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शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
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त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक का नाम ही इस मंदिर से जुड़ा है। भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है। इसका निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने लगभग 1740-1760 के आसपास एक पुराने मंदिर के स्थान पर कराया था।

सुमन बाजपेयी

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गोदावरी नदी के तट पर बसा छोटा-सा शहर नासिक अपने मंदिरों, घाटों तथा यहां होने वाले कुंभ के लिए प्रसिद्ध है। नासिक में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यम्बकेश्वर के यहां होने की वजह से नासिक एक धार्मिक स्थल और पर्यटक स्थल भी है। यहां पांडवलेनी गुफाएं भी एक पवित्र बौद्ध स्थल हैं।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक का नाम ही इस मंदिर से जुड़ा है। भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है। इसका निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने लगभग 1740-1760 के आसपास एक पुराने मंदिर के स्थान पर कराया था। कहा जाता है कि यहां कई ऋषि एक साथ रहते थे। कई ऋषि ऐसे भी थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे। एक बार ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गो हत्या का आरोप लगा दिया और कहा कि पाप मिटाने के लिए आपको देवी गंगा को लेकर यहां आना होगा। इसके बाद गौतम ऋषि ने इसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की और उनकी पूजा करने लगे।

भगवान शिव प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ प्रकट हुए। इसके बाद उन्होंने वरदान में गंगा को भेजने के लिए बोला, लेकिन देवी ने कहा कि यदि शिव जी भी इस स्थान पर रहेंगे, तभी वह भी यहां रहेंगी। मान्यता है कि तब शिवजी वहां त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने को तैयार हो गए। मंदिर में शिवलिंग धरती के अंदर स्थापित है उसके ऊपर एक बड़ा-सा शीशा लगा है, जहां से दर्शन किए जा सकते हैं।

यहां रामकुंड, पंचवटी और तपोवन, नासिक शहर रामायण से जुड़े धार्मिक स्थल हैं। यहीं से रामायण का दूसरा अध्याय शुरू हुआ था। यहां भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने वनवास के दौरान काफी समय व्यतीत किया था। रामकुंड दक्षिण की गंगा कही जाने वाली गोदावरी नदी के घाट पर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम वनवास के दौरान इस घाट पर स्नान किया करते थे। यहीं पर तीनों नदियों अरुणा, वरुणा और गोदावरी का संगम स्थल होने के कारण इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है।

कपालेश्वर महादेव मंदिर

यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। यही एकमात्र मंदिर है जहां शिव वाहन नंदी उनके साथ मौजूद नहीं है।

धारणा है कि ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे, लेकिन कोई उपाय नहीं मिला। तब एक बछड़े ने उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। वह बछड़ा वास्तिवक में नंदी थे। वे शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गए और कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके। शिवजी ने नंदी को गुरु माना और यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। चूंकि यहां नंदी महादेव के गुरु बन गए थे इसीलिए उन्होंने इस मंदिर में उन्हें अपने सामने बैठने से मना कर दिया, तभी से इस मंदिर में शिव बिना नंदी के स्थापित हैं।

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