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फ्यूंला के नारायण मंदिर में महिला पुजारी की परंपरा

हिन्दू मंदिरों में भगवान के अर्चकों का जिक्र आते ही मस्तिष्क में पुरुष पुजारी का बिंब उतर जाता है। देश के अधिकांश प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिरों में यही व्यवस्था है। इसमें कई मंदिर हैं, जहां गर्भ गृह में प्रवेश करने...
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हिन्दू मंदिरों में भगवान के अर्चकों का जिक्र आते ही मस्तिष्क में पुरुष पुजारी का बिंब उतर जाता है। देश के अधिकांश प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिरों में यही व्यवस्था है। इसमें कई मंदिर हैं, जहां गर्भ गृह में प्रवेश करने और मूर्ति स्पर्श का अधिकार केवल पुजारी को है। कई मंदिर ऐसे भी जहां महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। मगर उत्तराखंड राज्य के सीमांत जनपद चमोली की उर्गम घाटी में फ्यूंलानारायण मंदिर इसका अपवाद है। इस मंदिर में भगवान की पुजारी महिला हैं। फ्यूंला का यह नारायण मंदिर देश का इकलौता मंदिर है, जहां महिला भगवान नारायण की अर्चक हैं।

इस प्राचीन मंदिर के खुलने और बंद की परम्परा अन्य मंदिरों से हटकर है। मंदिर के कपाट श्रावण मास की संक्रांति के दिन खुलते हैं और भाद्र पद मास की नंदा अष्टमी को बंद किए जाते हैं। मंदिर में इस दौरान पूजा के लिए एक महिला पुजारी और एक पुरुष पुजारी नियुक्त किए जाते हैं। इनका चयन ग्राम सभा की बैठक में एक वर्ष पूर्व हो जाता है।

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फ्यूंलानारायण मंदिर के कपाट हर वर्ष श्रावण संक्रांति के दिन खोले जाते हैं और नंदा अष्टमी की तिथि को बंद कर दिए जाते हैं। प्रकृति की गोद में स्थित नारायण का यह मंदिर फ्यूला नामक स्थान पर है। इसलिए इसको फ्यूंलानारायण कहते हैं। फ्यंूला का शाब्दिक अर्थ फूल है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर पांचवें केदार कल्पेश्वर से चार किलोमीटर की दूरी पर है। पौराणिक जनश्रुति के मुताबिक फ्यूंला बुग्याल, भर्की, उर्गम, भेटा, पिल्खी आदि गांवों के लोगों का गोचर था। गोचर में सभी गांवों से गौ माता चरने के लिए आती थी। इस बुग्याल में एक स्थान ऐसा था, जहां गाय स्वयं दूध देती थीं। यह प्रक्रिया कई दिनों तक चलती रही। एक दिन भर्की के एक ग्रामीण को स्वप्न में संदेश मिला कि जिस स्थान पर गौ माताएं दूध देती हैं। वहां दो माह तक नियमित पूजा करो। तब से स्थानीय ग्रामीण यहां नियमित पूजा करते हैं।

मंदिर साधारण पर्वतीय शैली में बना है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु का श्याम का वर्ण पाषाण से बना आकर्षक विग्रह है। यह मूर्ति चतुर्भुज में है। इसके दोनों ओर जय विजय दो द्वारपाल हैं।

महिला पुजारी प्राचीन परम्परा

जनश्रुति है कि स्वर्ग लोक की अप्सरा उर्वशी, भगवान नारायण के शृंगार के लिए पुष्प यहां से लेकर जाती थीं। सतयुग की इस परम्परा को कलियुग में ग्रामीण निभा रहे हैं। फ्यूंला के नारायण मंदिर में भगवान का शृंगार महिला पुजारी करती है। बाकायदा मंदिर के समीप ही फूलों का एक बहुत बड़ा बगीचा है। इन्हीं पुष्पों से भगवान नारायण का प्रतिदिन शृंगार किया जाता है। महिला पुजारी को कई नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दौरान वह मंदिर के कपाट खुलने से बंद होने तक मंदिर परिसर में रहती हैं। मंदिर की परिधि से बाहर नहीं जाती हैं।

पूजा व्यवस्था

फ्यूंलानारायण में भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही प्रकृति और वन देवियों की पूजा का विधान है। मंदिर में अखंड धूनी की परंपरा है। जिस दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं। उस दिन से कपाट बंद होने तक यह धूनी निरन्तर प्रज्वलित रहती है। दुधारू गाय के दूध से नित्य भगवान का अभिषेक किया जाता है। ताजा मक्खन और घी से प्रसाद बनाकर भगवान को चढ़ाया जाता है। यह क्रम कपाट बंद होने तक चलता है।

फूलवाटिका

मंदिर की एक फूल वाटिका है। इसमें श्याम तुलसी प्रमुख है। इससे बनी माला ही यहां चढाई जाती है। बदरीनाथ मंदिर में श्याम तुलसी की माला चढ़ाते हैं। फूलवारी में प्रवेश और पुष्प तोडने का अधिकार केवल पुजारी को है।

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