मार्टिन लूथर किंग एक ऐसी दुनिया में बड़े हुए, जहां रंगभेद के कारण अश्वेत लोगों को हीन दृष्टि से देखा जाता था। किसी को भी यह विश्वास नहीं था कि कभी यह स्थिति बदलेगी। एक दिन उन्हें गोरे लोगों की भयंकर प्रताड़ना झेलनी पड़ी। इस अन्याय से वे भीतर तक हिल गए। तभी उन्होंने संकल्प लिया कि वे इस दुनिया से रंगभेद और गुलामी की सोच को जड़ से मिटाकर रहेंगे। मार्टिन लूथर किंग ने अकेले ही रंगभेद के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। उनका अडिग विश्वास और संकल्प धीरे-धीरे असर दिखाने लगा। गोरे लोगों में डर पैदा होने लगा और साहस जुटाकर कुछ लोग उनके साथ आ खड़े हुए। धीरे-धीरे उनका आंदोलन एक जनआंदोलन बन गया और अंततः उनके संघर्ष की जीत हुई। रंगभेद की नीति समाप्त हुई और सबको समान अधिकार प्राप्त हुए। एक पत्रकार ने उनसे पूछा, ‘इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आप रंगभेद के खिलाफ कैसे खड़े रहे?’ मार्टिन लूथर किंग मुस्कराकर बोले, ‘सिर्फ विश्वास के बल पर। जब मुझे सीढ़ियां नहीं दिख रही थीं, तब मैंने पहले पायदान पर विश्वास के साथ कदम रखा, और धीरे-धीरे सारी सीढ़ियां पार कर लीं।’ आज भी उनका संघर्ष, दृढ़ निश्चय और विश्वास पूरी दुनिया को प्रेरणा देता है।
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