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मुक्ति की राह

एकदा
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बुद्ध एक गांव में ठहरे हुए थे। उसी गांव में उस राज्य के राजा का हाथी, जो अब बूढ़ा हो चुका था, तालाब पर पानी पीने गया और कीचड़ में फंस गया। जितनी चेष्टा करता, उतना ही वह कीचड़ में गहराता चला गया। नए महावत भेजे गए। उन्होंने उसे बड़े-बड़े भालों आदि से चुभाकर निकालने की कोशिश की, लेकिन सब बेकार साबित हुआ। राजा बहुत दुखी हो गया। उसने हाथी के पुराने महावत को बुलाने का आदेश दिया। बूढ़ा महावत आया। तभी बुद्ध के शिष्य भी वहां इकट्ठे हो गए। बूढ़ा महावत हंसा और बोला, ‘यह क्या कर रहे हो? उसे मार डालोगे?’ फिर उसने कहा, ‘युद्ध का नगाड़ा बजाओ।’ युद्ध का नगाड़ा बजते ही हाथी एक छलांग में बाहर आ गया। वह भूल गया कि वह बूढ़ा व कमजोर है। हाथी में फिर जवान जैसी ऊर्जा आ गई। घटना के बाद बुद्ध के शिष्यों ने बुद्ध से कहा, ‘भगवान, हमने एक अभूतपूर्व चमत्कार देखा।’ बुद्ध ने कहा, ‘अभूतपूर्व कुछ भी नहीं है। तुममें भी मेरी आवाज सुनकर वे ही निकल पाएंगे, जो सूरमा हैं। यही तो मैं भी कर रहा हूं! तुम कीचड़ में फंसे हो और मैं रणभेरी बजा रहा हूं। तुममें से जो हिम्मतवर हैं, जिनमें थोड़ी-सी भी क्षमता और साहस है, वे इस जीवन रूपी कीचड़ से निकल आएंगे।’

प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा

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