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जहां पांडवों ने भी की उपासना

स्तंभेश्वर महादेव
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स्तंभेश्वर महादेव मंदिर दिवस में दो बार सुबह और शाम पल भर के लिए समुद्र में अदृश्य हो जाता है। मंदिर के दर्शन तभी संभव है जब समुद्र में ज्वार कम हो और समुद्र का पानी तट से उतरने लगे। इस मंदिर के ओझल होने का कारण समुद्र में उठा ज्वार है। ज्वार के कारण पानी के उद्वेग के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। मंदिर भी सागर की गहरी लहरों में समा जाता है। तब मंदिर तट से भी दिखना बंद हो जाता है। मंदिर का समय पूर्णिमा, अमावस्या के अनुसार बदलता रहता है।

प्रभा पारीक

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स्तंभेश्वर महादेव मंदिर शिव का एक ऐसा अनोखा शिवलिंग है जिसका अभिषेक स्वयं समुद्र अपने जल से प्रतिदिन दो बार करता है। यह मंदिर अरब सागर में स्थित है और दिन में दो बार समुद्र में डूब कर अदृश्य हो जाता है। समुद्र का खारा जल इस शिवलिंग को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, वर्षों से खारे जल में भी शिवलिंग सुरक्षित है। इसे महादेव की अपार महिमा माना जाता है।

यह मंदिर गुजरात के भरूच शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर सागर विस्तार के निकट जम्बुसर तालुका के नजदीक कावि, कंबोई गांव में स्थित है। जो बड़ौदा शहर से 85 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर काबे तट पर स्थित है। गुजरात के गांधीनगर से लगभग 175 किलोमीटर दूर प्राचीन सोमनाथ मंदिर से जल मार्ग से करीब 15 किलोमीटर और सड़क मार्ग से 448 किलोमीटर की दूरी पर ही है।

इस मंदिर में शिवलिंग की ऊंचाई 4 फीट और उसका व्यास 2 फीट है। यह शिवलिंग स्वयंभू माना जाता है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं। मान्यता है कि शिवलिंग तो आदिकाल से ही था, जिसकी पूजा ऋषि-मुनि देवता करते थे। शिवलिंग के चारों ओर व तट पर मंदिर का निर्माण सातवीं सदी के पास हुआ माना जाता है। जिसे चावड़ी संतों द्वारा करवाया माना गया है। बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण आदि शंकराचार्य द्वारा भी करवाया गया था।

इस मंदिर का उल्लेख शिव महापुराण में मिलता है। इसके अलावा स्कंद पुराण में भी इस मंदिर शिवलिंग का उल्लेख है। यह वह स्थान भी है जहां महीसागर नदी का जल अरब सागर में आकर मिलता है। इसलिए यह एक संगम स्थल है इस स्थान को निष्कलंक महादेव मंदिर भी कहा जाता है

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर दिवस में दो बार सुबह और शाम पल भर के लिए समुद्र में अदृश्य हो जाता है। मंदिर के दर्शन तभी संभव है जब समुद्र में ज्वार कम हो और समुद्र का पानी तट से उतरने लगे। इस मंदिर के ओझल होने का कारण समुद्र में उठा ज्वार है। ज्वार के कारण पानी के उद्वेग के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। मंदिर भी सागर की गहरी लहरों में समा जाता है। तब मंदिर तट से भी दिखना बंद हो जाता है। मंदिर का समय पूर्णिमा, अमावस्या के अनुसार बदलता रहता है। यहां आने वाले भक्तों को प्रतिदिन के दर्शन के समय ज्वार की जानकारी दी जाती है जिससे ज्वार भाटे के समय की जानकारी रहने पर उन्हें किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। क्योंकि पानी के उतरने और चढ़ने का समय दिवस तिथि के अनुसार तय होता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तारकासुर ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। तब भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए। उसने शिव से वरदान मांगा कि उसे शिवपुत्र ही मार सकेगा, जो मात्र 6 वर्ष की उम्र का ही हो। भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान मिलने के पश्चात तारकासुर अभिमान में आकर उत्पात मचाने लगा। तब देवतागण भगवान शिव की शरण में पहुंचे। भगवान शिव व शक्ति से उत्पन्न पुत्र का तारकासुर का वध करने को श्वेत पर्वत कुंड में 6 दिन के कार्तिकेय का जन्म हुआ जिसकी देखभाल कृतिकाएं कर रही थीं। जिसके 6 मस्तिष्क, 4 आंख 12 हाथ थे। बालक कार्तिक जो मात्र 6 दिवस की आयु के थे उन्होंने ताड़कासुर का वध कर दिया। जब कार्तिकेय को यह पता चला की तारकासुर उसके पिता भगवान शिव के परम भक्त थे तो वह काफी व्यथित हुए। देवताओं के परामर्श व भगवान विष्णु की सलाह से कार्तिकेय ने ताड़कावध स्थल पर शिवालय बनवाया। इससे उसका मन शांत हुआ। इस शिवालय की स्थापना सभी देवताओं ने मिलकर की, जिसका नाम स्तंभेश्वर महादेव रखा गया। मान्यता के अनुसार इस स्थान का संबंध पांडवों से भी बताया जाता है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव इसी शिवलिंग के पास आकर अपने पापों से मुक्त हुए थे। स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में हर अमावस्या को मेला लगता है। प्रदोष, पूनम, एकादशी को यहां पूरी रात चारों प्रहर की पूजा-अर्चना होती है।

स्कंद पुराण में इस मंदिर का वंदन किया गया है। इस मंदिर में लगभग 150 वर्ष से पूजा-पाठ आरंभ किया गया था। 24 घंटे में 12 घंटे दर्शन होते हैं और 12 घंटे पानी रहता है। जब समुद्र का पानी उतरने लगता है तो भक्त और मंदिर के पुजारी तत्परता से तैयार रहते है। पानी की धार से मंदिर मार्ग को साफ करते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं। सागर का पानी अपने साथ जो रेत लाता है उसे प्रतिदिन साफ किया जाता है। कावि गांव की खास मिठाई कावी हलवा, हलवासन है, जो महादेव का प्रसाद है।

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