संत नामदेव जी का भगवान विठ्ठल से प्रेम इतना गहरा था कि वे सदैव प्रार्थना करते रहते थे — ‘हे भगवान, कभी मेरे घर आकर भोजन करें।’
भगवान ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन कहा —‘नामदेव, एक दिन मैं तेरे घर अवश्य आऊंगा, पर आज तुझसे एक निवेदन है।’
भगवान बोले — ‘आज तू मेरी जगह मंदिर में खड़ा हो जा, और मैं तेरे घर जाकर भोजन करूंगा।’
यह कहकर भगवान ने नामदेव जी को अपना विठ्ठल रूप धारण करवा दिया और उन्हें गर्भगृह में खड़ा कर दिया।
भगवान ने कहा —‘तेरे ऊपर कई परीक्षाएं आएंगी। पुजारी आएंगे, घंटे–घड़ियाल बजेंगे, तुझे नींद आएगी, पर आंख मत खोलना। अभिषेक होगा, तेरे ऊपर ठंडा जल, दूध, दही और शहद डाला जाएगा — पर तू हिलना मत। तेरे मुख पर मक्खन–मिश्री लगाई जाएगी, भूख लगने पर भी तू उसे मत चाटना।
हजारों भक्त दर्शन करने आएंगे, तेरे चरण छुएंगे, रोएंगे, अपने दुख-दर्द कहेंगे। परंतु किसी की समस्या का समाधान मत करना, क्योंकि यह सब कर्म का विधान है।’
नामदेव जी ने भगवान की सारी बातें विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लीं। इतना कहकर भगवान नामदेव जी के घर भोजन के लिए चले गए।
नामदेव जी की माता ने प्रभु का स्वागत किया और प्रेमपूर्वक गर्मागर्म रोटियां परोसने लगीं।
इधर मंदिर में नामदेव जी विठ्ठल रूप में गर्भगृह में खड़े थे और ठाकुर जी के निर्देशों का पालन कर रहे थे। पुजारी आए, घंटे–घड़ियाल बजे, अभिषेक हुआ — शीतल जल, दही और शहद से भगवान को स्नान कराया गया। नामदेव जी स्थिर खड़े रहे। भक्तों ने उनके चरणों में सिर झुकाया, पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
कुछ समय बाद भगवान ने नामदेव जी की परीक्षा लेने का निश्चय किया। वे साधारण वेश में मंदिर पहुंचे और देखा कि नामदेव जी विठ्ठल रूप में गर्भगृह में खड़े हैं।
भगवान ने मन ही मन कहा—‘नामा, अब तो उतर जा।’
नामदेव ने उत्तर दिया—‘भगवान, आपने कहा था कि हिलना मत— इसलिए मैं यहां से नहीं हिलूंगा।’
भगवान ने पुनः कहा— ‘नामा, मैं तुझसे विनती कर रहा हूं।’
नामदेव बोले — ‘यदि मैं हिला तो पुजारी मुझे पहचान लेंगे और मेरी पिटाई करेंगे।’
यह सुनकर भगवान प्रेमवश नामदेव जी के चरणों से लिपट गए। यह दृश्य देखकर नामदेव जी की आंखों से अश्रुधारा बह निकली।
नामदेव बोले—‘प्रभु, मैंने तो केवल यह प्रार्थना की थी कि आप मेरे घर भोजन करें, परंतु आपने मेरी भक्ति को इतना ऊंचा बना दिया कि आज आप मेरे चरणों में झुक रहे हैं।’
यह सुनकर भगवान ने नामदेव जी को गले से लगा लिया और कहा—‘नामा, तेरी भक्ति अतुलनीय है।’ तब से यह मान्यता है कि पंढरपुर के मंदिर में वर्ष में एक दिन भगवान विठ्ठल के स्थान पर संत नामदेव जी विराजमान होते हैं, और भक्त उनके चरणों में प्रणाम करते हैं।
यही नहीं, पंढरपुर मंदिर की सीढ़ियों के नीचे नामदेव जी और उनके परिवार की समाधि स्थित है। नामदेव जी की यह इच्छा थी कि जो भी भक्त दर्शन करने आएं, वे उनके ऊपर से गुज़रें, ताकि उनके चरणों की रज उन्हें प्राप्त हो सके।