शारदीय नवरात्रि में नवदुर्गाओं की पूजा प्रकृति की मातृ शक्ति को समर्पित है, जो सुख, समृद्धि, शांति, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक जागरण प्रदान करती है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति विज्ञान, मातृभाव, सांस्कृतिक आस्था और चेतना का सुंदर समागम है, जो मानव जीवन में संतुलन, ऊर्जा और सकारात्मक दृष्टिकोण का संचार करता है।
दुर्गा सप्तशती में भगवती स्वयं कहती हैं कि ‘शारदीय नवरात्र’ में जो वार्षिक महापूजा का अनुष्ठान किया जाता है, उस अवसर पर दुर्गा सप्तशती का पाठ व श्रवण करने से सभी मनुष्यों पर मेरी कृपा दृष्टि बनी रहती है। सुख-समृद्धि का एक नया वातावरण जन्म लेता है। शक्ति पूजा का संदेश है कि शारदीय नवरात्र को महज एक धार्मिक पर्व ही न माना जाये, बल्कि इसे प्रकृति पूजा के रूप में मनाया जाये।
मातृभाव से पूजन
प्राचीनकाल से ही शक्ति पूजा के माध्यम से प्रकृति विज्ञान के गूढ़ रहस्यों से मानव समाज को अवगत कराता आया है। नवरात्र के अवसर पर प्रकृति को मातृभाव से पूजने का यही अर्थ है कि सृष्टि को नियमन करने वाली प्रकृति परमेश्वरी से हमारा प्रत्यक्ष साक्षात्कार हो सके। मार्कण्डेय ऋषि को भी यह चिंता थी कि प्रकृति विज्ञान के धरातल पर भी मनुष्य नवदुर्गाओं के दर्शन कर सके। देवी कवच में जिन नौ दुर्गाओं के नाम आए हैं।
प्रथम शैलपुत्री
पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से पर्वत राज हिमालय की प्रधान भूमिका है। यह पर्वत मौसम नियंता होने के साथ-साथ राजनीतिक सुरक्षा और आर्थिक संसाधन भी मुहैया करता है। प्राचीनकाल से ही हिमालय क्षेत्र ने धर्म और संस्कृति के विभिन्न स्रोत भी प्रवाहित किये। हिमालय क्षेत्र के इसी राष्ट्रीय महत्व को उजागर करने के लिये ही देवी के नौ रूपों में ‘शैलपुत्री’ के रूप में स्मरण करके सर्वप्रथम स्थान दिया गया है।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी
देवी का दूसरा नाम ब्रह्मचारिणी है। इस देवी को प्रकृति के सच्चिदानंदमय ब्रह्म स्वरूप के रूप में निरूपित किया जा सकता है। ऋग्वेद के देवी सूक्त में अम्भृण ऋषि की पुत्री वाग्देवी ब्रह्मस्वरूपा होकर समस्त जगत को ज्ञानमय बनाती है और अपने रुद्रबाण से अज्ञान का विनाश करती है।
तृतीय चंद्रघण्टेति
देवी की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा के नाम से प्रसिद्ध है। सुवर्ण सदृश शरीरवाली इस देवी के तीन नेत्र और दस हाथ हैं। मस्तक में घंटा के आकार का अर्द्ध चंद्र विद्यमान रहने के कारण चंद्रघण्टा कहा जाता है।
शस्त्र-अस्त्र से सुशोभित सिंहवाहिनी यह देवी प्रकृति विनाशक दैत्यों का संहार करने के लिये प्रहरी का दायित्व संभालती हैं किन्तु प्रकृति उपासकों के लिए यह अपना लावण्यमयी दिव्य रूप उद्भासित करती हैं, इसलिए सप्तशती के टीकाकारों ने इसे प्रकृति के आल्हादक और सौंदर्यमय शक्तित्व के रूप में परिभाषित किया है।
कूष्माण्डेति चतुर्थकम्
