेत अन्य उभरते बाजारों पर इसका असर पड़ा है। जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के वी. के. विजयकुमार का मानना है कि डॉलर इंडेक्स में हालिया गिरावट अमेरिका में फंड फ्लो को सीमित कर सकती है, लेकिन वैश्विक व्यापार युद्ध की अनिश्चितता के चलते सोने और डॉलर जैसी सुरक्षित संपत्तियों में निवेश बढ़ने की संभावना है।

एफपीआई की बिकवाली के बीच भारतीय खुदरा और घरेलू संस्थागत निवेशकों ने बाजार को सहारा दिया है। हालांकि, अगर विदेशी निवेशकों की यह निकासी जारी रही, तो इसका प्रभाव लंबी अवधि तक देखने को मिल सकता है।

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