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जीवन का सत्यबोध

एकदा

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एक किसान बड़ा ज्ञानी और धर्मात्मा था। खेती-बाड़ी करता था। बहुत दिनों के बाद उनके घर एक पुत्र हुआ, जिसका नाम हारू रखा गया। माता-पिता दोनों को उस इकलौते पर अत्यधिक स्नेह था। गांव के सभी लोग किसान का आदर करते थे। एक दिन किसान खेत में काम कर रहा था कि किसी ने आकर बताया — ‘हारू को हैजा हो गया है।’ किसान तुरंत घर लौटा और उसने पूरी लगन से उसका उपचार कराया, परंतु अंततः लड़का चल बसा। सभी लोग शोक में डूब गए, पर किसान शांत रहा। वह सबको समझाने लगा कि शोक करने से कुछ नहीं होता। वह फिर खेत पर काम करने चला गया। लौटकर देखा तो उसकी पत्नी रो रही थी। उसने पति से कहा—‘तुम बड़े निष्ठुर हो! बेटा चला गया और तुम्हारी आंखों से एक आंसू तक नहीं निकला।’ किसान ने शांत स्वर में कारण बताया—‘कल मैंने एक अद्भुत स्वप्न देखा —उसमें मैंने स्वयं को राजा देखा, मेरे आठ पुत्र थे और मैं बहुत सुखी था। तभी मेरी आंख खुल गई। अब सोचता हूं, मैं उन आठ बेटों के लिए रोऊं या इस एक हारू के लिए?’ किसान ज्ञानी था, इसलिए वह समझ गया था कि जिस प्रकार स्वप्न की अवस्था मिथ्या होती है, उसी प्रकार जागृति की अवस्था भी अस्थायी है। इस संसार में नित्य वस्तु केवल आत्मा ही है।

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