Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

अध्यात्म के महामार्ग कैलास यात्रा के अविस्मरणीय पल

कैलास मानसरोवर

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

मानसरोवर शांत और स्वच्छ जल की पवित्र झील है, जिसके विषय में महाकवि कालीदास की पुस्तक कुमारसंभव में भी वर्णन किया है कि यह संसार की एकमात्र जगह है, जहां बिना बादल के भी वर्षा होती है। यह झील सूर्य की गति के साथ-साथ अपना अलौकिक रंग बदलती है।

शिव के बगैर कैलास अधूरा और कैलास के बगैर शिव अधूरे। जैसा कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने उल्लेख किया है कि ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता।’ अतएव यह किसी सामान्य जन के लिए यह संभव नहीं कि वह कैलास और कैलासवासी शिव के विषय में कुछ कह सके। यह लेखक भी केवल वही अनुभव आपके साथ बांट सकता है जो उसने अध्यात्म के महामार्ग को देखते वक्त प्राप्त किया है।

जैसे ही मेरा नामांकन विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रथम दल (वर्ष 2011) के लायजन ऑफिसर के रूप में हुआ, इस सूचना ने इस लेखक को अपने भीतर असीम ऊर्जा महसूस हुई, मन में हर्षोल्लास एवं जिज्ञासाएं उठने लगीं कि इस अध्यात्म के महामार्ग पर उससे पूर्व कितने भक्तों ने अपने पद-चिन्ह छोड़े होंगे और यात्रा का इतिहास क्या रहा होगा, आदि। तभी स्वामी पूर्वानन्द की पुस्तक कैलास हिम गमन यात्रा (1952) याद आयी। किन्तु इससे पूर्व स्मृति पटल पर 16 अगस्त, 2009 का वो सुखद क्षण उभर आया, जब इस लेखक को विदेश मंत्रालय के एक दल के सदस्य के रूप में कैलास मानसरोवर यात्रा की परिक्रमा का पहला सुअवसर प्राप्त हुआ। इस दौरान प्रमाण दिखते हैं कि कैलास मानसरोवर में गुर्ला मान्धाता का जल आता है तथा राक्षस ताल में कैलास का जल आता है।

Advertisement

कुमाऊं व कैलास का संबंध

Advertisement

वर्ष 2015 में कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए एक अतिरिक्त मार्ग नाथूला, सिक्किम से कैलास व मानसरोवर परिक्रमा के लिए चीन सरकार द्वारा खोला गया। इस वर्ष 20 दल लिपु मार्ग तथा 5 दल नाथूला से गए थे। यह यात्रा आदि काल से चल रही है तथा आगे भी चलती रहेगी, जिसमें कुमाऊं का किसी-न-किसी प्रकार से योगदान रहा है। अतः कुमाऊं व कैलास एक संस्कृति है, एक सत्य है। रामायण और महाभारत, स्कन्द पुराण आदि में कैलास का ‘महात्म्य’ वर्णित है।

अध्यात्म का मेला

लेखक के मुताबिक, अचानक ढोल-नगाड़ों की ध्वनि भूतकाल से वर्तमान काल में ले आई, जब मैं प्रथम दल (2011) के लायज़न अधिकारी के रूप में अपने दल को लेकर गुजरात सदन (कश्मीरी गेट, नई दिल्ली) से प्रस्थान करने की तैयारी में था। गुजरात सदन के मुख्य द्वार पर अध्यात्म का मेला-सा लग रहा था। यात्रियों को उनके रिश्तेदार भावपूर्ण विदाई देने आये थे। दिल्ली तीर्थ यात्रा के पूर्व चेयरमैन उदय कौशिक स्वागत दल के साथ उपस्थित थे। मेरे आध्यात्मिक गुरु पद्मश्री भारत भूषण भी आशीर्वाद देने आ गए।

यात्रा के विभिन्न पड़ाव

उत्तराखण्ड (उत्तरांचल) परिवहन निगम की बस ने नई दिल्ली से यात्री दल ने प्रस्थान किया। मौजूदा उत्तराखंड में पहुंचने के बाद यात्री दल ने पैदल पथ पर कैलास मानसरोवर की ओर बढ़ते हुए दोपहर का भोजन काठ गोदाम में कुमाऊं मण्डल विकास निगम की ओर से ग्रहण किया। वहां से दल को पर्वतीय गाड़ियों में स्थानांतरित किया व अल्मोड़ा और धारचूला के लिए प्रस्थान कराया गया। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल की मिर्थी में स्थित वाहिनी ने कैलास के महामार्ग पर जाने वाले यात्रियों का स्वागत किया व तत्कालीन सेनानी विश्वामित्र आनन्द द्वारा ब्रीफिंग दी गई।

