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चिरंजीवी महायोद्धा भगवान परशुराम

परशुराम जयंती 10 मई
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रौशन सांकृत्यायन

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धरती में महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, वीर हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय और भगवान परशुराम को चिरंजीवी महायोद्धा माना जाता है। ये हमारी सनातन संस्कृति के ऐसे किरदार हैं, जो हमेशा जीवित रहेंगे। भार्गव वंश में पिता जमदग्नि और मां रेणुका की संतान के रूप में त्रेतायुग में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को जन्मे महर्षि परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। कुछ मान्यताओं के मुताबिक वह स्वयं रुद्र रूप थे। वायु पुराण के मुताबिक भगवान परशुराम का जन्म उनकी मां रेणुका द्वारा शिव और विष्णु दोनों को अर्पित प्रसाद खाने के कारण हुआ था। इस कारण उनमें क्षत्रिय और ब्राह्मण दोनों की विशेषताएं थीं। इसलिए उन्हें रुद्र रूप भी कहा जाता है।

भगवान परशुराम शिव के परम भक्त थे। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कई दिव्यास्त्र दिए थे, जिनमें एक अजेय हथियार फरसा भी था, जिसे परशु कहते हैं। माना जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ, इसलिए उनकी शक्ति भी अक्षय यानी अपार थी। भगवान परशुराम भारतीय संस्कृति के एक ऐसे किरदार हैं, जो कई विरोधाभाषी गुणों से सम्पन्न माने जाते हैं। मसलन एक तरफ जहां कुछ लोग उन्हें अत्यंत क्रोधी कहते हैं, वहीं उनके साथ यह मान्यता भी जुड़ी हुई है कि उन्हें कतई क्रोध नहीं आता था। वह अपने पिता के इतने आज्ञाकारी थे कि उनके कहने पर अपनी मां और भाइयों का वध कर दिया था और फिर उन्हीं पिता से वरदान लेकर उन सबको जीवित कर दिया था।

बहरहाल, वह हिंदू धर्म के कल्प कल्पांतर नायक हैं, उनकी पूजा करने से पुरुषों में पौरुष का संचार होता है। माना जाता है कि परशुराम अभी भी जीवित हैं, वे हर दिन अपने स्थायी निवास महेंद्रगिरि पर्वत से सूर्योदय के समय हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं और सूर्यास्त के समय महेंद्रगिरि पर्वत मंे वापस आ जाते हैं। यह भी मान्यता है कि उन्हें यह अमरता भगवान शिव ने दी है। माना जाता है कि वह धरती पर हमेशा जीवित रहेंगे, जब तक कि समय का अंत नहीं हो जाता।

भगवान परशुराम के बारे में कई अद्भुत कहानियां भी प्रचलित हैं। माना जाता है कि उनका अपने शिष्य भीष्म के साथ 24 दिनों तक महायुद्ध हुआ और दोनों ही एक-दूसरे को हरा नहीं सके। अंत में भीष्म ने परशुराम को हराने के लिए शक्तिशाली पार्श्वास्त्र का उपयोग करने की कोशिश की, लेकिन दिव्य ऋषि नारद और देवताओं ने हस्तक्षेप किया और भीष्म को शक्तिशाली हथियार इस्तेमाल करने से रोका ताकि धरती नष्ट न हो। इसी के साथ संघर्ष समाप्त की घोषणा कर दी गई और इस तरह दोनों में से कोई विजयी या पराजित नहीं हुआ। धरती मंे परशुराम अपने क्रोध और ब्रह्मचर्य के कारण जाने जाते हैं। माना जाता है कि वह धरती पर हमेशा रहेंगे।

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