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परिवर्तन का मंत्र

एकदा
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वेस्टमिंस्टर एबे के तलघर में एक एंग्लिकन बिशप की कब्र पर ये शब्द अंकित थे ‘जब मैं छोटा और स्वतंत्र था, मेरी कल्पनाओं की कोई सीमा नहीं थी। तब मैंने दुनिया को बदलने का सपना देखा। लेकिन जब मैं थोड़ा बड़ा और समझदार हुआ, तो महसूस किया कि दुनिया नहीं बदलने वाली। इसलिए मैंने अपना लक्ष्य छोटा कर लिया और सिर्फ अपने देश को बदलने का संकल्प लिया। मगर देश भी बदलने को तैयार नहीं था। जब मैं और बड़ा हुआ, तो हताशा में मैंने अंतिम प्रयास किया कि कम से कम अपने परिवार को बदल सकूं, जो मेरे सबसे करीब था। लेकिन मेरे परिवार ने भी परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। अब अपनी मृत्युशैया पर लेटे हुए मुझे अहसास होता है- अगर मैंने सबसे पहले खुद को बदला होता, तो शायद मेरा परिवार भी प्रेरित होकर बदल जाता। उनके बदलाव से समाज और देश में परिवर्तन आता। और संभवतः मैं पूरी दुनिया को बदलने में भी सफल हो सकता था।’

प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार

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