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आत्मा का प्रकाश और दिव्यता का पर्व

देव दिवाली

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इस दिन वाराणसी में सेना और पुलिस के जवानों को ‘राष्ट्र देवता’ मानकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इस दिन घाटों पर जो दीपों की शृंखला प्रज्वलित की जाती है, उन्हें ‘शौर्य दीप’ कहा जाता है। ये दीप शहीदों की श्रद्धांजलि होते हैं, जो राष्ट्र की सेवा में अपने प्राणों की आहुति दे चुके होते हैं। यह संदेश भी जाता है कि देव दिवाली केवल देवताओं का ही नहीं, बल्कि हमारे सैन्य बलों के सम्मान का भी पर्व है।

दीपावली या दिवाली केवल अंधकार को मिटाने का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आत्मा के प्रकाशोत्सव का पर्व भी है। दिवाली के ठीक 15 दिन बाद, यानी कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। जब हम अपनी दीपावली मना चुके होते हैं, माना जाता है कि उस समय स्वर्ग से उतरकर देवता धरती पर दीपावली मनाते हैं। देव दिवाली का पर्व विशेष रूप से वाराणसी या काशी में मनाया जाता है, जो न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि काशी की पहचान का अहम हिस्सा भी है। गंगा की लहरों और भारतीय संस्कृति का संगम इस दिन वाराणसी में दिव्य आलोक के रूप में जगमगाता है।

त्रिपुरासुर का वध

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार असुर त्रिपुरासुर ने तीन नगरों त्रि-पुरों का निर्माण किया और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, जिससे देवताओं का स्वर्ग संकट में आ गया। क्रुद्ध होकर भगवान शिव ने पिनाक धनुष उठाया और त्रिपुरासुर का वध किया और उसी दिन से देवताओं ने काशी में आकर भगवान शिव की पूजा की और दीये जलाए, जो कि देव दिवाली का रूप था। इस तरह जहां दीपावली भगवान राम की अयोध्या वापसी का उल्लास पर्व है, वहीं देव दिवाली देवताओं की विजय और शिव की महिमा का उत्सवगान है।

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वाराणसी में देव दिवाली

वाराणसी में देव दिवाली का पर्व बहुत ही भव्य रूप में मनाया जाता है। गंगा तट के लगभग 80 से अधिक घाटों पर दीपों की लहरें बिखेरते हुए यह दृश्य ऐसा प्रतीत होता है मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। संध्या होते ही गंगा की लहरों पर तैरते हुए हजारों दीप, मंदिरों की मधुर घंटियां, मंत्रोच्चार और गंगा आरती का संगम एक अद्भुत दृश्य रचते हैं, मानो कोई स्वप्नचित्र हो।

शहीदों का सम्मान

इस दिन वाराणसी में देव दिवाली के दिन लाखों पर्यटक इस मनोहारी दृश्य का आनंद लेने आते हैं। इस दिन भारतीय श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं, दीप दान करते हैं और भगवान शिव, मां गंगा, कार्तिकेय और लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु के बाद देवलोक की प्राप्ति होती है।

इस दिन वाराणसी में सेना और पुलिस के जवानों को ‘राष्ट्र देवता’ मानकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इस दिन घाटों पर जो दीपों की शृंखला प्रज्वलित की जाती है, उन्हें ‘शौर्य दीप’ कहा जाता है। ये दीप शहीदों की श्रद्धांजलि होते हैं, जो राष्ट्र की सेवा में अपने प्राणों की आहुति दे चुके होते हैं। यह संदेश भी जाता है कि देव दिवाली केवल देवताओं का ही नहीं, बल्कि हमारे सैन्य बलों के सम्मान का भी पर्व है। उन सैन्य बलों के लिए जो राष्ट्र की सेवा और समर्पण में अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं।

आध्यात्मिक संदेश

सांझ ढलते ही जब रोज की तरह भव्य गंगा आरती शुरू होती है, तो लगता है मानो समूचे वातावरण में दैवीय दिव्यता घुल गई हो। देव दिवाली का पर्व केवल दृश्य सौंदर्य का पर्व नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के लिए एक आध्यात्मिक संदेश भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिपुरासुर हमारे भीतर के तीन दोषों –अहंकार, मोह और अज्ञान – का प्रतीक हैं। भगवान शिव द्वारा उनका संहार इस बात का प्रतीक है कि जब चेतना का प्रकाश उठता है, तो अंधकार मिट जाता है। इस दिन वाराणसी के घाटांे में लोक कलाकारों द्वारा शास्त्रीय संगीत, कथक नृत्य और सस्वर संस्कृत श्लोकों की प्रस्तुतियां दी जाती है।

दीपों का प्रवाह

इस दिन गंगा में जलते हुए दीपों का प्रवाह वास्तव में आत्मिक ज्योति जगाने का प्रतीक है। यह दीप दान हमें यह संदेश देता है कि जैसे गंगा की धारा हमारी जीवनधारा को शुद्ध करती है, वैसे ही हमारे मन को भी निर्मल और दृढ़ होना चाहिए। यही कारण है कि कहा जाता है कि दीप केवल तेल से नहीं, बल्कि मन के उजाले से भी जलते हैं।

समाज की जागरूकता

आज के समय में, जब दुनिया प्रदूषण और भौतिक अंधकार से घिरी हुई है, देव दिवाली हमें प्रकृति और प्रकाश के संतुलन का संदेश देती है। वाराणसी में अब पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी है, और मिट्टी के दीयों का उपयोग बढ़ रहा है। प्लास्टिक के दीयों और कृत्रिम, पर्यावरण के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपयोग कम किया जा रहा है।

इस प्रकार, देव दिवाली केवल एक आध्यात्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह सामाजिक और पर्यावरण चेतना का पर्व भी बन चुका है। इस दिन की रौनक और अलौकिक वातावरण यह बताता है कि देवता केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर भी निवास करते हैं। इ.रि.सें.

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