दीप चंद भारद्वाज
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाए जाने वाले पर्व रामनवमी का विशेष महत्व है। धरती पर असुरों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने त्रेता युग में इसी दिन पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में श्री राम के रूप में अवतार लिया। श्री राम का चरित्र उदात्त आध्यात्मिक दिव्य गुणों से अलंकृत है। विलक्षण प्रतिभा, अत्यंत विद्यावान एवं तेजस्वी, धैर्यशाली, जितेंद्रिय एवं मानवीय मर्यादाओं के स्तंभ आदि सभी गुणों से राम का जीवन परिपूर्ण है। श्रीराम पापी दुष्टों का दमन करने वाले नीति निपुण धर्मात्मा हैं। श्री राम प्रजावत्सल एवं शरणागत को शरण देने वाले हैं। ईश्वरीय विशिष्टता और असाधारण गुणों के स्वामी होते हुए भी राम अपने समस्त क्रियाकलापों को सामान्य मानव की तरह निर्वहन करते हैं। राम के जीवन में अनेक संदेश हैं।
एकता के सूत्रधार : राम का पावन चरित्र जाति, संप्रदाय एवं पक्षपात से ऊपर है। वह समाज की एकता के सूत्रधार हैं। शबरी की कुटिया में नतमस्तक होकर जाना, निषाद राज का आतिथ्य स्वीकार करना, जंगलों में रहने वाले समाज को अपने मृदुल व्यवहार से जोड़ना आदि सभी कार्यों से उनकी सामाजिक सद्भावना का पता चलता है। प्रभु राम ने अपनी निपुण शस्त्र विद्या का प्रयोग ऋषि, मुनि, संतों के आध्यात्मिक तप और यज्ञ की रक्षा हेतु किया।
धैर्य और त्याग : भगवान श्रीराम धैर्य, विनम्रता एवं मर्यादा की प्रतिमूर्ति हैं। राज्य अभिषेक के अवसर पर 14 वर्ष के वनवास का समाचार सुनकर श्री राम के मुखमंडल पर किंचित मात्र भी प्रभाव न पड़ा। बड़ी नम्रता से इस महामानव ने अपने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य किया। धैर्य और त्याग का ऐसा अनूठा उदाहरण कहीं और मिलना बड़ा दुर्लभ है। आदि कवि वाल्मीकि ने उनके विषय में कहा है- ‘श्रीराम गाम्भीर्य में सागर के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं।’ तुलसीदास ने श्रीराम को ईश्वरीय सत्ता के समान संपूर्ण सृष्टि का कल्याणकर्ता स्वीकार किया है। तुलसी के राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। तुलसीदास जी रामचरितमानस में कहते हैं कि- ‘रामचरण रति जो चह अथवा पद निर्वाण, भाव सहित सो यह कथा करत श्रवण पुट पान।’ जो मनुष्य मोक्ष पद चाहता है वह इस पावन रामकथा रूपी अमृत को प्रेमपूर्वक श्रद्धा भक्ति सहित अपने कान रूपी दोने से पिए।
सांस्कृतिक विरासत : राम केवल दो अक्षर का नाम नहीं, अपितु प्रत्येक प्राणी में रमी हुई विराट सत्ता है। यह संपूर्ण जग राममय है। श्रीराम का स्वरूप सगुण भी है और निर्गुण भी। इसी विषय में कबीर जी ने कहा है- ‘निर्गुण राम जपहु रे भाई।’ राम संपूर्ण प्रजा के पिता के समान पालक और रक्षक हैं। भगवान राम का हृदय प्रत्येक प्राणी के प्रति वात्सल्य, स्नेह और ममता से परिपूर्ण है। प्रभु श्रीराम के हृदय में अपने शत्रुओं के लिए भी वैरभाव नहीं है। रावण का वध करने के पश्चात उन्होंने पूरे विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार करवाया। भगवान राम का चरित्र संपूर्ण मानवता के लिए अनुकरणीय है, न केवल भारतवर्ष अपितु कंबोडिया, इंडोनेशिया, मॉरीशस आदि देशों में भी प्रभु राम के चरित्र को स्मरण किया जाता है। प्रभु राम ने एक न्यायकारी उत्तम राजा, श्रेष्ठ आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई के रूप में अपना जीवन यापन किया। संपूर्ण भारतीय जनमानस की अंतरात्मा राम से जुड़ी हुई है। हमारे जीवन की अंतिम यात्रा भी इसी पवित्र राम नाम से पूर्ण होती है। राम के महान चरित्र की उच्च वृत्तियां जनमानस को शांति और विश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत करती हैं।