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मंदिरों में निहित आस्था की अनूठी परंपराएं

लक्ष्मी मंदिरों की दिव्यता

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लक्ष्मी मंदिर भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का अहम हिस्सा हैं, जहां समृद्धि और आस्था की गहरी परंपराएं समाहित हैं। इन मंदिरों में भक्त अपनी भक्ति और श्रद्धा के साथ दिव्यता और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए आते हैं।

शिखर चंद जैन

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लक्ष्मी जी धन संपदा की देवी हैं और कुबेर जी को धन के स्वामी। चेन्नई में एक ऐसा मंदिर है जहां इन दोनों की प्रतिमा एक साथ विराजित हैं। कहते हैं, यही दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां कुबेर इस रूप में लक्ष्मी जी के संगविराज रहे हैं। चेन्नई के इस श्रीलक्ष्मी कुबेर मंदिर में दिवाली के दिन लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। यहां विराजमान लक्ष्मी और कुबेर की प्रतिमाएं काले पत्थर से निर्मित हैं। यहां कुबेरजी अपनी पत्नी सिद्धरानी के साथ विराजित हैं। उनके ठीक पीछे मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है जो उन्हें आशीर्वाद देते हुए प्रतीत होती हैं। इस मूर्ति के पास मछली की दो प्रतिमाएं रखी गई हैं और ऐसी ही मछली यहां मंदिर के प्रांगण में भी रखी गई है। इसके साथ एक कछुआ भी है। कुबेर जी को हरा रंग पसंद है इसी वजह से मंदिर और उसके आसपास हरे रंग का प्रयोग बहुतायत में किया गया है। यहां भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित है। कुबेर जी गजराज पर विराजमान हैं।

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स्वर्ण कमल पर मां लक्ष्मी

तिरुपति से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर पद्मावती देवी मंदिर है। इसे अलरमेलमंगपुरम भी कहते हैं। अलर का अर्थ है कमल, मेल का मतलब है ऊपर, मंग यानी देवी और पुरम यानी स्थान। प्राचीन कथा के मुताबिक यहां मौजूद पदम सरोवर से देवी महालक्ष्मी एक स्वर्ण कमल पर विराजित होकर प्रकट हुई थी। महर्षि भृगु ने श्री विष्णु के छाती पर पर रखा था जिससे देवी नाराज हुई और बैकुंठ छोड़कर पाताल लोक में आ गई। वह 12 सालों तक इस पुष्करिणी में रही और 13वें साल कार्तिक पंचमी को पद्मावती के रूप में प्रकट हुई। यहां हर सुबह कल्याण उत्सव का आयोजन होता है जिसके बाद श्रद्धालु देवी का दर्शन करते हैं।

सिंदूर से पूजित मां लक्ष्मी

कांचीपुरम, तमिलनाडु में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां मां लक्ष्मी की पूजा सिंदूर लगाकर होती है। मान्यता यह है कि विष्णु जी ने नाराज होकर लक्ष्मी जी को कुरूप होने का श्राप दे दिया था। तब लक्ष्मी जी ने मां कामाक्षी की पूजा कर शाप से मुक्ति पाई थी तभी मां कामाक्षी ने कहा था कि वे लक्ष्मी के साथ यहां विराजित होंगी। उन्हें चढ़ने वाले प्रसाद से ही लक्ष्मी जी की भी पूजा होगी। मगर यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना मां लक्ष्मी को पूर्ण करनी होगी। इस तरह कामाक्षी को प्रसाद में सिंदूर चढ़ता है, वही लक्ष्मी जी को चरणों से शीश तक चढ़ाया जाता है। इस मंदिर का मुख्य गुंबद क्षेत्र सोने से बना है। त्योहारों पर मां लक्ष्मी जिस रथ पर आसीन होती हैं वह 20 किलो सोने से बनाया गया है।

पुरानी प्रतिमा वाला महालक्ष्मी मंदिर

महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित महालक्ष्मी मंदिर देशभर में बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण चालुक्य शासक कर्णदेव ने सातवीं शताब्दी में करवाया था। इसके बाद शिलहार यादव ने 9वीं शताब्दी में इसका पुन:र्निर्माण करवाया था। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में देवी महालक्ष्मी की 4 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है, जिसका वजन लगभग 40 किलो है। यह मंदिर 27,000 वर्गफीट में फैला हुआ है जिसकी ऊंचाई 35 से 45 फीट तक की है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पर देवी लक्ष्मी की आराधना और कोई नहीं, बल्कि सूर्य की किरणें करती हैं। 31 जनवरी से 9 नवंबर तक सूर्य की किरणें मां के चरणों को स्पर्श करती हैं तथा 1 फरवरी से 10 नवंबर तक किरणें मां की मूर्ति पर पैरों से लेकर छाती तक आती हैं और फिर 2 फरवरी से 11 नवंबर तक किरणें पैर से लेकर मां के पूरे शरीर को स्पर्श करती हैं।

महालक्ष्मी का स्वर्ण मंदिर

तमिलनाडु के वेल्लोर में मौजूद श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर देश के बड़े लक्ष्मी तीर्थ में से एक है। यह अपने आप में बेहद अनूठा और निराला मंदिर है। इस मंदिर को बनाने में लगभग 55000 किलो शुद्ध सोने का इस्तेमाल हुआ है और यह 100 एकड़ में फैला हुआ एक विशाल मंदिर है। यह मंदिर गोलाकार है। मंदिर परिसर में बाहर की तरफ एक सरोवर है जिसमें भारत की सभी मुख्य नदियों का पानी लाया गया है। इसलिए इस सर्वतीर्थम‍् सरोवर भी कहते हैं। मंदिर के बाहरी परिसर को श्रीयंत्र के रूप में बनाया गया है जिसके बीच में महालक्ष्मी मंदिर है।

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