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Travelling In India : भारत के इस मंदिर में एक साथ विराजमान है भगवान शिव और विष्णु, जानिए इससे जुड़ी रोचक बातें

लिंगराज मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में सोमवंशीय राजा याज्ञ्यसिंह द्वारा किया गया था

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चंडीगढ़, 4 मार्च (ट्रिन्यू)

Travelling In India : लिंगराज मंदिर ओडिशा के भुवनेश्वर शहर में स्थित एक प्रमुख हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर ओडिशा की शहरी संस्कृति और धार्मिक महत्व का प्रतीक है और हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। माना जाता है कि लिंगराज मंदिर की विशेषताएं इसे न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक नजरिए से भी महत्वपूर्ण बनाती हैं।

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कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम?

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लिंगराज मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में सोमवंशीय राजा याज्ञ्यसिंह द्वारा किया गया था। 'लिंगराज' अर्थात 'लिंगों का राजा' से पड़ा है, क्योंकि यह भगवान शिव का सबसे प्रमुख रूप है, जिसे यहां पूजा जाता है। यह मंदिर भुवनेश्वर के प्रमुख धार्मिक केंद्रों में से एक है और ओडिशा के वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण पेश करता है।

अनोखी है मंदिर की बनावट

लिंगराज मंदिर की वास्तुकला "केशरी" शैली का अद्वितीय उदाहरण है। मंदिर का शिखर (गुंबद) लगभग 55 मीटर ऊंचा है। इसे "शिखर" के रूप में डिजाइन किया गया है, जो बहुत ही आकर्षक है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के लिंग के रूप में पूजा की जाती है और इसके चारों ओर विभिन्न अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं।

भगवान शिव व श्रीहरि की एक साथ की जाती है पूजा

मंदिर के भीतर की दीवारों और छतों पर अद्भुत उकेरे गए दृश्य और शिल्प कार्य हैं। इन कला रूपों में शास्त्रीय नृत्य, पशु-पक्षी, धार्मिक दृश्य और कई अन्य प्रतीकात्मक चित्रण शामिल हैं। सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में भगवान शिव और विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है। इसलिए इसे वैष्णववाद और शैववाद का सामंजस्य भी कहा जाता है।

मंदिर का जलाश्य

मंदिर के पास एक जलाशय, जिसे बिंदुसार ताल भी कहा जाता है। यहां स्नान करने के बाद भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक शुद्धिकरण होता है। मान्यता है कि एक भूमिगत नदी बिंदुसार ताल को भरती है, जिसके पानी को स्वयं भगवान लिंगराज ने आशीर्वाद दिया है।

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