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पराजय को विजय में बदलने वाला व्रत

विजया एकादशी 24 फरवरी
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एकादशी का व्रत जितना कठिन, उतना ही अधिक फलदायक भी होता है। यह व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है और इसके विधिवत् पालन से व्यक्ति के भीतर संयम एवं संकल्प का विकास तो होता ही है। साथ ही, इसके पुण्य प्रभाव से कष्टों का नाश भी होता है।

चेतनादित्य आलोक

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‘विजया एकादशी’ फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को कहा जाता है। एकादशी के सभी व्रतों में विजया एकादशी को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इसे करने वाले साधकों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। देखा जाए तो ‘विजया एकादशी’ व्रत के नाम में ही इसका माहात्म्य छिपा हुआ है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विजया एकादशी के व्रत को करने वाला व्यक्ति सदा विजयी रहता है। इस व्रत का उल्लेख पद्म पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है।

स्वच्छता एवं शुभता का प्रतीक

एकादशी का व्रत जितना कठिन, उतना ही अधिक फलदायक भी होता है। यह व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है और इसके विधिवत‍् पालन करने से व्यक्ति के भीतर संयम एवं संकल्प का विकास तो होता ही है। साथ ही, इसके पुण्य प्रभाव से कष्टों का नाश भी होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्त के भीतर शुभ फलों में वृद्धि होने के साथ-साथ उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति भी होती है। यह व्रत स्वच्छता एवं शुभता का प्रतीक होता है। यही कारण है कि इसे करने वाले व्यक्ति के जीवन में शुभता एवं सकारात्मकता का संचार होता है, स्वच्छता के प्रभाव में वृद्धि होती है और अशुभता का नाश भी होता है।

एकादशी का महत्व

विजया एकादशी धार्मिक एवं सामाजिक दोनों दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने और भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजनादि करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, इस व्रत का आध्यात्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भगवान श्रीविष्णु की कृपा से उसका आध्यात्मिक उन्नयन भी होता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने एवं भगवान श्रीहरि का पूजनादि करने से व्यक्ति के भीतर दान एवं परोपकार की दिव्य भावनाएं जागृत होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में व्यक्ति की दैहिक, लौकिक एवं भौतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। पद्म पुराण और स्कंद पुराण में ऐसा वर्णन है कि विजया एकादशी के व्रत का पुण्य प्रभाव ऐसा होता है कि चारों ओर से शत्रुओं से घिरा व्यक्ति भी विजयी हो सकता है।

इस व्रत के शुभ प्रभाव के कारण निश्चित पराजय को भी विजय में परिवर्तित किया जा सकता है। बता दें कि प्राचीन काल में हमारे देश के अनेक राजा-महाराजाओं ने इस व्रत के पुण्य प्रभाव से अपनी निश्चित हार को भी जीत में बदलने का कार्य किया था। शास्त्रों में तो यह भी उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीराम ने रावण के संग युद्ध करने से पूर्व बकदाल्भ्य मुनि की आज्ञानुसार समुद्र के तट पर अपनी पूरी सेना के साथ संपूर्ण विधि-विधान से विजया एकादशी का व्रत किया था।

व्रत तिथि

इस वर्ष फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 फरवरी को दोपहर एक बजकर 55 मिनट पर शुरू होकर 24 फरवरी को दोपहर एक बजकर 44 मिनट पर समाप्त हो रही है। ऐसे में, उदया तिथि के अनुसार विजया एकादशी का व्रत इस बार 24 फरवरी यानी सोमवार को रखा जाएगा।

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