जब ईश्वरचंद्र विद्यासागर कलकत्ता के संस्कृत महाविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे, तो अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण वे दीपक की रोशनी में पढ़ाई करते थे। एक रात जब वे पढ़ाई में मग्न थे, अचानक तेज हवा के झोंके से दीपक बुझ गया। रात काफी हो चुकी थी और चारों ओर अंधेरा था। विद्यासागर ने सोचा कि उन्हें फिर से दीपक जलाने के लिए तेल लेने बाजार जाना होगा। लेकिन इतनी रात में बाजार जाना संभव नहीं था। वे अपनी पढ़ाई अधूरी नहीं छोड़ना चाहते थे, क्योंकि उनका मानना था कि हर पल कीमती है और उसका सही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में विद्यासागर ने एक अद्भुत निर्णय लिया। उन्होंने अपनी असाधारण स्मरण शक्ति का उपयोग करते हुए, जो पृष्ठ वे पढ़ रहे थे, उसे अपने मन में दोहराना शुरू कर दिया। उन्होंने पूरी रात जागकर उस पाठ को याद किया, जिसे वे पढ़ना चाहते थे। अगली सुबह जब प्रकाश हुआ, उन्होंने सारी सामग्री को सही ढंग से याद कर लिया था।
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