एक बार स्वामी विवेकानंद युवाओं को चर्चा सत्र में समझा रहे थे, ‘इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका कितना मुश्किल अतीत रहा है, आप हमेशा फिर से शुरू कर सकते हैं।’ सभी गौर से सुन रहे थे। ‘आपका बुरा समय आपका जीवन के उन सत्यों से सामना करवाता है, जिनकी आपने अच्छे समय में कभी कल्पना भी नहीं की होती है।’ ‘तो हम कैसे सजग रह सकते हैं?’ एक जिज्ञासु युवा ने पूछा। ‘अपनी संगति सही जगह करो। देखो कभी ध्यान देना कि पानी की एक बूंद गर्म तवे पर पड़े तो मिट जाती है, कमल के पत्ते पर गिरे तो मोती की तरह चमकने लगती है, सीप में गिर जाये तो खुद ही मोती बन जाती है। बस सब संगति का ही फर्क है।’
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