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देवी की तपोभूमि से शक्तिपीठ तक का सफर

मीरजापुर

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वेदों एवं पुराणों में मीरजापुर को विंध्य क्षेत्र की तपोभूमि माना गया है। यहां आरण्यक संस्कृति से नागर संस्कृति तक की गाथा यत्र-तत्र विद्यमान है। विंध्य क्षेत्र की पर्वत शृंखलाएं भारतवर्ष की सभी पर्वत शृंखलाओं में सबसे लंबी एवं विस्तृत हैं।

अंजु अग्निहोत्री

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर मीरजापुर जनपद का गौरवशाली इतिहास है। मीरजापुर के नाम के सन्दर्भ में कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस नगर को महालक्ष्मी नगर भी कहा जाता रहा है। अर्थात पूरब में महालक्ष्मी, दक्षिण में महाकाली तथा पश्चिम में महासरस्वती विराजमान हैं। महालक्ष्मी ने अपने पति विष्णु भगवान से तारकेश्वर महादेव का माहात्म्य सुनकर यहां आकर तपस्या की थी। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने मनोवांछित वरदान दिया था। इन्हीं महालक्ष्मी के नाम से मीरजापुर नाम विख्यात हुआ। एक शिलालेख के अनुसार इसका प्रारंभिक पौराणिक नाम गिरिजापुर था। मिर्जापुर दो शब्दों से मिलकर बना है—पहला ‘मिर’, जिसका अर्थ समुद्र होता है और दूसरा ‘जा’, जिसका अभिप्राय प्रकट होना होता है।

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वेदों और पुराणों में महत्व

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वेदों एवं पुराणों में मीरजापुर को विंध्य क्षेत्र की तपोभूमि माना गया है। यहां आरण्यक संस्कृति से नागर संस्कृति तक की गाथा यत्र-तत्र विद्यमान है। विंध्य क्षेत्र की पर्वत शृंखलाएं भारतवर्ष की सभी पर्वत शृंखलाओं में सबसे लंबी एवं विस्तृत हैं। यह क्षेत्र आर्यों एवं अनार्यों का संघर्ष क्षेत्र रहा है। मान्यता है कि त्रेतायुग में पुरुषोत्तम भगवान राम ने शिवपुर के निकट रामगंगा घाट पर प्रेतशिला पर अपने पूर्वजों का तर्पण किया था। राम द्वारा स्थापित शिवलिंग आज भी रामेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। पंपापुर (ओझला से अष्टभुजा तक) तत्कालीन अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण एक समृद्धिशाली राजधानी थी, जो कालांतर में गंगा में विलीन हो गई।

शक्ति की लीलाभूमि

विंध्य पर्वत के सुरम्य अंचल में बसा हुआ विंध्याचल, शक्ति की शाश्वत लीलाभूमि रहा है। विंध्याचल मां भगवती विंध्यवासिनी देवी का निवास स्थान है। उपासकों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली शक्ति स्वरूपा मां यहां नित्य विराजमान रहती हैं। सृष्टि के प्रारंभ से लेकर प्रलय काल तक यह क्षेत्र समाप्त नहीं होता। कहा जाता है कि एक बार वशिष्ठ मुनि ने पूरे ब्रह्मांड का भ्रमण करने वाले नारद जी से पृथ्वी पर सबसे उत्तम क्षेत्र के विषय में जिज्ञासा प्रकट की। नारद जी ने कहा कि इस ब्रह्मांड में विंध्य क्षेत्र सर्वोत्कृष्ट है।

आराधना और त्रिकोण परिक्रमा

माता पार्वती ने इसी भूमि पर अन्न, जल एवं पत्ता त्यागकर शिव को पति रूप में पाने के लिए शाबर मंत्र का जाप किया था। पुराणों में इसे तीन उपाधियों से विभूषित किया गया है—शक्तिपीठ, सिद्धपीठ और मणिद्वीप। देवी भागवत के अनुसार जहां पर विंध्य पर्वत और भगवती सुरसरि (गंगा) का संगम होता है, वह स्थान मणिद्वीप है।

मीरजापुर की सही पहचान विंध्याचल के कारण है। आश्विन एवं चैत्र नवरात्र मेलों में देश के कोने-कोने से तीर्थयात्री भगवती के दर्शनार्थ आते हैं। लगभग सभी पुराणों में मां विंध्यवासिनी के त्रिकालात्मक रूप से सश्रद्धा नमन करने का निर्देश दिया गया है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार द्वापर युग में ब्रह्मा की प्रेरणा से योगमाया ने यशोदा के घर जन्म लेकर कंस के हाथों से उड़कर आकाश मार्ग द्वारा विंध्याचल में वास किया।

मानव जीवन से जुड़ी लगभग समस्त विधाओं से परिपूर्ण यह क्षेत्र आदर्श शक्तिपीठ मां विंध्यवासिनी एवं त्रिकोण परिक्रमा के केंद्र को परिधि के रूप में विकसित करता है।

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