रिज़वान अंसारी
ईद-उल-फितर को तो खुशियों का पर्व कहा जाता है और इसमें तमाम चीज़ें शामिल होती हैं। लेकिन, इसमें सबसे बड़ी खुशी यही है कि हम दूसरों के लिए कुछ ऐसा करें, जो हमारे दिल को सुकून पहुंचाए…
मुस्लिमों के सबसे पवित्र महीनों में से एक रमज़ान अब खत्म होने के करीब है। पूरे माह रोज़े रखने की खुशी में रमज़ान खत्म होते ही ईद-उल-फितर मनाई जाएगी। लेकिन, पिछले साल की तरह ही इस साल भी ईद के इस पवित्र पर्व के कोरोना महामारी की भेंट चढ़ने की आशंका है। कई राज्यों में लॉकडाउन होने से इस साल भी ईद की नमाज़ ईदगाह के बजाय घरों में ही अदा करने की संभावना है। सामाजिक और धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा देने वाला ईद का व्यापक उद्देश्य इस साल भी कोरोना संकट के कारण पूरा होता नहीं दिख रहा है। इस दिन लोग पड़ोसियों और दोस्तों को घर बुलाते हैं। उनसे गले मिलते हैं। लेकिन, बढ़ती महामारी के कारण यह सबकुछ मुमकिन नहीं हो सकेगा।
कोरोना की यह दूसरी लहर पिछले साल के मुकाबले ज्यादा कहर बरपा रही है। अब हर दिन पास-पड़ोस और रिश्तेदारों में किसी न किसी के पीड़ित होने की खबरें सुनने को मिलती हैं, जबकि पिछले साल ऐसा नहीं था। इससे इतर, पिछले साल आमतौर पर सिर्फ मजदूर वर्ग के लोग ही आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे। क्योंकि, नौकरीपेशा और मध्यम वर्ग के पास कुछ जमापूंजी थी, जिसका वे उपयोग कर रहे थे। लेकिन, अब यह तबका भी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इसकी एक वजह है कि अब कमोबेश हर घर में कोरोना ने दस्तक दे दी है। रमज़ान का यह महीना आर्थिक तंगी से गुजर रहे इन लोगों के लिए प्रासंगिक है।
तोहफे के रूप में दें :
जब रिश्तेदारों को ज़कात का माल दिया जाए, तब इसे तोहफा या गिफ्ट का नाम दे दिया जाए। इससे लेने वालों को शर्मिंदगी महसूस नहीं होगी। कई मध्यम वर्ग परिवार ऐसे हैं जिनके मुखिया की नौकरी चली गई है और वह परिवार दो वक्त का खाना भी नहीं जुटा पा रहा है। ऐसे में कोशिश हो कि ऐसे परिवारों की पहचान कर, उनकी ज़कात या सदक़ा के पैसों से मदद की जाए। यह भी गौर करना होगा कि रिश्तेदारों की मदद करने में हम गरीबों को न भूलें। उन गरीबों पर भी ध्यान दें, जिनका इस दुनिया में कोई सहारा नहीं है।
साल भर की कमाई पर दान
इस महीने में पूरे साल भर की कमाई पर ज़कात (दान) देने का नियम है। मालदार मुस्लिम इस माह में गरीबों की भलाई के लिए ज़कात देते हैं। वैसे तो लोग हमेशा ही दान देते रहते हैं, लेकिन रमज़ान में ज़कात देने का बेहद खास मुकाम है। जो लोग मालदार हैं उन पर गरीबों को ज़कात देना वाजिब (अनिवार्य) है। इसका नियम है कि घर में रखे सोने, चांदी, कैश और दुकानों के माल की पूरी कीमत का ढाई फीसद गरीबों को देना होता है। लेकिन, यह प्रावधान सिर्फ गरीबों तक सीमित नहीं है। दरअसल, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को लेकर इस्लाम की शिक्षा बेहद प्रेरक है। इनसे मोहब्बत करने, उनका ख्याल रखने और उनकी इज्जत करने की शिक्षा इस्लाम में दी जाती है। जक़ात के बारे में रिश्तेदारों और पड़ोसियों का ख्याल रखने की बात कही गई है। प्रावधान है कि अगर रिश्तेदारों में कोई ऐसा हो जो ज़रूरतमंद हो, तो ज़कात पर सबसे पहला हक उन्हीं का बनता है। गरीब रिश्तेदार को ज़कात देने के दो फायदे हैं। एक अपने रिश्तेदार के साथ ‘सिला रहमी’ करना और दूसरा अपने माल का ज़कात देने की अलग नेकी मिलती है।
पैगंबर मोहम्मद साहब ने इसे ‘सिला रहमी’ का नाम देते हुए कहा- ‘अपने रिश्तेदारों पर रहम किया करो और उनका ख़्याल रखा करो’। यानी सिला रहमी का अर्थ है- अपने रिश्तेदारों से बेहतर सुलूक करना।