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कृतज्ञता हेतु नमन

एकदा
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भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का जीवन संघर्ष, सादगी और संस्कारों से परिपूर्ण है। उनके अभिभाषणों में अक्सर उनके बचपन की एक मार्मिक और शिक्षाप्रद घटना का उल्लेख होता है, जो हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का अद्भुत संदेश देती है। वे कहती हैं कि वे एक छोटे से गांव से हैं, जहां उनका बचपन बेहद साधारण और कठिन परिस्थितियों में बीता। उनके घर में खाना लकड़ी जलाकर बनाया जाता था, क्योंकि कोई अन्य साधन उपलब्ध नहीं था। उनके माता-पिता जंगल से सूखी लकड़ियां चुनकर लाते, फिर उन्हें घर लाकर सुखाते और छोटे-छोटे टुकड़ों में काटते। एक दिन उन्होंने गौर किया कि उनके पिता लकड़ी जलाने से पहले सिर झुका कर नमन करते हैं। उन्होंने जिज्ञासावश पूछ लिया, ‘पिता जी, आप लकड़ी जलाने से पहले नमन क्यों करते हैं?’ पिता जी मुस्कराए और सहज भाव से बोले–‘बेटी, यह लकड़ी अब सूख चुकी है, बूढ़ी हो चुकी है। लेकिन अपने जीवन में इसने हमें बहुत कुछ दिया है– फल, फूल, छाया, हवा और पानी। और अब जब यह बूढ़ी हो चुकी है, तब भी हमारे काम आ रही है। इसलिए मैं इसे जलाने से पहले इससे क्षमा मांगता हूं।’

प्रस्तुति : अमिताभ स.

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