चौथी दुर्गा का नाम कूष्माण्डा है। किंचित हास्य मुद्रा में ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण यह शक्ति कूष्माण्डा कहलाई। सूर्य मंडल में निवास करने वाली इस देवी की ऊर्जा दसों दिशाओं में व्यापक रहती है। सिंहवाहिनी, अष्टभुजा यह देवी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहती है। कुम्हड़े की बलि प्रिय होने के कारण भी यह कूष्माण्डा के नाम से प्रसिद्ध है।
पंचम स्कन्दमातेति
पांचवीं दुर्गा का नाम स्कन्दमाता है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बनकर तपस्या करने के बाद शिव से विवाह किया और बाद में स्कंद इनके पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। पौराणिक मूर्ति विज्ञान के अनुसार इस देवी की तीन आंखें और चार भुजाएं हैं। पद्मासना इस देवी की गोद में स्कंद नामक बालक विराजमान है। आधुनिक पर्यावरण विज्ञान के संदर्भ में स्कंदमाता प्रकृति को माता के समान देखने का ज्ञान प्रदान करती हैं। अथर्ववेद में माता भूमि पुत्रोहम पृथ्विया: का प्रकृति दर्शन ही देवी के इस पौराणिक चरित्र में साकार हुआ है।
षष्ठं कात्यायनी
कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर छठी दुर्गा पुत्री रूप से कात्यायन आश्रम में प्रकट हुई, इसलिए कात्यायनी कहलाई। यह भी प्रसिद्ध है कि वृन्दावन की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मार्गशीर्ष के महीने में यमुना नदी के तट पर कात्यायनी की पूजा की थी। इससे यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी मानी जाती है। तीन नेत्र और आठ भुजाओं वाली इस देवी का वाहन सिंह है।
सप्तमं कालरात्रीति
दुर्गा की सातवीं शक्ति ‘कालरात्रि’ है। इसे महाकाल आदि की शक्ति ‘काली’ या ‘महाकाली’ के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्र की सातवीं तिथि को इस कालरात्रि का विशेष स्तवन किया जाता है। प्रलय तथा विध्वंस के प्राकृतिक प्रकोप देवी के इसी भयावह रूप की अभिव्यक्ति है।
महागौरीति चाष्टमम् : ‘काली’ के भयावह रूप से शिव भी स्तब्ध रह गये थे, तब उन्होंने इस देवी को आक्रोश से ‘काली’ कह दिया। इस पर प्रकृति ने अपने इस भयावह रूप से मुक्ति पाने के लिए घोर तपस्या की और स्वयं को गौरवपूर्ण बना दिया। देवी का यह आठवां रूप ‘महागौरी’ के नाम से लोकविश्रुत है। सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् को व्यक्त करने वाली इसी सौम्य और सात्विक प्रकृति की मुद्रा की लोककामना की जाती है, इसलिए दुर्गाष्टमी के दिन इसी लोक कल्याणी महाशक्ति की पूजा का विशेष अनुष्ठान होता है।
नवमं सिद्धिदात्री
दुर्गा की नौवीं शक्ति ‘सिद्धिदात्री’ कहलाती है। विश्व के सभी कार्यों को साधने वाली देवी के इस रूप को सर्वार्थसाधिका प्रकृति के संदर्भ में भी देखा जा सकता है। ऋग्वेद की ब्रह्मस्वरूपा वाग्देवी स्वयं कहती हैं कि मैं जिसकी रक्षा करना चाहती हूं, उसे सर्वश्रेष्ठ बना दूं और सर्वज्ञान संपन्न बृहस्पति बना दूं।
देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं और वे अर्द्ध नारीश्वर कहलाये। सिंह वाहिनी, चतुर्भुजा यह देवी प्रसन्नवदना है। दुर्गा के इस स्वरूप की देव, ऋषि, सिद्ध, योगी, साधक व भक्त मोक्ष प्राप्ति के लिए उपासना करते हैं। विभूति फीचर्स