पंद्रह साल की किशोरी एलिजाबेथ स्कूल से घर जाने के लिए तेजी से ट्रेन पकड़ती थी। उसके अध्यापक चार्ल्स प्राइज उसकी गति से बहुत प्रभावित थे। एक दिन उन्होंने स्टॉप वॉच से एलिजाबेथ की गति नापी और दंग रह गए। उन्होंने प्रतिभा को पंख देने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया। कुछ ही माह बाद घरेलू प्रतियोगिता में वह 100 मीटर रेस की अमेरिकी चैंपियन हेलेन फिल्की के साथ दौड़ी और दूसरे नंबर पर रही। तीन महीनों में उसने फिल्की को हराकर पहला स्थान हासिल किया। इसके बाद एम्सटर्डम ओलंपिक की तैयारी आरंभ की। वह 100 मीटर रेस क्वालीफाई करने वाली इकलौती अमेरिकी बनीं। उसने रेस जीती और सोलह साल की उम्र में पहली 100 मीटर ओलंपिक चैम्पियन बनीं। जब भी वह भागती इतिहास रच देती। 1931 के जून में वह अपने भाई के प्राइवेट जहाज में उड़ान भर रही थी। जहाज 600 मीटर ऊंचाई पर क्रैश हो गया। बचाव टीम ने दोनों को अचेत पाया। एलिजाबेथ को देखकर लगा वह मृत है। अचानक उसमें हरकत हुई। उसकी टांग और बाहों की हड्डियां कचूमर बन चुकी थीं। डॉक्टर ने उसे जीवन भर चलने से मना कर दिया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। कुछ दिनों बाद बैसाखियों के सहारे चलना शुरू किया। चार साल बाद इतनी चोटों के बाद वह दौड़ रही थी। बर्लिन में 8 अगस्त, 1936 को एलिजाबेथ जिसे बेट्टी रॉबिन्स के नाम से भी जाना जाता था, ने दूसरा ओलंपिक गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया।
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