उद्घोष में शिवत्व का स्पंदन
आषाढ़ की कष्टकारी तपन के बाद जब सावन की रिमझिम फुहारें धरती का अभिषेक करती हैं, तब प्रकृति अपने यौवन के शिखर पर होती है। यह मास केवल वृष्टि का ही नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और शिवनाम के वर्षण का भी होता है। यह वह समय है जब सनातन के अनुयायियों में ‘बोल बम’ के उद्घोष के साथ भगवान शिव की आराधना का सिलसिला शुरू हो जाता है।
हर साल सावन की शुरुआत होते ही गंगा तट से शिवालयों तक एक ही शब्द गुंजायमान रहता है— ‘बोल बम! बम बम भोले!’ कांवड़ यात्रा में बम का यह उदघोष लोकधर्म का जीवंत उदाहरण है। श्रद्धा, भक्ति और उत्साह से सराबोर इन नारों में कांवड़ियों का उल्लास देखते ही बनता है।
जिज्ञासु यह पूछ सकते हैं कि इस बम शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई। क्योंकि ‘बम-बम’ शब्द का प्रयोग भगवान शिव के संदर्भ में व्यापक लोक प्रचलन में तो है। लेकिन किसी प्रमाणित शास्त्रीय ग्रंथ में इसका प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता। हां, लोक श्रुति और व्याख्याओं में बम शब्द का परिचय जरूर मिलता है। तो क्या यह बम बम शब्द केवल एक लोक ध्वनि है या इसके पीछे कोई गूढ़ शास्त्रीय अथवा आध्यात्मिक रहस्य छिपा है? इस प्रश्न का उत्तर कुछ साल पहले एक संस्कृत के विद्वान वेदांताचार्य से मिला— ‘जिसे तुम ‘बम बम’ कहते हो, वह वास्तव में जल तत्व का बीज मंत्र ‘वं’ है। सम्भव है कि कालांतर में वं-वं उच्चारण बदलते-बदलते बम-बम हो गया हो। जैसा कि लोक परंपराओ में अक्सर हो जाता है।
‘वं’ का संबंध भगवान शिव की साधना और जल तत्व से है। ‘बोल वं वं’ का उच्चारण यदि ध्यानपूर्वक किया जाय तो यह केवल एक ध्वनि नहीं, बल्कि तत्व ज्ञान की अद्भुत यात्रा हो जाती है। सावन में वर्षा, गंगाजल, कांवड़, जलाभिषेक सब जल तत्व (बीज मंत्र वं) से गहराई से जुड़े हैं। सावन में जब कांवड़िये गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं, तो वे वस्तुतः जल तत्व को शिव तत्व से जोड़ने का कर्मकांडी रूप निभा रहे होते हैं।
श्रद्धा और तत्व की दो धाराएं
यद्यपि ‘बम बम भोले’ कोई शास्त्रीय मंत्र नहीं है। फिर भी यह आम जनमानस में गूंजने वाला एक अत्यंत लोकप्रिय, भावनात्मक और ऊर्जावान उदघोष है। यह भगवान शिव के लिए एक प्रेमासक्त पुकार है। दूसरी ओर वं शास्त्रीय बीज मंत्र है। इसका उच्चारण ध्यान, तत्व- साधना और ऊर्जा जागरण से जुड़ा है। दोनों ही अपने अपने स्थान पर सार्थक है। जब शिव भक्त बम बम का जयकारा लगाते हैं, तो उनके हृदय में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव उमड़ता है और जब साधक वं को जपते है तो उनके भीतर शिवत्व का स्पंदन होता है। एक में श्रद्धा है तो दूसरे में तत्व ज्ञान। और शिव साधना के यही दो पथ है।