ओम पर्वत का दिव्य दृश्य

नई दिल्ली से चलने के दूसरे दिन प्रातःकाल हमारे दल ने धारचूला से छोटी-छोटी गाड़ियों में नारायण आश्रम के लिए प्रस्थान किया। वहां पूजा-अर्चना के बाद दल ने सिरका के लिए प्रस्थान किया जहां हमने रात्रि विश्राम किया। तीसरे दिन प्रातःकाल उठकर पूरा दल पदयात्रा करते हुए गाला पहुंचा व वहां रात्रि विश्राम किया। चौथे दिन गाला से बुद्धि तक की दूरी कालीगंगा के समानांतर पगडंडी पर पूरी की। गाला से बुद्धि तक पगडंडी खतरनाक रूप से कालीगंगा के समानांतर सर्प की भांति कभी ऊपर कभी नीचे बुद्धि तक पहुंचती है। कई जगह इतनी संकीर्ण कि एक समय में एक ही व्यक्ति चल सकता है और नीचे कालीगंगा का विकराल रूप ।

पांचवीं एवं छठी रात को हम गुंजी पहुंचे। तदनुपरांत कालापानी में स्थित मां काली से आशीर्वाद प्राप्त करते हुए हम लोग नाबी ढांग पहुंचे। में यात्री ‘ॐ पर्वत’ पर प्राकृतिक रूप से उभरे हुए ‘ॐ’ को एकटक देख रहे थे। मानो स्वयं महादेव शिव प्रकट होकर ‘ॐ’ के रूप में ‘ॐ पर्वत’ पर विराज रहे हैं। जाप करते हुए वहीं बैठकर ध्यान अवस्था में पहुंच गए।

बर्फ से तीर्थयात्रियों का स्वागत

अगले दिन, प्रात: 2 बजे उठकर यात्री दल ने नाबीढांग से लिपु लेख के लिए प्रस्थान किया। हल्की-हल्की बर्फ पड़ रही थी, मानो शिव के गण चमेली के सफेद फूलों से कैलास प्रदेश में स्वागत कर रहे हों। लिपु लेख दर्रा पार करने के बाद हम बस द्वारा तकला कोट पहुंचे, जहां 2 दिन विश्राम किया और फिर बस द्वारा दारची के लिए प्रस्थान किया। यह रास्ता रक्षताल तथा मानसरोवर के मध्य से निकलता है। बस कुछ देर के लिए रुकी, जहां हमारे बाईं तरफ रक्षताल झील और दाहिनी ओर पवित्र मानसरोवर झील थी। सामने कैलास का दक्षिणी मुख दिखाई दे रहा था। ‘ॐ नमः शिवाय’ के मंत्र का सभी उच्चारण कर रहे थे। लगा मानो मनुष्य सशरीर उस परमानन्द की अनुभूति केवल यहीं से कर सकता है।

पवित्र कैलास का उत्तरी मुख

तदनंतर उस अलौकिक दृश्य का स्वरूप प्राप्त करने के बाद यात्री दल रात्रि विश्राम के लिए दार्जिंन पहुंचा। अगले दिन दार्जिंन से देरापूक के लिए प्रस्थान किया। देरापूक पर पवित्र कैलास के उत्तरी मुख के सर्वप्रथम दर्शन होते हैं। वहां रात्रि विश्राम किया और अगले दिन प्रात: उठकर डोल्मा पास (17,800 फुट ऊंचाई) पार करते हुए शाम तक झोंग जेरश पहुंचे।

...जहां बिना बादल के भी वर्षा

मानसरोवर शांत और स्वच्छ जल की पवित्र झील है, जिसके विषय में महाकवि कालीदास की पुस्तक कुमारसंभव में भी वर्णन किया है कि यह संसार की एकमात्र जगह है, जहां बिना बादल के भी वर्षा होती है। यह झील सूर्य की गति के साथ-साथ अपना अलौकिक रंग बदलती है। शाम को गोम्पाश में पूजा की। मानसरोवर के किनारे दो दिन व्यतीत किये व झील में से गंदगी को साफ किया।

वापस तकला कोट में रात्रि विश्राम

तदनंतर पूरा दल वापस तकला कोट रात्रि विश्राम के लिए आया। तकला कोट से 10 किमी पहले तोयोश में जनरल जोरावर सिंह की समाधि पर यात्रीदल ने श्रद्धांजलि अर्पित की। अगले दिन रात्रि विश्राम के उपरांत दल ने तकला कोट से गुंजी (भारत) के लिए प्रस्थान किया। हमारे यात्री दल का लिपु-लेख पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल के हिमवीरों ने स्वागत किया। फिर काला पानी पर, जहां मां काली और शिव का पुरातन मंदिर है, रुककर लंच किया व गुंजी के लिए प्रस्थान किया। गुंजी से बुद्धि, गाला, धारचूला और मिर्थी आते हुए हम पाताल भुवनेश्वर गए व गुफा में ‘दिव्यता’ के दर्शन किये। वहां से दल जागेश्वर धाम गया व वहां से यात्रा पूर्ण करके वापस दिल्ली पहुंचा। यात्रा पूर्ण करने के उपरांत, अनुभूति हो रही थी कि अध्यात्म के महामार्ग कैलास यात्रा का अविरल भाव मेरे मन-मस्तिष्क में अब भी चल रहा है।

लेखक आईटीबीपी में महानिरीक्षक रहे हैं।

Advertisement
×