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विद्वता और विनम्रता

एकदा

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फ्रांस में नोके नामक संत, तपस्वी और विद्वान थे। वहां के राजा चार्ल्स उनकी विद्वता और गुणों के बहुत कायल थे और उन्हें सम्मानित कर अपने दरबार में लाना चाहते थे। लेकिन जब नोके इसके लिए तैयार नहीं हुए, तो राजा स्वयं उनके मठ में पहुंच गए। राजा और नोके के बीच अब धर्म के साथ-साथ कई अन्य विषयों पर भी वार्तालाप हुई। राजा ने उनसे कुछ राजनीतिक विषयों पर भी सलाह ली। राजा के दरबारियों को यह सब अच्छा नहीं लगा। मुख्य सलाहकार तो क्रोध से नोके का अपमान करने को तैयार हो गया। अगले दिन, जब नोके राजा और अन्य संभ्रांत नागरिकों के साथ चर्च में प्रार्थना कर रहे थे, तो वह सलाहकार क्रोधित होकर अंदर आया और नोके के पास जाकर अपशब्द कहे, ‘तुम बड़े विद्वान और ईश्वर के निकट माने जाते हो। क्या तुम मुझे बता सकते हो कि ईश्वर इस समय क्या कर रहे हैं?’ संत ने तुरंत मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘पुत्र, इस समय पृथ्वी पर जो दीन हैं, उन्हें उन्नत कर रहे हैं और जो अहंकारी हैं, उन्हें नीच बना रहे हैं।’ संत की मधुर वाणी में संयमित जवाब सुनकर उस अहंकारी सलाहकार का सारा घमंड चूर-चूर हो गया।

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