एक बार स्वामी विवेकानंद के कॉलेज के प्रिंसिपल डब्ल्यूडब्ल्यू हेस्टी कक्षा में आए। किसी प्रसंग पर उन्होंने पूछा, ‘नरेन! यह बताओ नास्तिक कौन है?’ नरेन ने कहा, ‘सर, नास्तिक वह होता है जो अपने में विश्वास नहीं करता। ईश्वर में विश्वास नहीं करता।’ फिर हेस्टी ने कुछ सोचकर कहा ‘तो इसका अर्थ यह है कि ईश्वर कहीं नहीं है।’ नरेन ने दृढ़तापूर्वक कहा, ‘ईश्वर है सर। वह भारत के उन दरिद्र पंडित और दुर्बल लोगों में है जिन्हें कभी तुर्क और मुगल शासक नोचते रहे और आजकल आपकी सरकार नोच रही है।’ निर्भीक उत्तर सुनकर हेस्टी चकित रह गए। उन्होंने कहा, ‘मैंने सुदूर देशों का भ्रमण किया है, पर अभी तक मुझे कहीं भी ऐसा लड़का नहीं मिला, जिसमें तुझ जैसी प्रतिभा और संभावनाएं हों। तू जीवन में जरूर अपनी छाप छोड़ जाएगा।’ छुट्टी के समय उन्होंने नरेन को अपने ऑफिस में बुलाया, फिर बड़े प्यार से बिठाते हुए कहने लगे, ‘नरेन तुमने क्लास में जो कुछ कहा, वह बिल्कुल सच है। लेकिन मैं तुम्हें हिदायत देता हूं कि ऐसी बातें किसी और अंग्रेज के सामने मत कहना।’ नरेन ने पूछा, ‘क्यों सर?’ हेस्टी साहब बोले, ‘वह तुम्हारी रिपोर्ट कर देगा और सरकार तुम्हें जेल भेज सकती है।’ यह सुनकर नरेन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘सर! यदि सच बोलने से आपकी सरकार मुझे जेल भेज देगी, तो मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि भारत का हर व्यक्ति मेरी तरह सच कहने लगे और आपकी सरकार सबको जेल का पानी पिलाने लग जाए।’
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