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Travelling In India :  नारी रूप में नर... इस मंदिर में पुरुष साड़ी और चूड़ियों से सजकर करते हैं पूजा, चौंका देगी अनूठी परंपरा

Travelling In India :  नारी रूप में नर... इस मंदिर में पुरुष साड़ी और चूड़ियों से सजकर करते हैं पूजा, चौंका देगी अनूठी परंपरा
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चंडीगढ़, 28 अप्रैल (ट्रिन्यू)

Travelling In India : कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर, केरल के कोल्लम जिले के चावरा नामक स्थान में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह अपनी अनोखी परंपराओं और संस्कृति के लिए पूरे देश में जाना जाता है। यह मंदिर देवी भगवती को समर्पित है।

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यहां प्रतिवर्ष होने वाला एक अनोखा उत्सव इसे विशेष बनाता है। इस उत्सव में पुरुषों की पारंपरिक रूप में प्रवेश पर रोक नहीं है बल्कि एक अनूठे नियम के तहत वे महिलाओं के वस्त्र पहनकर ही मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। इसे "कोट्टनकुलंगरा चामयविलाकु" उत्सव कहा जाता है, जो भारत के सबसे विचित्र और सामाजिक रूप से प्रगतिशील धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है।

परंपरा की शुरुआत

ऐतिहासिक रूप से यह माना जाता है कि परंपरा सदियों पुरानी है। कथा अनुसार, कुछ चरवाहे खेल-खेल में महिलाओं की तरह सजकर देवी की पूजा करने लगे। देवी ने पूजा को स्वीकार कर लिया। माता उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुई और उन्हें मनचाहा आशीर्वाद दिया। तब से यह परंपरा चलन में आ गई, जिसमें पुरुष भक्त स्त्रियों का रूप धारण कर पूजा करते हैं।

चामयविलाकु उत्सव

यह उत्सव हर वर्ष मार्च या अप्रैल में आयोजित होता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं। वैसे तो यह उत्सव 19 दिन चलता है, लेकिन आखिरी दो दिनों में पुरुष, स्त्री वेश में साड़ी, गहनें और श्रृंगार करके मंदिर आते हैं। वह दीपक जलाकर देवी की आराधना करते हैं। यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन नहीं है बल्कि इसमें लिंग भेद की सामाजिक दीवारों को तोड़ने का प्रतीकात्मक संदेश भी छिपा है। यह परंपरा इस बात को दर्शाती है कि आस्था और श्रद्धा का कोई लिंग नहीं होता।

पुरुषों की सामान्य एंट्री पर प्रतिबंध?

इस विशेष उत्सव के दौरान पुरुष स्त्री वेश में प्रवेश करते हैं। ऐसा नहीं है कि मंदिर में आम दिनों में पुरुषों को पूरी तरह से प्रवेश नहीं मिलता। मंदिर में आम समय में पुरुष और महिलाएं दोनों देवी की पूजा कर सकते हैं। चामयविलाकु उत्सव के दौरान यह परंपरा है कि पुरुषों को केवल महिला के रूप में ही मंदिर में प्रवेश मिलता है, अन्यथा नहीं। यह सांस्कृतिक परंपरा है, कानूनी प्रतिबंध नहीं।

सामाजिक संदेश

कोट्टनकुलंगरा मंदिर की यह परंपरा भारत की विविधता और समावेशी संस्कृति का प्रतीक है। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सामाजिक समरसता, लैंगिक समानता और भावनात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उत्सव भी है। LGBTQ+ समुदाय के लिए भी यह आयोजन एक प्रेरणास्रोत बन चुका है, जहां वे खुले रूप में अपनी पहचान के साथ श्रद्धा प्रकट कर सकते हैं।

कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह सामाजिक दृष्टि से भी एक गहन संदेश देता है। इस मंदिर की परंपराएं यह साबित करती हैं कि भारत की संस्कृति में विविधता को सम्मान देने और हर रूप में ईश्वर को स्वीकारने की अद्भुत शक्ति है। यहां आस्था और परंपरा का मिलन एक नई सोच को जन्म देता है- जहां रूप से अधिक भावना को महत्व दिया जाता है।

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