एक बार संत प्रफुल्लानंद के पास युवक आया जो आत्मिक दुख से भरा हुआ था। संत ने उससे अनेक प्रश्न किये, जिनके उत्तर से यह बात सामने आई कि यह युवक अपने साथियों से धोखा, छल आदि पाकर गहरे अवसाद में जी रहा है। संत उसके भोलेपन तथा भावुकता को महसूस कर रहे थे। संत ने उसे एक सुझाव दिया कि उनके कार्यालय में एक दायित्व रिक्त है। तकरीबन चार घंटे रोजाना काम करना है। यहां आने वाले बुजुर्ग लोगों का नियमित विवरण तथा उनके कष्ट को दर्ज करना है। बोलो करोगे? युवक सहर्ष मान गया और दो सौ रुपये प्रतिदिन पर काम करने लगा। दस दिन बाद जब वह संत से मिला तो उसकी आखों में चमक तथा उसके मन में उम्मीद थी। संत ने बातचीत की तो पता चला कि वह युवक अब जान सका है कि जगत में हर कोई किसी न किसी से धोखा खा रहा है। इसलिए अब उसको किसी से भी कोई शिकायत नहीं। उसने संत से एक सवाल पूछा, ‘आपके पास तो मेरी परेशानी का इलाज था गुरुदेव। मैं अभिभूत हूं।’ संत ने कहा, ‘वत्स! लक्ष्मण तो काफी बाद में मूर्च्छित हुए थे, लेकिन संजीवनी बूटी तो पहले ही उग कर तैयार थी। संसार में हर परेशानी का हल मौजूद है। अगर तुम मन से खोज करो।’
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