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परमहंस का निर्मल मन

एकदा

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ब्रह्म समाज के अनुयायी केशवचंद्र, जो कि रामकृष्ण परमहंस के साथ मतभिन्नता रखते हुए भी उनके बड़े श्रद्धालु थे, उनके चरणों की धूल तक श्रद्धा भाव से लेते थे। एक बार केशवचंद्र बीमार पड़ गए। जब रामकृष्ण परमहंस को यह समाचार मिला, तो वे केशवचंद्र से मिलने उनके घर गए। उन्होंने केशवचंद्र के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए काली माता से प्रार्थना की। केशवचंद्र की रुग्णावस्था को देखकर रामकृष्ण परमहंस की आंखों में आंसू भर आए। अश्रुपूरित आंखों और अवरुद्ध कंठ से उन्होंने कहा, ‘बरसाई गुलाब के पौधे में बड़े फूल पैदा करने के लिए माली कभी-कभी उसे काट-छांट कर उसकी जड़ तक मिट्टी निकालता है, ताकि धूप और ओस उसे खिलाने में मदद करें। इसी तरह माली (ईश्वर) ने तुम्हारी शारीरिक स्थिति ऐसी बनाई है।’ कुछ दिन बाद, जब केशवचंद्र के देहावसान का समाचार मिला, तो रामकृष्ण परमहंस को गहरा आघात पहुंचा। वे तीन दिन तक बिना कुछ खाए-पिए और बिना किसी से बातचीत किए चुपचाप अपने घर में पड़े रहे। असली संतों का मन निर्मल होता है; उनमें मतभेद जल्द ही पिघलकर समाप्त हो जाते हैं।

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