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आदर्श की प्रतिमूर्ति

एकदा

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आध्यात्मिक गुरु श्रीरामकृष्ण परमहंस के विराट व्यक्तित्व से तो सब परिचित हैं, पर उनकी पत्नी शारदा मणि का जीवन भी उतना ही उच्च आध्यात्मिक व मानवीय मूल्यों से युक्त था। वे भी सांसारिक विषय-वासनाओं और प्रलोभनों से दूर रहती थीं। एक बार एक धनी व्यापारी ने श्रीरामकृष्ण को मोटी धनराशि दान में देनी चाही। परमहंस जी ने विनम्रता से मना करते हुए कहा कि उन्हें किसी धन की आवश्यकता नहीं। जब व्यापारी ने बार-बार आग्रह किया, तो श्रीरामकृष्ण ने कहा—‘मुझे नहीं चाहिए, शायद मेरी पत्नी को आवश्यकता हो।’ उन्होंने शारदा मणि को बुलाकर स्थिति बताई। शारदा मणि ने स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया—‘जब आपको धन की आवश्यकता नहीं, तो मुझे कैसे हो सकती है? मैं आपकी अर्द्धांगिनी हूं। यदि मैं कोई कर्म करती हूं तो आप भी उसके सहभागी होंगे। इसलिए यह धन मैं कदापि नहीं ले सकती।’ उनकी निष्ठा, विचार और त्याग देखकर श्रीरामकृष्ण परमहंस भावविभोर हो उठे। वे हाथ जोड़कर बार-बार बोले—‘आनन्दमयी मां... आनन्दमयी मां!’

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