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रोहिणी व्रत से पूर्ण होती हैं मनोकामनाएं

व्रत 6 मार्च
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रोहिणी व्रत जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे विशेष रूप से शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है। इस व्रत का पालन आत्मा के विकारों को दूर करने और सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। व्रती भगवान वासुपूज्य की पूजा करके जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि की कामना करते हैं।

चेतनादित्य आलोक

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‘रोहिणी’ एक नक्षत्र है, जिसे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हिन्दू एवं जैन पंचांगों में वर्णित कुल सत्ताईस नक्षत्रों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस नक्षत्र में किया जाने वाला व्रत ‘रोहिणी व्रत’ कहलाता है। जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार प्रायः प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को विशेष रूप से जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, उसी दिन को यह व्रत किया जाता है। इस प्रकार, प्रत्येक वर्ष बारह रोहिणी व्रत आते हैं। प्रत्येक महीने रोहिणी नक्षत्र की अवधि निश्चित होती है। जब उदया तिथि अर्थात‌् सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है, तभी रोहिणी व्रत किया जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार रोहिणी व्रत का पालन तीन, पांच या सात वर्षों तक लगातार किया जाता है। हालांकि, इसकी उचित अवधि पांच वर्ष, पांच महीने की होती है। इस बार रोहिणी व्रत 6 मार्च यानी बृहस्पतिवार को किया जाएगा।

जैन समुदाय का महत्वपूर्ण व्रत

रोहिणी व्रत जैन समुदाय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत में जैन धर्म के अनुयायी व्रत रखकर वासुपूज्य स्वामी की पूजा करते हैं। वैसे तो, इस व्रत को पुरुष और महिलाएं दोनों कर सकते हैं, किंतु महिलाओं के लिए यह व्रत अनिवार्य माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत आत्मा के विकारों को दूर कर कर्म के बंधनों से छुटकारा दिलाने में सहायक होता है। इस व्रत में पूरे विधि-विधान के साथ भगवान वासुपूज्य की पूजा-आराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त रोहिणी व्रत का श्रद्धापूर्वक पालन करते हैं, वे सभी प्रकार के दु:ख एवं दरिद्रता से मुक्त हो जाते हैं तथा उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

आती है सुख-समृद्धि

इस दिन व्रत रखने से भगवान वासुपूज्य और माता रोहिणी के आशीर्वाद से घर से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही, उस घर में सदैव धन की देवी मां लक्ष्मी का वास होता है और ऋण से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के करने से पति की आयु लंबी होती है और स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। वहीं, नवविवाहित महिलाएं पुत्र की प्राप्ति के लिए रोहिणी व्रत करती हैं। इतना ही नहीं, इस व्रत के पुण्य प्रभाव से ईर्ष्या और द्वेष जैसे भाव भी दूर होते हैं तथा घर में सुख-समृद्धि आती है। ध्यान रहे कि इस व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है, जबकि इसका समापन उद्यापन द्वारा ही किए जाने का विधान है।

क्या करें और क्या न करें

इस व्रत को करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने के बाद व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात‌् भगवान श्री सूर्य नारायण को जल अर्पित करना चाहिए। पूजा से पूर्व घर के पूजा-स्थल को स्वच्छ करके वहां भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। सामान्यतः इस व्रत में सूर्यास्त होने से पहले पूजा संपन्न करके फलाहार किया जाता है, क्योंकि इस व्रत में सूर्यास्त के बाद कुछ भी खाना वर्जित होता है। व्रत के अगले दिन पूजा-पाठ करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। व्रत के दिन भूखों, निर्धनों एवं जरूरतमंदों को दान अवश्य करना चाहिए। साथ ही, व्रत के दौरान व्रती को यथासंभव सहज, सरल एवं सात्विक रहते हुए समय व्यतीत करना चाहिए।

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